उल्कापिंड और भूकंपों ने खोले मंगल ग्रह के नए राज, मिला पानी का भंडार

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। उल्कापिंड और भूकंपों ने फिर मंगल ग्रह के नए राज खोले हैं। वैज्ञानिकों को यहां फिर बड़ा संकेत मिला है। नए शोध के अनुसार इस ग्रह के रेगिस्तान के नीचे बड़ा समंदर हो सकता है। यहां इतना पानी पाया जा सकता है कि पूरा ग्रह 900 मीटर तक डूब जाए। मंगल ग्रह के धूल से भरे लाल मैदानों के नीचे पानी का विशाल भंडार है। यह पानी इतनी ज्यादा मात्रा में है कि पूरा ग्रह इसमें 900 मीटर तक डूब सकता है। एक रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है। नासा के 2018 में लैंड हुए इनसाइट मिशन ने भूकंप और उल्कापिंड संबंधी आंकड़ों का उपयोग करते हुए यह शोध किया है। शोध के अनुसार मंगल ग्रह पर प्राचीन जल होने के निशान हैं। अनुमान जताया गया है कि 3 से 4 अरब साल पहले नोआचियन और हेस्पेरियन काल के दौरान यहां नदियां और झीलें थीं। जब लाल ग्रह ठंडा और शुष्क हो गया तो यह पानी गायब हो गया। वैज्ञानिक इस बड़े राज को सुलझाने पर काम कर रहे हैं। शोध के अनुसार समय के साथ मंगल का चुंबकीय क्षेत्र फीका पड़ता गया। जिससे उसका वायुमंडल क्षीण हो गया। सतही पानी गायब हो गया और कुछ अंतरिक्ष में चला गया। कुछ पानी खनिजों में चला गया, जहां आज भी मौजूद है। गणनाओं से पता चलता है कि मंगल ग्रह पर पानी इतना है कि यह ग्रह को 700 मीटर से 900 मीटर तक गहरे समुद्र में डुबो सकता है। बता दें कि हाल ही मंगल ग्रह पर आए भूकंपीय तरंगों से इसकी 5 से 8 किलोमीटर  की सतह धीमी हो गई। यह तभी होता है जब सतह के नीचे भारी मात्रा में तरल पानी होता है। पानी के धरती के नीचे समाने को लेकर वैज्ञानिकों ने नया अनुमान भी जाहिर किया है। इसके अनुसार यहां पर उल्कापिंडों की बारिश हुई होगी। ऐसे में मंगल ग्रह की धरती फट गई। इस दौरान वहां की सतह में काफी बदलाव देखा गया। जमीन में बनी दरारों से यह पानी भूमिगत हो गया होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य के मानव मिशनों के लिए यह शोध वरदान साबित हो सकता है। शुद्ध होने पर यह पानी पीने के काम आ सकता है। साथ ही आक्सीजन या रॉकेट के लिए ईंधन प्रदान कर सकता है। बता दें कि कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय सैन डिएगो के स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन आफ ओशनोग्राफी के सहायक प्रोफेसर वाशन राइट के नेतृत्व में यह शोध किया गया है। वैज्ञानिकों की टीम ने नासा के इनसाइट लैंडर से एकत्र किए गए भूकंपीय डेटा का विश्लेषण किया। इसके बाद मंगल ग्रह की सतह के नीचे पानी के एक बड़े भंडार होने के सबूत मिला।  सोमवार को जर्नल प्रोसीडिंग्स आफ द नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन में भी यह जानकारी दी गई है। इसमें कहा गया है कि पानी का यह भूमिगत भंडार पूरे ग्रह में फैले महासागरों को भरने के लिए पर्याप्त है। जिसकी गहराई एक से दो किलोमीटर के बीच है। यह उन वैज्ञानिकों के लिए अच्छी खबर है जो मंगल ग्रह पर जीवन के संकेतों की खोज कर रहे हैं।  बता दें कि 31 जुलाई 2008 को भी नासा के फीनिक्स लैंडर ने मंगल ग्रह पर वॉटर आइस की उपस्थिति की पुष्टि की थी। इस दौरान मंगल ग्रह पर पानी का पहली बार नमूना पाया गया था।