इजरायल और ईरान के बीच 12 दिन चली जंग अब खत्म हो चुकी है। ऐसे में यक्ष प्रश्न उठ रहा है कि इस जंग में किसकी हार हुई और किसकी जीत। साथ ही यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि किसको कितनी हानि हुई है। देखा जाए तो यह युद्ध दोनों देशों के साथ दुनिया के लिए बड़ा सबक था। इन सभी मुद्दो पर पढ़िए एक खास विश्लेषण।
दोनों देशों की खुली पोल
12 दिनों तक चले इजरायल, ईरान के बीच युद्ध के बाद दोनों पक्ष खुद को विजेता बता रहे हैं। सवाल उठता है कि अगर सभी जीत गए तो हारा कौन? देखा जाए इस युद्ध से जिस नतीजे की आस दोनों पक्षों को थी, उनमें से किसी को कुछ हांसिल नहीं हो पाया। इजरायल भले ही दावा करता रहा कि उसने ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को नष्ट कर दिया लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसका प्रमाण है कि जंग खत्म होने के एक दिन बाद ही ईरान ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ सहयोग खत्म करने से जुड़ा बिल संसद में पारित करा लिया। साथ ही अपने परमाणु कार्यक्रम में तेजी लाने की बात कही। ऐसे में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि बिना किसी निगरानी के अब ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम बेकाबू हो सकता है। यानी जिसके लिए इजरायल ने ईरान पर हमला किया था वह पूरा नहीं हो सका। दूसरी ओर इस युद्ध ने दोनों देशों की रक्षा तैयारियों की कलई खोल दी। आयरन डोम समेत अपने हथियारों का दंभ भरने वाले इजरायल को भी पता चल गया कि वह अमेरिका के बिना कोई जंग नहीं जीत पाएगा। ईरान को भी यह ज्ञात हो गया कि एशिया में उसे सच्चे दोस्तों की जरुरत है जो मुसीबत के समय उसका साथ दे सकें।
हमले की शुरुआत
ओमान में ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु संधि को लेकर बातचीत हुई। इसके बाद 12 जून को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने ईरान को परमाणु दायित्वों का पालन न करने का दोषी ठहराया। जिसके अगले दिन इजरायल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन शुरू कर दिया। इजरायल ने तेहरान पर हवाई हमले किए। जिसमें ईरान के सेनाध्यक्ष और कई परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। इजरायल ने यह दावा किया कि परमाणु संधि की बातचीत ईरान का एक छलावा है। जिसकी आड़ में वह परमाणु बम बनाने की करीब पहुंचता जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि ईरान के पास परमाणु हथियार इजरायलियों पर बड़ा संकट है। ऐसे में परमाणु संवर्धन में लगे केंद्रों को मिटाना होगा। चूंकि नेतन्याहू ने हमले को परमाणु केंद्रों को मिटाने की बात कही थी ऐसे में ट्रंप ने भी इजरायल की इस कार्रवाई का समर्थन किया। इजरायल के साथ अमेरिकी बम वर्षकों ने भी ईरान में भारी बमबारी की।
सीजफायर का ऐलान
इजरायल की हर तरह से मदद करना अमेरिका की स्थायी नीति रही है। ऐसे में इजरायल के हथियारों और उसके युद्धक विमानों को हमले के दौरान अमेरिका हवा में रिफ्यूलिंग करता रहा। जब अमेरिका बी-2 बॉम्बर विमानों से हमला करके युद्ध में शामिल हुआ तो ईरान ने इसका जवाब दिया। उसने इराक और कतर स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर मिसाइल हमला कर दिया। जिसके बाद ट्रंप ने सीजफायर का ऐलान कर दिया। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप इस जंग को जल्द से जल्द खत्म करना चाहते थे। वे रूस की तरह इस युद्ध में फंसना नहीं चाहते थे। ऐसे में उन्होंने अचानक यह अप्रत्याशित कदम उठाया।
पाकिस्तान जैसा ईरान में जश्न
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में नौ ठिकानों पर हमला किया था। भारत ने पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया। भारत ने पाकिस्तान के एयर स्पेस को छिन्न भिन्न कर दिया। इधर 12 दिनों तक चले इजरायल-ईरान युद्ध में ईरान को भारी नुकसान हुआ। उसके 8 से 10 परमाणु वैज्ञानिकों को इजरायल ने मार डाला। ईरान के पूरे सैन्य नेतृत्व की इजरायल ने साफ कर दिया। इसके बाद ईरान को जो सबसे अहम नुकसान हुआ वो था उसके तीन परमाणु ठिकाने (नतांज, फोर्डो, इस्फहान) इस हमले में बर्बाद हो गए। अमेरिकी बी-2 विमानों से इन तीन परमाणु केंद्रों पर हमले के बाद ईरान की परमाणु महात्वाकांक्षा ध्वस्त हो गई। ईरान का एयर स्पेस पुरी तरह से इजरायल और अमेरिका का कब्जा रहा। इजरायल जहां चाह रहा था वहां हमले कर रहा था। हमले में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 650 लोगों की मौत हुई। मानवाधिकार संगठन ईरान के मृतकों का आंकड़ा 1000 तक बताते हैं। इसके बावजूद ईरान ने इसे जीत के रूप में प्रचारित किया।
ईरान की कमजोरियां और सबक
13 जून को शुरू हुआ युद्ध ईरान के साथ दुनिया भर के देशों के लिए एक सबक था। ईरान को कई कमजोरियां उजागर हुईं। उसकी पहली कमजोरी यह थी कि उसका किसी देश ने जंग में साथ नहीं दिया। यह उसकी रणनीतक और मिडिल ईस्ट एशिया में सबसे बड़ी कमजोरी को दर्शाता है। ईरान ने हमेशा रूस और चीन को अपने रणनीतिक सहयोगी माना। इस युद्ध में दोनों देशों ने ईरान को अकेला छोड़ दिया। रूस के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी हमलों की निंदा की, लेकिन कोई सैन्य मदद नहीं दी। इसी तरह जब तेहरान पर मिसाइलें गिरीं तो चीन समेत अन्य कोई सहयोगी देश आगे नहीं आया।
हवाई क्षेत्र में ईरान फ्लाप
इजरायल ने युद्ध के पहले 24 घंटों में ईरान की 120 वायु रक्षा प्रणालियों को नष्ट किया। यह तेहरान की कुल वायु रक्षा का एक-तिहाई हिस्सा था। रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल ने केवल एक ड्रोन खोया, जबकि उसके 200 से अधिक विमान 330 से ज्यादा हथियार गिराने में सफल रहे। ईरान की एस-300, बावर-373 और अन्य रक्षा प्रणालियां इजरायली हमलों को रोकने में नाकाम रहीं। ऐसे में इस जंग ने ईरान के साथ दुनिया को दिखा दिया कि जिसका एयर डिफेंस पावर अच्छा होगा वहीं विजेता बनेगा। सभी देशों को मजबूत वायुसेना विकसित करनी होगी। वायु रक्षा प्रणालियों को उन्नत करना होगा। इस युद्ध ने दिखाया कि बिना हवाई नियंत्रण के कोई देश आधुनिक युद्ध में टिक नहीं सकता। विदेश से आयातित पुरानी प्रणालियों के बजाय स्वदेशी तकनीक पर ध्यान देना होगा।
धांसू मिसाइलों की जरुरत
मध्य पूर्व एशिया में ईरान मिसाइल का सबसे बड़ा भंडार माना जाता है। जिसमें 2000 बैलिस्टिक मिसाइलें थीं। युद्ध में ईरान ने इजरायल पर 450 से अधिक मिसाइलें और 1000 ड्रोन दागे, लेकिन इनका असर सीमित रहा। इजरायल के आयरन डोम, एरो-2 और एरो-3 प्रणालियों ने 90 प्रतिशत मिसाइलों को रोक लिया। ऐसे में दुनिया को ऐसी मिसाइलों की जरुरत है जिसे आयरन डोम पकड़ न सके।
जासूसी नेटवर्क की जरुरत
इस युद्ध ने यह भी सबक दिया को सभी देशों को अपनी जासूसी संस्थाओं को मजबूत करना होगा। जैसा कि इजरायल की मोसाद ने ईरान में गहरी पैठ बनाई थी। मोसाद ने हमलों से पहले ईरान में ड्रोन और हथियार तैनात किए। कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की सटीक जानकारी हासिल की। इसके बाद इजरायल ने 21 सैन्य कमांडरों और 10 परमाणु वैज्ञानिकों को मार गिराया।
इजरायल को भी सबक
इस युद्ध ने इजरायल को भी सबक दिया कि उसे अभी और तैयारियों की जरुरत है। बता दें कि इस युद्ध में आयरन डोम ने ईरान की 450 मिसाइलों और 1000 ड्रोनों में से 90 प्रतिशत को रोक लिय। वहीं 10 प्रतिशत ईरान की हाज कासेम और खैबर शेकन मिसाइलों ने आयरन डोम को चकमा दिया। इससे बटयम, तेल अवीव और बीर शेवा में नुकसान पहुंचा। वहीं सोरोका मेडिकल सेंटर पर हमले में 76 लोग घायल हुए। इजरायल में युद्ध के दौरान सायरन की आवाजें और बंकरों में छिपने की मजबूरी आम हो गई थी। इजरायल में लगभग 30 नागरिक मारे गए। जंग के समय इजरायल के पास सार्वजनिक बंकरों और नागरिक सुरक्षा उपायों की कमी देखी गई। भविष्य में इजरायल को हर शहर में आधुनिक बंकर, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियां और आपातकालीन प्रशिक्षण पर ध्यान देना होगा। साथ ही, स्कूलों और अस्पतालों को और सुरक्षित करना होगा। आर्थिक रूप से, ईरान को 150-200 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। वहीं इजरायल को भी 12 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा।