न्यूक्लियर बम की भठ्ठी बन रहे हैं पृथ्वी के महासागर 

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। पृथ्वी के महासागर न्यूक्लियर बम की भठ्ठी बन रहे हैं। हालात यह है कि समंदर हर सेकंड 5 परमाणु बमों धमाकों जितनी गर्मी निगल रहे हैं।  वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इसके कारण रिकॉर्ड तापमान, समुद्री बर्फ का तेजी से पिघलना, कोरल रीफ्स का बड़े पैमाने पर खत्म होना जैसी घटनाएं हो रही हैं। इससे समुद्र में उबाल आया तो पूरी दुनिया में तबाही मच जाएगी। 
वैज्ञानिकों ने बढ़ती गरमी को लेकर दी चेतावनी


पेरिस समझौते को एक दशक हो चुका है। इसके बावजूद इस लक्ष्य को पाने में कई देश बहुत पीछे हैं। ग्लोबम वार्मिंग का शैतान दिन ब दिन बढ़ा होता जा रहा है। ऐसे में दुनिया भर के महासागर तेजी से गर्म हो रहे हैं। इस घटना ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। हाल ही में फ्रांस के नीस शहर में शुरू हुए संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन के दौरान विशेषज्ञों ने बड़ी चेतावनी दी है। उनके अनुसार हमो महासागर अब तक 1.7 अरब परमाणु बमों जितनी ऊर्जा सोख चुके हैं। इसका मतलब है कि हर एक सेकंड 5 परमाणु बम जितनी गर्मी समुद्र में समा रही है।
वैज्ञानिकों को चौंका रहा है ग्लोबल वार्मिंग 


आस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी आफ न्यू साउथ वेल्स के वैज्ञानिक एलेक्स सेन गुप्ता इस शोध टीम में शामिल हैं। उन्होंने इसे बेहद गंभीर समस्या बताया। गुप्ता का मानना है कि पिछले 10 सालों में महासागरों में जितनी गर्मी समाई है, वो 1.7 अरब परमाणु विस्फोटों के बराबर है। इसे अगर सेकंडों में बांटा जाए, तो हर सेकंड 5 एटमी धमाकों जितनी गर्मी उत्सर्जित होकर महासागर में समा रही है। 2024 की शुरूआत से ही समुद्र के सतह तापमान ने नए रिकॉर्ड बनाए हैं। वैश्विक स्तर पर समुद्री बर्फ अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया भर के 84 प्रतिशत प्रवाल भित्तियों में ब्लीचिंग देखी गई है, जो अब तक का सबसे बड़ा प्रवाल संकट है। यूके के मरीन बायोलॉजिकल एसोसिएशन की डॉ. कैथरीन ई. स्मिथ भी शोध टीम में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि बीते वर्षों में समुद्री गर्म हवाओं ने पूरी मछली अर्थव्यवस्था को हिला दिया है। एक के बाद एक फिशरीज ढहती जा रही हैं। समुद्री जीवों की बड़े पैमाने पर मौतें हो रही हैं, और धरती पर भी तूफानों का कहर बढ़ा है। 
समुद्री गर्म हवाओं ने बदली मछली अर्थव्यवस्था 


सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि समुद्रों को लूट से संरक्षण की ओर ले जाना ही एकमात्र विकल्प है। उन्होंने देशों से अपील की कि वे केवल वादे न करें, बल्कि ठोस नीतियों के जरिए समुद्री संरक्षण को लागू करें। बता दें इस साल यह सम्मेलन फ्रांस और कोस्टा रिका की संयुक्त मेजबानी में हुआ है। इसमें 100 से ज्यादा देशों ने भाग लिया है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने हाई सीज संधि को 2026 तक लागू करने की वकालत की। साथ ही गहरे समुद्री खनन पर रोक की अपील दोहराई।
आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ की सतह आधे से भी कम 


रिसर्च सेंटर से जुड़ी डॉ. जेनिफर फ्रांसिस ने भी इस मामले में गहरी चिंता जताई। उनका मानना है कि आर्कटिक क्षेत्र में गर्मियों के दौरान बर्फ की सतह अब आधे से भी कम रह गई है। उसका आयतन लगभग तीन-चौथाई घट चुका है। बर्फ की कमी से आर्कटिक रूट अब खुल गए हैं। जिससे जहाजों की आवाजाही आसान हो गई है, लेकिन इससे ईंधन रिसाव और जैविक असंतुलन का खतरा बढ़ गया है। सम्मेलन के अंत में नाइस ओशन एक्शन प्लान और एक राजनीतिक घोषणापत्र जारी किया किया। इसका उद्देश्य महासागर संरक्षण और जलवायु परिवर्तन नीति के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना है। बैठक के बाद छोटे द्वीपीय देशों के प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों और सामाजिक संगठनों ने भी सख्त जलवायु नीति और उत्सर्जन में कटौती की अपील की।