जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। तकनीक के क्षेत्र में जापान बड़ा काम करने जा रहा है। वह अंतरिक्ष में बिजली बनाएगा। इसके बाद इसे धरती पर पहुंचाने का भी काम करेगा। ऐसे में अब लोगों के दिमाग में सवाल उठ रहा है कि ये कैसे संभव होगा। अंतरिक्ष से धरती तक तार नहीं लटक सकते? इन सवालों का जवाब जानने के लिए देखिए यह खास वीडियो। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में जापान लगातार काम कर रहा है। वह अब बिजली बनाने की एक ऐसी पद्धति पर काम कर रहा है जिससे पूरी दुनिया हैरान हो गई है। जापान की इस कोशिश ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। रिपोर्ट के अनुसार यह माइक्रोवेव के रूप में ऊर्जा का उत्पादन होगा। जिसे ऊर्जा किरण की तरह वायरलेस तरीके से भेजा जाएगा और एंटेना द्वारा पकड़ा जाएगा। हालांकि ये सुनने में थोड़ा अटपटा सा लग रहा है लेकिन मिशन को पूरा करने के लिए सब कुछ पहले से ही तैयार है। जापान जल्द ही 22 वर्ग फुट यानी 2 वर्ग मीटर के सौर पैनल के साथ 400 पाउंड का सैटलाइट निचली पृथ्वी की कक्षा में लांच करेगा। पैनल सूर्य के प्रकाश को इकट्ठा करेगा और इसका उपयोग ऑनबोर्ड बैटरी को चार्ज करने के लिए करेगा। रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ताओं में शामिल कोइची जिची ने इसकी विस्तार से जानकारी दी। बता दें कि कोइची जापान स्पेस सिस्टम्स में सलाहकार हैं। उन्होंने बताया कि यह एक छोटा उपग्रह होगा। इसका वजन लगभग 180 किलोग्राम यानी 400 पाउंड होगा। यह 400 किलोमीटर की ऊंचाई से लगभग 1 किलोवाट बिजली संचारित करेगा। इस परियोजना का नाम ओहिसामारखा गया है। जिसका जापानी में अर्थ सूर्य होता है। कोइची के अनुसार सेटलाइट की लॅांचिग की अभी कोई सटीक तिथि निर्धारित नहीं की गई है।रिपोर्ट बताती है कि यह अप्रैल के बाद कभी भी हो सकता है। इस परियोजना का सबसे बढ़िया हिस्सा पृथ्वी पर बिजली का ट्रांसमिशन है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जापान की यह तकनीक अन्य से बिल्कुल अलग होगा। बता दें कि सामान्य सौर पैनलों के साथ, ऊर्जा को बिजली में परिवर्तित किया जाता है। इसके बाद तारों के माध्यम से प्रेषित किया जाता है। अब जापान बिना तारों के अंतरिक्ष से धरती पर बिजली भेज पाने में सक्षम हो जाता है तो यह अजूबी तकनीक होगी। जापानी वैज्ञानिकों के अनुसार सैटेलाइट बिजली को माइक्रोवेव में बदल देगा। इसके बाद इसे ऊर्जा किरण के रूप में वायरलेस तरीके से प्रसारित करेगा। इस कार्य के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया एक एंटीना इसे पकड़ लेगा। उपग्रह 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ेगा। जिसका अर्थ है कि तरंगों को पकड़ने के लिए, कई किलोमीटर चलने वाले एंटीना की आवश्यकता होगी। जापान ने एंटीना को भी बनाने में सफलता हासिल कर ली है। बिजली प्राप्त करने के लिए 600 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले तेरह रिसीवर तैयार किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार भेजी गई ऊर्जा केवल एक घंटे तक डिशवॉशर चलाने के लिए पर्याप्त होगी। अगर यह काम करती है, तो इस तकनीक का उपयोग अंतरिक्ष में सूर्य का उपयोग करके अधिक स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए किया जा सकता है। बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब अंतरिक्ष में सूर्य की ऊर्जा का उपयोग किया गया जाएगा। मई 2020 में, यूएस नेवल रिसर्च लेबोरेटरी ने एक्स-37 बी ऑर्बिटल टेस्ट व्हीकल लॉन्च किया था। जिसमें उसने अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा को माइक्रोवेव ऊर्जा में सफलतापूर्वक परिवर्तित किया था। साथ ही इसे वायरलेस तरीके से वापस पृथ्वी पर भेजा था। इससे जुड़ी लागत बहुत अधिक है। अनुमान है कि इस विधि की लागत 61 सेंट प्रति किलोवाट-घंटा होगी। फिलहाल पृथ्वी पर सौर और पवन ऊर्जा की लागत 5 सेंट प्रति किलोवाट-घंटा है।
अंतरिक्ष में बिजली बनाएगा और धरती पर पहुंचाएगा जापान
28-Apr-2025