नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से बड़ी खोज, नए ग्रह की सीधी तस्वीरें खींची 

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने बड़ी खोज की है। इसने पहली बार हमारे सौरमंडल के बाहर नए ग्रह की सीधी तस्वीरें खींची हैं। यह बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये लघु ग्रह आमतौर पर ज्यादा रोशनी नहीं छोड़ते हैं। वैज्ञानिक इन्हें ढूंढने के लिए तारों के सामने से गुजरने वाली परछाइयों का सहारा लेते हैं। 
नौजवान तारे की खोज 


धरती से 110 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर नौजवान तारे की खोज ने खगोल विज्ञान की दुनिया में हलचल मचा दी है। बता दें कि प्रकाश वर्ष का मतलब ये इतनी दूर है कि वहां से रोशनी को धरती तक पहुंचने में 100 साल लग जाएंगे। वहीं हमारे सूरज की रोशनी को धरती तक पहुंचने में सिर्फ 8 मिनट का समय लगता है। कुछ वैज्ञानिक इसे फिक्शन यानी कल्पना मान रहे हैं। इसी तरह जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की खोज को अन्य खगोलविद नई और ऐतिहासिक बता रहे हैं। इस ग्रह का नाम टीडब्ल्यूए 7 बी है। यह ग्रह चमकते हुए धूल और पत्थरों के घने डिस्क के बीच से गुजरता हुआ देखा गया है। इस ग्रह का आकार हमारे सौरमंडल के शनि ग्रह जितना है। साथ ही अब तक प्रत्यक्ष रूप से देखे गए ग्रहों में सबसे कम वजन वाला है। 
ग्रह का एक साल 110 साल से भी ज्यादा


वैज्ञानिकों का कहना है कि ये अपने तारे से इतनी दूर है कि इसे एक चक्कर पूरा करने में सैकड़ों साल लगते हैं। हमारी धरती का तो एक चक्कर 365 दिन में पूरा हो जाता है, इसलिए हमारा 1 साल 365 दिन का होता है। इस ग्रह का ऑर्बिटल पीरियड इतना लंबा है कि इसे घूमने में जमाना लग जाता है। यानी इस ग्रह का एक साल हमारी पृथ्वी के 110 साल से भी ज्यादा होता है। नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने इस नए ग्रह की सीधी तस्वीरें खींची हैं। बता दें कि अब तक ज्यादातर एक्सोप्लैनेट को तारों की रोशनी या परछाई से ढूंढा जाता था। इस बार जेम्स वेब ने तो इस ग्रह की साफ तस्वीर खींचकर इतिहास बना दिया है। इतने छोटे ग्रह को देखना आसान नहीं, क्योंकि तारे की चमक सब कुछ ढक लेती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह तारा युवा है।  ग्रह और इसका तारा सिस्टम सिर्फ 60 लाख साल पुराना है। हमारे सूरज की उम्र 4.6 अरब साल है। ऐसे में यह सूरज के सामने अभी बच्चा ही है।

60 लाख साल पुराना ग्रह


पेरिस ऑब्जर्वेटरी के एस्ट्रोफिजिसिस्ट डॉ. ऐनी-मैरी लाग्रांज ने खोज टीम का नेतृत्व किया है। उन्होंने कहा कि हम एक ऐसी प्रणाली को देख रहे हैं जो सिर्फ 60 लाख साल पुरानी है। यानी यह ग्रहों के विकास की शुरुआती अवस्था है। यह खोज रोमांचक है। बता दें कि लग्रेंज की अगुआई में वैज्ञानिकों ने खास तकनीक का इस्तेमाल किया है। उन्होंने टेलीस्कोप में एक ऐसी तकनीक लगाइई जो सूर्य ग्रहण जैसा अवसर पैदा करता है। इससे तारे की तेज रोशनी और आसपास के ग्रह को देखना आसान हो गया। इस तकनीक के कारण ही टीडब्ल्यू ए 7 बी चमकते स्रोत के रूप में दिखा है। जिसके आसपास मलबे की एक पतली सी रिंग भी है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि बहुत कम संभावना है कि इसके आसपास कोई बैकग्राउंड गैलेक्सी भी होगी। सारे सबूत यही कहते हैं कि ये एक नया ग्रह ही है।
शनि की तरह एक गैस जायंट ग्रह


टीडब्ल्यू ए 7 बी शनि ग्रह की तरह एक गैस जायंट है,। यह खोज सिर्फ इस ग्रह तक सीमित नहीं रहेगी। आने वाले दिनों में वैज्ञानिक हमारी आकाशगंगा में अन्य ग्रहों की खोज करेंगे। इससे ग्रहों के बनने की प्रक्रिया, उनकी संरचना और जीवन की संभावनाओं को समझने में भी मदद मिलेगी। बता दें कि सबसे पहला एक्सोप्लैनेट 1992 में खोजा गया था। तब से अब तक लगभग 6,000 एक्सोप्लैनेट्स ढूंढे जा चुके हैं। इनमें से ज्यादातर को सीधे देखा नहीं गया। जेम्स वेब की इस खोज ने डायरेक्ट इमेजिंग के क्षेत्र में नया कीर्तिमान बनाया है।