नई दिल्ली। गीजा के पिरामिड मिस्र की प्राचीन सभ्यता की सबसे अद्भुत और रहस्यमयी कृतियों में से एक हैं। दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में शामिल ये पिरामिड आज भी वैज्ञानिकों और इतिहासकारों को हैरान करते हैं। लेकिन, अब पिरामिड का रहस्य खुल गया है। वैज्ञानिकों ने कब्रों के नीचे छिपी अलग दुनिया का पता लगाया है।
मेनकौर के पिरामिड के नीचे मिली संरचनाएं
वैज्ञानिकों ने मिस्र के पिरामिडों के नीचे एक दूसरा शहर छिपा होने का दावा किया है। यह दावा तब सामने आया है जब बीते मार्च में शोधकर्ताओं ने गीजा के पिरामिडों की नीचे कुछ गुप्त कक्ष मिलने की बात कही थी। हालांकि, उस समय वैज्ञानिकों ने कक्ष की बात को यह कह कर खारिज कर दिया था कि जमीन में घुसने वाला रडार सतह से हजारों फीट नीचे देखने में सक्षम नहीं है। इस बार मेनकौर के पिरामिड के नीचे ऐसी संरचनाएं मिली हैं जो तीन मुख्य पिरामिडों में सबसे छोटा है।
दोनों पिरामिडों के स्तंभ एक ही
शोधकर्ताओं की टीम में शामिल फिलिपो बियोन्डी के अनुसार, मैनकोरे और खफरे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि 90 प्रतिशत ऐसी संभावना है कि दोनों पिरामिडों के स्तंभ एक ही है। इन पिरामिड्स को लगभग 4500 वर्ष पहले बनाया गया था। इस अध्ययन की न तो किसी ने समीक्षा की और न ही किसी वैज्ञानिक पत्रिका में इसको प्रकाशित किया गया। कई वैज्ञानिकों ने इस दावे को खारिज करते हुए फर्जी खबर बताया है।
रेत के नीचे बहुत बड़ा स्ट्रक्चर छिपा
मिस्र के पिरामिडों का रहस्य इतना गहरा है कि अभी तक इस बात का पता नहीं लगाया जा सका कि प्राचीन काल के लोगों ने इन विशाल, खगोलीय रूप से संरेखित संरचनाओं का निर्माण किस तरह से किया होगा। गीजा परिसर में ग्रेट स्फिंक्स के साथ-साथ खुफु, खफरे और मैनकोर पिरामिड भी शामिल है। हालांकि शोधकर्ताओं की टीम का मानना है कि पिरामिडों के सुराग छिपे हैं। जो दिख रहा है उससे बहुत कुछ अधिक है। रेत के नीचे एक बहुत बड़ा स्ट्रक्चर छिपा हुआ है।
प्राचीन सभ्यता द्वारा बनाया गया शहर
शोधकर्ताओं के अनुसार, टोमोग्राफी डेटा का विश्लेषण मेनकौरे के नीचे बड़ी संरचनाओं की मौजूदगी का संकेत देता है। टीम का मानना है कि छिपे हुए शहर 38 हजार वर्ष पहले एक पुरानी खोई हुई प्राचीन सभ्यता द्वारा बनाए गए थे। उन्होंने अपने दावों को इस धारणा पर आधारित किया है कि 12 हजार 800 वर्ष पहले एक उन्नत प्रागैतिहासिक समाज धूमकेतु द्वारा नष्ट कर दिया गया था। हालांकि, अत्यंत विशाल पत्थरों से निर्मित ये संरचनाएं अभी भी वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बनी हुई हैं। उन्होंने इस पर और शोध करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।