इन दो रूटों पर नहीं उड़ते विमान, वैज्ञानिकों ने बड़े रहस्य से उठाया पर्दा

जनप्रवाद  ब्यूरो, नई दिल्ली। शोधकर्ताओं ने एक बड़े राज से पर्दा उठा दिया है। वैज्ञानिकों ने यह बता दिया कि प्रशांत महासागर और माउंट एवरेस्ट के ऊपर से विमान क्यों नहीं उड़ते। पायलट को भले ही लंबी दूरी तय करनी पड़ जाए, लेकिन वे इस रास्ते से कभी नहीं गुजरते हैं। वे दूसरे मार्गों को चुनते हैं।
प्रशांत महासागर के ऊपर नहीं उड़ते विमान 


हवाई जहाजों ने दुनिया को करीब ला दिया है। सभी देशों के हवाई जहाज रोजाना हजारों की संख्या में उड़ानें भरते हैं। साथ ही कुछ ही घंटों में आप एक देश से दूसरे देश पहुंच जाते हैं। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि दो ऐसी जगह हैं जिससे सभी एयरलाइंस दूर रहते हैं। ये जगह है प्रशांत महासागर और माउंट एवरेस्ट है। प्रशांत महासागर पृथ्वी पर सबसे बड़ा और सबसे गहरा महासागर है। यह धरती के कुल पानी का करीब 46 फीसदी हिस्सा कवर करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार प्रशांत महासागर पानी की एक विशाल दुनिया है। जिसके पार उड़ान भरने के लिए बहुत अधिक मात्रा में ईंधन की आवश्यकता होती है। प्रशांत महासागर के पार सीधे उड़ान भरने के बजाय, अधिकांश कमर्शियल उड़ानें घुमावदार मार्ग लेती हैं। वे एक सीधी दूरी पर उड़ान भरने के मुकाबले छोटी होती हैं। प्रशांत महासागर के ऊपर से उड़ान न भरने का दूसरा कारण यह है कि हवाई जहाज हमेशा समतल सतह पर आपातकालीन लैंडिंग करते हैं। साथ ही, सुरक्षा के लिहाज से विमान को उस रूट में उड़ाया जाता है जहां अधिकतम हवाई अड्डे मौजूद हों ताकि आपात स्थिति में हवाई जहाज को आसानी से उतारा जा सके। प्रशांत महासागर में पानी ही पानी होने की वजह से इसके ऊपर विमान नहीं उड़ते।
प्रशांत महासागर  में उड़ान भरना खतरनाक


एक और अहम वजह है मौसम। प्रशांत महासागर क्षेत्र अपनी कठोर और अप्रत्याशित मौसम स्थितियों के लिए जाना जाता है। तेज हवाएं विमानों के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकती हैं। यह क्षेत्र भयंकर तूफानों से भी ग्रस्त है, इसलिए इसके ऊपर से उड़ान नहीं भरी जाती है। इस क्षेत्र को लेकर एक और बड़ी चिंता इसका भूभाग है। इस क्षेत्र में कुछ सबसे ऊबड़-खाबड़ पहाड़ शामिल हैं, जिनकी चोटियां 7,000 मीटर से भी ऊंची हैं। ऐसी ऊंची चोटियों पर उड़ान भरना थोड़ा खतरनाक हो सकता है, खासकर किसी आपात स्थिति के दौरान। अगर किसी विमान के इंजन में कोई समस्या आती है, तो सुरक्षित इमर्जेंसी लैंडिंग के लिए कोई विकल्प नहीं होगा। इस रास्ते से गुजरने के दौरान कुछ अजीबोगरीब घटनाएं देखी जाती थी। जैसे जहाज का असंतुलित होना, मैग्नेटिक कंपास की दिशा का बदलना जैसी चीजें घटित हुई थी। इसी वजह से यहां का नाम सुनते ही कुछ लोग डर जाते हैं और कुछ लोग उतावले हो जाते हैं।
माउंट एवरेस्ट का भी अपना रहस्य 


इसी तरह माउंट एवरेस्ट का भी रहस्य है। एयरलाइंस इन रास्तों के बजाय अन्य वैकल्पिक रास्ते को चुनती हैं। भले ही इसके लिए हवाई जहाज को लंबी दूरी क्यों नहीं तय करनी पड़े। हिमालयी क्षेत्र में मौसम संबंधी सारी घटनाएं क्षोभमंडल में घटती हैं। हिमालय की सभी चोटियों की ऊंचाई 20 हजार फीट से ऊंची हैं। बता दें कि यह हवाई उड़ान भरने के लिए आदर्श नहीं है क्योंकि हवाई जहाज मौसम संबंधी सारी घटनाओं से बचने के लिए 30,000 फीट ऊपर उड़ते हैं। जिसका केंद्र समताप मंडल होता है। अगर पायलट हिमालय के रास्तों को चुनते हैं तो उन्हें मौसम संबंधी घटनाओं से गुजरना पड़ता है। यहां आक्सीजन की कमी है। साथ ही हिमालय की चोटियों पर वायु गति भी असमान्य रहती है। जिससे एयरलाइनों की गति पर बुरा असर पड़ सकता है। वहीं, यात्रियों को भी यात्रा में असहजता हो सकती है। हिमालय के क्षेत्रों में कम जनसंख्या होने के कारण नेविगेशन रडार सर्विस भी न के बराबर है। जिससे पायलट को जमीन से सम्पर्क साधने में बहुत कठिनाई हो सकती है और आपातकाल स्थिति में पायलट को कोई मदद भी नहीं मिल पाएगी। इसलिए हिमालय या पैसिफिक महासागर के ऊपर से उड़ने की जगह उड़ानें घूमकर जाना बेहतर समझती हैं।