एयर डिफेंस सिस्टम को मिलेगा मजबूत कवच, दुश्मन देशों की नहीं होगी खैर

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। आपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने अपनी सैन्य तैयारियों को और तेज कर दिया है। इस क्रम में एयर डिफेंस सिस्टम को और मजबूत कवच मिलने जा रहा।  इसमें तीन नई मिसाइलें शािमल हैं। ये मिसाइलें भारत पर हमला करने सोचने वाले दुश्मन देश के घर में घुसकर मारेंगी। आपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने दुनिया को अपनी ताकत दिखाई। इस दौरान भारतीय वायु सेना और थल सेना के एकीकृत वायु रक्षा तंत्र ने पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइल हमलों को पूरी तरह नाकाम कर दिया। इस सफलता के भारत अब अपनी वायु रक्षा प्रणालियों को और मजबूत करने में जुट गया। प्रोजेक्ट कुशा के बाद भारत अब अपनी बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली में तीन नई स्वदेशी प्रणालियों को शाम्मिल करेगा। इनमें क्यूआर-एसएएम, वीएल-एसआरएसएएम और आकाश-एनजी का नाम शामिल है।  बता दें कि 7-8  मई की रात को भारत ने पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था। भारत के जवाब पाकिस्तान ने भी हमले किए थे। इस टकराव के कारण हवाई खतरों, जैसे ड्रोन और क्रूज मिसाइलों से निपटने की आवश्यकता पर ज्यादा जोर दिया। भारत अब अपनी वायु रक्षा प्रणाली को और सुदृढ़ करने के लिए कई रक्षा तंत्र प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। ये प्रणालियां पूरी तरह स्वदेशी हैं।  भारत सीमा पर प्रोजेक्ट कुशा को तैनात करेगा। डीआरडीओ द्वारा विकसित एक लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है। इसकी रेंज 350 किलोमीट तक होगी। यह प्रणाली 2028-29 तक तैनात होने की उम्मीद है। इसका उद्देश्य रूस से प्राप्त एस-400 का स्वदेशी विकल्प प्रदान करना है। कुशा लड़ाकू विमान, क्रूज मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम होगी। यह भारत की बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली की बाहरी परत को मजबूत करेगी। जिससे मध्यम और निम्न-स्तरीय प्रणालियों को छोटे और निकटवर्ती खतरों पर ध्यान केंद्रित करने की सुविधा मिलेगी। कुशा के साथ ही भारत क्यूआर-एसएएम को भी सीमा पर तैनात करेगा। यह  एक त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली है। यह डीआरडीओ द्वारा विकसित की गई है। यह निम्न-स्तरीय हवाई खतरों, जैसे ड्रोन, क्रूज मिसाइल और लड़ाकू विमानों को रोकने के लिए डिजाइन की गई है। इस प्रणाली के रडार 360-डिग्री कवरेज प्रदान करते हैं। यह पूरी तरह स्वचालित कमांड और कंट्रोल सिस्टम से लैस है। क्यूआर-एसएएम ने 2024 में कई सफल परीक्षण पूरे किए हैं। इसमें ड्रोन झुंडों को नष्ट करने की क्षमता प्रदर्शित की गई। यह प्रणाली विशेष रूप से मोबाइल युद्ध परिदृश्यों के लिए उपयुक्त है। जहां त्वरित तैनाती और प्रतिक्रिया आवश्यक है। यह मिसाइल तंत्र यद्ध की स्थिति में गेम-चेंजर साबित होगा।  इसी तरह डीआरडीओ और भारतीय नौसेना के सहयोग से वीएल-एसआरएसएएम का विकास किया जा रहा है। यह एक लंबवत प्रक्षेपित प्रणाली है। जो भारतीय वायु सेना और नौसेना दोनों के लिए डिजाइन की गई है। यह आकाश प्रणाली का पूरक है। निम्न-स्तरीय खतरों, जैसे ड्रोन, हेलीकॉप्टर और क्रूज मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है। वर्टिकल लांच क्षमता के कारण यह सभी दिशाओं में मार कर सकती है। वीएल-एसआरएसएएम ने 2024 में समुद्री और स्थलीय दोनों वातावरणों में सफल परीक्षण पूरे किए है। यह प्रणाली नौसेना के जहाजों और तटीय रक्षा प्रतिष्ठानों पर तैनाती के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है।  भारतीय सीमा पर आकाश-एनजी मिसाइल भी तैनात की जाएगी। यह मौजूदा आकाश मिसाइल प्रणाली का उन्नत संस्करण है। इसे डीआरडीओ ने विकसित किया है। यह मध्यम दूरी की प्रणाली लड़ाकू विमान, क्रूज मिसाइल और ड्रोन को नष्ट करने में सक्षम है। आकाश-एनजी में उन्नत रडार और सीकर तकनीक शामिल है। जो इसे बराक-8 जैसी आयातित प्रणालियों के समकक्ष बनाती है। यह प्रणाली इजराइली बराक-8 के भारतीय विकल्प के रूप में देखी जा रही है। आकाश-एनजी ने 2024 में कई सफल परीक्षण पूरे किए हैं। जिसमें 100 प्रतिशत इंटरसेप्शन दर के साथ ड्रोन और मिसाइल लक्ष्यों को नष्ट किया गया। यह प्रणाली 2025-26 तक तैनात हो जाएगी। आकाश-एनजी की बढ़ी हुई रेंज और सटीकता दुश्मन देश को धूल चटा देगी।