जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। इसरो और नासा ने बड़ी खुशखबरी दी है। दुनिया का पहला ड्यूअल रडार अर्थ आब्जर्वेशन सैटेलाइट यानी निसार की लांचिंग डेट का एलान कर दिया है। इसे इसी महीने श्रीहरिकोटा से लांच किया जाएगा। 13 हजार करोड़ की लागत वाला यह उपग्रह जंगलों की निगरानी से लेकर ग्लेशियरों की हलचल और जमीन में होने वाले बदलावों पर नजर रखेगा।
दुनिया का सबसे ताकतवर सैटेलाइट
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो और नासा 16 जुलाई को दुनिया का सबसे ताकतवर सैटेलाइट लांच करने जा रहा है। इस सैटेलाइट को भारत और अमेरिकी स्पेस एजेंसी ने साथ मिलकर तैयार किया है। निसार सैटेलाइट दुनिया का ऐसा अकेला सैटेलाइट होगा जो दुनिया के किसी भी इलाके में होने वाली आपदा की सटीक जानकारी दे सकेगा। बता दें कि निसार दुनिया का पहला ड्यूअल रडार अर्थ आब्जर्वेशन सैटेलाइट भी है। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लांच किया जाएगा। यह दुनिया का पहला और सबसे महंगा अर्थ आॅब्जर्वेशन सैटेलाइट है। यह जंगलों के ऊपर से भी अंदर तक देखने में सक्षम है। यह दो फ्रीक्वेंसी के ड्यूल बैंड रडार से धरती के ऊपर से लेकर नीचे तक की हर हलचल को देख सकेगा। करीब 13 हजार करोड़ रुपये की लागत वाला यह सैटेलाइट मिशन धरती पर हो रहे हर छोटे-बड़े बदलाव पर नजर रखेगा। अगर जमीन में हलचल होगी तब भी निसार रिपोर्ट देगा। इसके अलावा जंगल की कटाई, ग्लेशियर का पिघलने और फसलों की खराब हालत की भी जानकारी देगा।
जंगलों की ऊपर से लेगा तस्वीर
निसार मिशन पर काम कर चुके वैज्ञानिक राधा कृष्णन ने कहा यह यूरोपीय एजेंसी के सैटेलाइट से अलग है। यह यह जंगलों के ऊपर से नीचे तक आसानी से देख सकता है। पेड़ों की घनी छांव हो या बर्फ की मोटी परत, यह उसके नीचे हो रहे बदलाव भी सटीकता से पकड़ सकता है। उन्होंने आगे बताया कि भारत के चंद्रयान में भी दो एल और एस-बैंड के ड्यूल रडार हैं। इसके बावजूद यह धरती की निगरानी नहीं करता बल्कि चांद का डाटा एकत्र कर रहा है। ऐसे में निसार धरती की निगरानी करने वाला यह दुनिया का पहला सैटेलाइट है जिसमें दो अलग अलग बैंड के रडार हैं। यही वजह है कि यह घने जंगल के नीचे भी आसानी से रडार के जरिए डाटा एकत्र करेगा।
धरती की सतह की तस्वीरें ले सकता निसार
निसार सैटेलाइट दिन और रात दोनों समय धरती की सतह की तस्वीरें ले सकता है। ये कैमरे से सीधी तस्वीरें लेने की बजाय रडार सिग्नल का इस्तेमाल कर बादल, धुआं और राख के आर-पार जाकर साफ तस्वीरें देते हैं। यही वजह है कि बाढ़, जंगल में आग या ज्वालामुखी विस्फोट जैसी आपदाओं के समय ये सैटेलाइट बेहद कारगर होते हैं। रडार सिग्नल घने जंगलों और पेड़ों के अंदर तक पहुंच सकते हैं। ये उपग्रह पूरी पृथ्वी का मानचित्र तैयार करेगा। साथ ही इसमें हो रहे भौगोलिक बदलावों को हर 12 दिन में दो बार रिकॉर्ड करेगा। इनमें धरती की सतह से लेकर इकोसिस्टम में बदलाव, समंदर के जलस्तर में बदलाव और भूजल स्तर से जुड़े आंकड़े जमा करना प्रमुख है।
30 सितंबर 20214 को समझौता
बता दें कि निसार मिशन को लेकर इसरो और नासा ने 30 सितंबर 2014 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस मिशन को 2024 की शुरूआत में ही लांच किया जाना था, लेकिन उपग्रह को बनाने में आ रही मुश्किलों के कारण ऐसा नहीं हो सका। नासा के विशेषज्ञों ने निर्धारित किया कि 12 मीटर के रडार एंटीना रिफ्लेक्टर में कुछ सुधार किए जाने की जरूरत है। इसके लिए उसे अमेरिका ले जाना होगा। अक्तूबर में ये एंटीना नासा भेजा गया। जिसके बाद इसे लेकर परीक्षण शुरू किए गए। इस उपग्रह के कुछ हिस्सों को अमेरिका में तैयार किया गया है और फिर भारत भेजा गया। भारत आने के बाद पहले मई या जून में इसकी लांचिंग होने वाली थी। कुछ वजहों से देरी के बाद आखिरकार 16 जुलाई को इसे लांच करने का फैसला लिया गया है।