देश में होगी पहली डिजिटल जनगणना, 30 लाख कर्मचारी करेंगे पूरा

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। आखिरकार 16 साल बाद देश में जनसंख्या की गणना कराई जाएगी। नियमों के अनुसार, ये जनगणना साल 2021 में कराई जानी थी। कोरोना संक्रमण से फैली महामारी के कारण इसे टाल दिया गया था। इससे पहले साल 2011 में जनगणना हुई थी। अब नई जनगणना पूरी तरह डिजिटल होगी। 30 लाख कर्मचारी इसे पूरा करेंगे। 

जनगणना की तारीखों का एलान


मई महीने में केंद्र सरकार ने सबसे पहले देश में जाति जनगणना का किया। उसके बाद सरकार ने जनसंख्या की गणना की तारीखों का भी एलान कर दिया। भारत में 1 अक्तूबर 2026 से जाति गणना के साथ जनगणना शुरू होगी। यह देशभर में दो चरणों में कराई जाएगी। 

डिजिटल भारत की बनेगी पहचान


जनगणना 2027 देश में पहली डिजिटल जनगणना होगी, जिसमें लोग खुद अपने बारे में जानकारी दर्ज कर सकेंगे। मकानों की गणना या सूचीकरण का चरण, अप्रैल 2026 तक शुरू होने की संभावना है। यह देश में 16वीं जनगणना है, जो 16 साल बाद होगी। इससे पहले 2011 में जनगणना हुई थी। इसके लिए 30 लाख से ज्यादा गणनाकर्ताओं और पर्यवेक्षकों को जनगणना करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। वे घर-घर जाकर गणना करेंगे। संपूर्ण जनगणना प्रक्रिया पर 13,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने की संभावना है। हालांकि यह साफ नहीं है कि इस जनगणना के दौरान राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट किया जाएगा या नहीं।

नागरिकों से पूछे जाएंगे ये सवाल
नागरिकों से ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे जैसे कि वे अपने घर में कौन सा अनाज खाते हैं, पीने के पानी का मुख्य स्रोत, प्रकाश का मुख्य स्रोत, शौचालयों तक पहुंच, शौचालय का प्रकार, और अपशिष्ट जल निकास की क्या व्यवस्था है। इसके अलावा, नहाने की सुविधा की उपलब्धता, रसोई और एलपीजीस पीएनजी कनेक्शन की उपलब्धता, खाना पकाने के लिए प्रयुक्त होने वाला मुख्य ईंधन तथा रेडियो, ट्रांजिस्टर और टेलीविजन की उपलब्धता के बारे में भी जानकारी ली जाएगी। लोगों से जनगणना घर के फर्श, दीवार और छत की प्रमुख सामग्री, जनगणना घर की स्थिति, परिवार में सामान्य रूप से रहने वाले कुल व्यक्तियों की संख्या और परिवार की मुखिया महिला है या नहीं, के बारे में पूछा जाएगा।

पूरे देश में मार्च 2027 से जातीय जनगणना


पूरे देश में मार्च 2027 से जातीय जनगणना कराई जाएगी। हालांकि, इससे पांच महीने पहले अक्तूबर 2026 में पहाड़ी राज्यों में जातीय जनगणना शुरू करा ली जाएगी। गृह मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के अलावा हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फ से प्रभावित होने वाले राज्यों में जनगणना 1 अक्तूबर 2026 से ही मानी जाएगी। 

जातीय आधार पर मिलेगा डेटा
पीएम मोदी ने 30 अप्रैल 2025 को एलान किया था कि इस बार भारत में जनगणना को जातीय आधार पर करवाया जाएगा। केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की बैठक में लिए गए फैसले की जानकारी देते हुए बताया था कि मोदी सरकार अगली जनगणना के साथ जातीय आधार पर लोगों की गणना भी करेगी। गौरतलब है कि इससे पहले भी कई मौकों पर जातिगत जनगणना की मांग उठती रही है। लेकिन सरकार ने इन मांगों को दरकिनार कर दिया था। राजनीतिक जानकार इसे मोदी सरकार का मास्टस्ट्रोक बता रहे हैं। इसस न केवाल विपक्षी दलों पर बढ़त बनाने में मदद मिलेगी बल्कि चुनावी राज्यों में इसका फायदा भी मिलेगा।

1811 में हुई जनगणना की शुरूआत 


देश में जनगणना की शुरूआत 1881 में हुई थी। पहली बार हुई जनगणना में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। इसके बाद हर दस साल पर जनगणना होती रही। 1931 तक की जनगणना में हर बार जातिवार आंकड़े भी जारी किए गए। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया। आजादी के बाद से हर बार की जनगणना में सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के ही जाति आधारित आंकड़े जारी किए। अन्य जातियों के जातिवार आंकड़े 1931 के बाद कभी प्रकाशित नहीं किए गए। बता दें कि, जनगणना 1951 से प्रत्येक 10 साल के अंतराल पर की जाती थी (2021 में कोरोना महामारी के कारण टली)। जनगणना के आंकड़े सरकार के लिए नीति बनाने और उन पर अमल करने के साथ-साथ देश के संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम होते हैं। वहीं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को भी अपडेट करने का काम बाकी है। 
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तेज डाटा प्रोसेसिंग और समय की बचत 


डिजिटल जनगणना से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि डाटा जल्दी प्रोसेस होगा और अंतिम रिपोर्ट केवल 9 महीनों में जारी की जा सकेगी। मोबाइल ऐप में ड्रॉपडाउन विकल्प, कोडेड सवाल और फेच जैसे कई अन्य फीचर्स होंगे, जो रिकॉर्ड को दोहराव से बचाएंगे। इससे कागजी काम घटेगा, समय बचेगा और गलतियों की संभावना भी कम होगी। आईसीआर तकनीक संगठित उत्तरों को पहचानकर उन्हें तुरंत प्रोसेस करने में मदद करेगी।
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पेपरलेस प्रक्रिया
पहले गणनाकर्ताओं को भारी-भरकम कागजी शेड्यूल ले जाना पड़ता था। वहीं अब मोबाइल ऐप्स ने इसकी जरूरत खत्म कर दी है। ऐप्स में ड्रॉपडाउन मेन्यू के जरिए ज्यादातर सवालों के लिए प्री-कोडेड जवाब होंगे, जिससे डेटा इकट्ठा करना तेज और आसान होगा।
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कोड डायरेक्ट्री
जनगणना के दूसरे चरण में कुछ सवालों के लिए एक अलग कोड डायरेक्ट्री दी जाएगी, जिसमें संभावित जवाबों और उनके कोड्स की लिस्ट होगी। यह गैर-संख्यात्मक या वर्णनात्मक जवाबों को व्यवस्थित करने में मदद करेगा। मोबाइल ऐप्स के जरिए डेटा सीधे डिजिटल रूप में दर्ज होगा। ज्यादातर सवालों के जवाब ड्रॉपडाउन मेन्यू से चुने जाएंगे, जिससे डेटा एंट्री में गलतियों की संभावना कम होगी। ऐप्स में पहले से भरे गए घरों के रिकॉर्ड्स को एडिट करने की सुविधा होगी, जिससे डेटा संशोधन आसान होगा। ये ऐप्स 16 भाषाओं में उपलब्ध होंगे। इनमें हिंदी, अंग्रेजी और 14 क्षेत्रीय भाषाएं शामिल हैं।