तेज हो रही पृथ्वी के घूमने की गति, छोटा होने लगेगा दिन

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। पृथ्वी को लेकर एक नई रिपोर्ट ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों में हलचल मचा दी है। इस रिपोर्ट के अनुसार हमारी धरती इसी जुलाई और अगस्त में तेज रफ्तार से घूमने लगेगी। जिससे दिन छोटे हो जाएंगे। इस रफ्तार में वृद्धि के पीछे धरती के गर्भ में होने वाली हलचल और ग्लेशियरों का पिघलना माना जा रहा है।

पृथ्वी को लेकर वैज्ञानिकों ने दी जानकारी


हमारे सौरमंडल और पृथ्वी को लेकर वैज्ञानिकों ने बहद दिलचस्प जानकारी शेयर की है। उनके अनुसार आने वाले कुछ दिनों में दुनिया पृथ्वी के इतिहास के सबसे छोटे दिनों का अनुभव करेगी। खगोल भौतिकीविदों ने अपनी एक रिसर्च के आधार पर पाया है कि पृथ्वी की घूर्णन गति बीते पांच साल से बढ़ रही है। बता दें कि 2020 से पृथ्वी अपनी धुरी पर सामान्य से अधिक तेजी से घूम रही है। इसका असर अब दिखाईपड़ेगा। तेज घूमने की गति के कारण धरती पर दिन छोटा होना लगेगा। इसका मतलब है कि अगस्त से पृथ्वी का च्रक्र 24 घंटे से ज्यादा का हो जाएगा।  खगोल भौतिकीविद् ग्राहम जोन्स ने सबसे छोटे दिन के लिए तारीखें बताई हैं। उनके अनुसार इसकी शुरआत 9 जुलाई या 22 जुलाई से हो सकती है। अगर इस दौरान पृथ्वी की रफ्तार तेज नहीं हुई हुई तो अगले महीने अगस्त 5 तारीख से ऐसा हो सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी पर प्रभाव की वजह से ऐसा होगा। यह दिन सामान्य दिन से 1.66 मिलीसेकंड से ज्यादा छोटा होगा।
स्थिर नहीं है पृथ्वी का घूर्णन ,


वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का घूर्णन अब पूरी तरह से स्थिर नहीं रह गया है। रिसर्च बताती हैं कि 2020 में किसी अज्ञात कारण से हमारा ग्रह तेजी से घूमने लगा। 2021 में ही मानव जीवन पर इसका असर दिखाई देने लगा था। यही से दिन का दिन का समय अनवरत घटने लगा था। 2021 में एक दिन सामान्य से 1.47 मिलीसेकंड कम दर्ज किया गया था। 2022 में यह 1.59 मिलीसेकंड कम हो गया। इसके बाद 5 जुलाई, 2024 को भी दिन का समय कम रिकॉर्ड किया गया। यह सामान्य 24 घंटों से 1.66 मिलीसेकंड कम था।

रफ्तार में वृद्धि के पीछे कई वजहें 


वैज्ञानिकों का कहना है कि 2025 में 9 और 22 जलाई या 5 अगस्त से दिन के छोटे होने की शुरुआत होगी। इस समय चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी के भूमध्य रेखा से सबसे दूर रहेगी। रिसर्च के अनुसार इस प्रक्रिया के पीछे कई कारक है।  इस रफ्तार में वृद्धि के पीछे कई वजहें हो सकती हैं। धरती के गर्भ में होने वाली हलचल इसका एक कारण हो सकती है। इसके अलावा, ग्लेशियरों के पिघलने से द्रव्यमान में हो रहे बदलाव भी भूमिका निभा सकता है। अल नीनो और ला नीना जैसी घटनाएं भी धरती की चाल को प्रभावित कर सकती हैं। धरती की इस तेज रफ्तार से वैश्विक समय के कैल्कुलेशन में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है। हो सकता है कि 2029 में पहली बार एक लीप सेकंड को कम करना पड़े। इस अध्ययन में एक और बात सामने आई है। शोध के अनुसार धरती हर साल अपनी धुरी पर 365 से ज्यादा बार चक्कर लगाती है। इसी से साल के दिन तय होते हैं, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था। कैल्कुलेशन से पता चलता है कि अतीत में धरती को सूरज का एक चक्कर पूरा करने में 490 से लेकर 372 दिन तक लगते थे। वैज्ञानिकों के अनुसार दिन के कुछ मिलीसेकंड कम होने का सामान्य जनजीवन पर कोई खास फर्क नहीं होगा। अगर यह प्रवृत्ति जारी रही तो करीब 50 अरब साल में पृथ्वी का घूर्णन चंद्रमा की कक्षा के साथ तालमेल बिठा लेगा। तब हमेशा चंद्रमा का एक ही पक्ष दिखाई देगा। यानी इस ग्रह का केवल आधा हिस्से ही दिखाई देगा।