जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। अब समुद्री रास्ते से इंडियन आर्मी के टैंक सीधेपाकिस्तान के कराची तक पहुंच जाएंगे। युद्ध की स्थिति में ये दुश्मन की सेना पर कहर बनकर टूट पड़ेगे। इसमें टी-90 देखकर पाकिस्तान के पसीने छूट जाएंगे।
भारतीय सेनाओं में कई बड़े बदलाव
आपरेशन सिंदूर के बाद से ही भारतीय सेनाओं में कई बड़े बदलाव हो रहे हैं। तीनों सेनाओं की एकीकृत कमान बनाने कोशिशें भी तेज हो गई हैं। भविष्य के युद्धों में भारत की तीनों सेनाएं एक साथ एक दूसरे के संसाधनों का प्रयोग करते हुए लड़ेंगी। इसी क्रम में भारतीय सेनाओं के संयुक्त अभ्यास त्रिशूल के दौरान अपनी युद्धक तकनीक का प्रदर्शन किया। इसे देखकर पाकिस्तान की रूह कांप गई। गुजरात के माधवपुर समुद्र तट पर भारतीय सेना के टैंक पहली बार समुद्र के रास्ते सफलतापूर्वक उतारे गए। यहां से ये टैंक सीधे पाकिस्तान के कराची तक पहुंच सकते हैं। बता दें कि सेना के टैंक आमतौर पर वहीं तक पहुंच पाते हैं जहां जमीनी रास्ते होते हैं। हल्के टैंकों को एयरलिफ्ट कर ऊंचे पहाड़ों में भी पहुंचाया जा सकता है। अब पहली बार हुआ है जब भारत ने समुद्री रास्ते से टैंक को जमीन पर उतारने में कामयाबी हासिल की।
टैंको को सफलतापूर्वक उतारा
समुद्री रास्ते से टैंको को सफलतापूर्वक उतारकर सेना ने दिखा दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो भारतीय टैंक कुछ ही घंटों में कराची तक पहुंच सकते हैं। यह भारत की रणनीतिक क्षमता का शक्तिशाली प्रदर्शन है। अभ्यास के दौरान लैंडिंग क्राफ्ट मैकेनाइज्ड यानी एलसीएम का उपयोग किया गया। इससे पैदल सेना पलटन और एक भारी बख्तरबंद टैंक को समुद्री रास्ते से सफलतापूर्वक तट पर उतारा गया। इसमें टी-90 टैंक पर विशेष रहा। रक्षा विश्लेषकों ने समुद्र के रास्ते टैंकों के परिचालन को बड़ी उपलब्धि बताया। इसमें कहा गया है कि यह क्षमता दुश्मन के तटीय इलाकों में तुरंत कार्रवाई करने में काबिल बनाती है। बता दें कि पाकिसतन का कराची अत्यंत संवेदनशील सामरिक और आर्थिक केंद्र है। अगर इस शहर पर सीधा हमला किया जाएगा तो उसकी रीढ़ टूट जाएगी।
युद्धाभ्यास त्रिशूल की चर्चा
युद्धाभ्यास त्रिशूल में भारतीय थलसेना, नौसेना और वायुसेना की संयुक्त ताकत का प्रदर्शन दुनिया ने देखा। इस अभ्यास की पाकिस्तान में भी खूब चर्चा हुई। इस अभ्यास से भारत ने संदेश दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो समुद्र भी भारतीय टैंकों के लिए बाधा नहीं बन पाएगा। बता दें कि आॅपरेशन सिंदूर के बाद यह सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास था। गुजरात के पोरबंदर तट पर समाप्त हुए इस अभ्यास ने भारत की सैन्य एकजुटता, तकनीकी समन्वय और युद्धक क्षमताओं को नई ऊंचाई दी है। शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने इसे नई मिसाल बताया। दक्षिणी कमान के जनरल आफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ, पश्चिमी नौसेना कमान के प्रमुख वाइस एडमिरल कृष्ण स्वामीनाथन इस कार्यक्रम में शामिल रहें। दक्षिण-पश्चिमी वायु कमान के प्रमुख एयर मार्शल नागेश कपूर ने इस युद्धाभ्यास की निगरानी की। अभ्यास में लगभग 30,000 सैनिक, 25 युद्धपोत और कई लड़ाकू विमान शामिल रहे। वायुसेना ने लगभग 1,450 उड़ानें भरीं और नई तकनीकों का परीक्षण किया। एयर मार्शल कपूर ने बताया कि इस अभ्यास का उद्देश्य किसी रणनीतिक संदेश देना नहीं था, बल्कि नई तकनीक को परखना और संयुक्त युद्ध रणनीतियों को मजबूत बनाना था। उन्होंने कहा कि इससे तीनों सेनाएं और ज्यादा सशक्त होकर लौट रही हैं। लेफ्टिनेंट जनरल सेठ के अनुसार त्रिशूल में स्वदेशी सैन्य उपकरणों का भी सफल परीक्षण किया गया। उन्होंने कहा कि इस अभ्यास में थल सेना की नई रुद्र ब्रिगेड को भी आॅपरेशनल वैलिडेशन मिला है। दक्षिणी कमान के जवान पिछले तीन महीनों से इस अभ्यास की तैयारी में जुटे थे। वाइस एडमिरल स्वामीनाथन ने अनुसार त्रिशूल में विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत भी शामिल था। नौसेना ने कैरीयर बैटल ग्रुप के साथ जटिल समुद्री युद्धाभ्यास किए और अपनी उभयचर क्षमताओं का प्रदर्शन किया।



