मंगल के रहस्यों से भारतीय वैज्ञानिकों ने उठाया पर्दा, कैसे बदलता है मौसम खुला राज

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल पर उठते धूल के बवंडरों, आंधियों और बर्फीले बादलों के बीच छिपे मौसम के रहस्य की परतें खोल दी हैं। भारतीयों के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने इस ग्रह के कई अन्य राज भी खोले हैं। पहली बार यह पता चला है कि कैसे ये अद्भुत प्राकृतिक घटनाएं मंगल के वातावरण को प्रभावित कर रही हैं। 
भारतीय वैज्ञानिकों ने किया बड़ा खुलासा 


मंगल ग्रह को लेकर भारतीय वैज्ञानिकों ने बड़ा खुलासा किया है। इससे यह गुत्थी सुलझ गई है कि मंगल पर कैसे मौसम बनता है। उसमें कैसे बदलाव आता है। शोध में मंगल पर दिखने वाले सूक्ष्म बफीर्ले बादलों की भी पहचान की गई है। ये बादल मुख्यत: विषुवत रेखा, ऊंचे ज्वालामुखी, ध्रुवों और ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में बनते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं। एफीलियन क्लाउड बेल्ट, जो गर्मियों में बनते हैं जब मंगल सूर्य से सबसे दूर होता है और पोलर हुड क्लाउड, जो सर्दियों में ध्रुवों के पास दिखाई देते हैं। भारत के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी एनआईटी राउरकेला के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में यह अंतरराष्ट्रीय अध्ययन किया गया है। जिसमें पहली बार विस्तार से यह समझाया है कि कैसे ये प्राकृतिक घटनाएं मंगल के वातावरण को आकार देती हैं। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि कैसे मंगल ग्रह में बदलाव आ रहा है।
बादलों के निर्माण से उठा रहस्य


वैज्ञानिकों का कहना है कि मंगल ग्रह पर बादलों का निर्माण वायुमंडल में मौजूद धूल की मात्रा पर निर्भर करता है। जिससे पता चलता है कि धूल और बादलों का आपसी संबंध मंगल के मौसम को दिशा देता है। यह शोध न केवल लाल ग्रह की मौजूदा जलवायु को समझने में अहम है बल्कि भविष्य के मानव अभियानों को आसान बनाएगा। इसके अलावा वहां जीवन की संभावनाओं पर हो रहे अध्ययन पर भी असर डालेगा। यह अध्ययन एनआईटी राउरकेला के प्रोफेसर जगबन्धु पांडा और उनके शोधार्थी अनिर्बान मंडल के निर्देशन में हुआ है। इसमें संयुक्त अरब अमीरात विश्वविद्यालय के डॉ. बिजय कुमार गुहा, डॉ. क्लाउस गेबार्ड  और चीन के सुन यात-सेन विश्वविद्यालय के डॉ. झाओपेंग वू ने भी सहयोग दिया है।

न्यू एस्ट्रोनॉमी रिव्यू में प्रकाशित शोध


शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल न्यू एस्ट्रोनॉमी रिव्यू में प्रकाशित किए गए हैं। यह अध्ययन भारत के मार्स आर्बिटर मिशन समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंगल अभियानों में जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन में मंगल के मौसमी चक्र मौसम को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख तत्वों धूल भरा बवंडर, धूलभरी आंधियां और बर्फीले बादलों का गहन विश्लेषण किया है। बता दें कि कई बार मंगल पर इतनी तीव्र धूलभरी आंधियां उठती हैं कि पूरा ग्रह इसकी चपेट में आ जाता है। जैसे ही सूरज की किरणें सतह की धूल को गर्म करती हैं वैसे ही हवा की रफ्तार बढ़ जाती है। इसके बाद अधिक धूल उठती है, जिससे आंधी और तेज हो जाती है। यह प्रक्रिया वायुमंडलीय तापमान में भारी उतार-चढ़ाव लाती है।
प्रोफेसर जगबन्धु पांडा ने किया नेतृत्व


प्रोफेसर जगबन्धु पांडा का कहना है कि मंगल के मौसम की सटीक समझ केवल वैज्ञानिक रुचि का विषय नहीं है। यह भविष्य के मानव अभियानों की सफलता और अंतरिक्ष यानों की सुरक्षा के लिए भी बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह अध्ययन एक ओर जहां मंगल के जटिल मौसमी तंत्र की समझ को व्यापक बनाता है। दूसरी ओर भविष्य में वहां की जलवायु का पूवार्नुमान लगाने में भी सहायक हो सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जैसे-जैसे अंतरिक्ष मिशन मंगल की ओर अग्रसर होंगे वैसे-वैसे वहां के बारे में अधिक खुलासा होगा। शोध वहां की जलवायु और सतह की विशेषताओं को बेहतर समझने की राह आसान करेंगे।