भारत के पहले केबल-स्टे रेल ब्रिज का उद्घाटन

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के लिए 6 जून का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। पीएम मोदी ने 46 हजार करोड़ रुपये कि परियोजनाओं के साथ दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल चिनाब ब्रिज का तोहफा दिया। यह भारत का पहला केबल-स्टे रेल ब्रिज है। इसकी पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। साथ ही पीएम मोदी ने श्री माता वैष्णो देवी कटरा से श्रीनगर तक वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस खास वीडियो में हम आपको चिनाब ब्रिज के इतिहास और उसकी खासियतों से रूबरू कराएंगे।

फैसले से लेकर उद्घाटन तक में 22 साल का समय 


पीएम मोदी ने चिनाब ब्रिज का उद्घाटन किया। चिनाब रेलवे ब्रिज 272 किलोमीटर लंबे उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक का सबसे अहम पड़ाव है। महज 1315 मीटर लंबा यह पुल पूरे प्रोजेक्ट का सबसे कठिन और सबसे ज्यादा समय में बनने वाला हिस्सा है। इस ब्रिज को बनाने के फैसले से लेकर उद्घाटन तक में 22 साल का समय लगा। 2004 में 1983 में मंजूर हुई जम्मू-उधमपुर परियोजना अपने तय समय से देरी से पूरी हुई। इसमें अनुमानित 50 करोड़ से 10 गुना ज्यादा 515 करोड़ का खर्च आया। इस परियोजना के तहत पहाड़ों के बीच से 20 बड़ी सुरंगों का निर्माण हुआ। इनमें सबसे बड़ी सुरंग 2.5 किमी तक लंबी है। 
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 रूट पर 158 पुल 


इसके अलावा रूट पर 158 पुल भी हैं, जिनमें सबसे ऊंचा पुल 77 मीटर ऊंचा है। साल 2005 में ही उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लाइन प्रोजेक्ट को जल्द पूरा करने के निर्देश दिए गए। इस प्रोजेक्ट की कठिनाई को देखते हुए इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा मिला।  इस पूरे प्रोजेक्ट में एक बड़ी चुनौती रियासी में चिनाब नदी के ऊपर एक ब्रिज का निर्माण रहा। इसकी वजह चिनाब नदी पहाड़ों के बीच एक ऐसे खाईनुमा रास्ते के बीच बहती है, जिसके ऊपर पुल बनाना दुष्कर कार्य था। ऐसे में 2003 चिनाब पुल को मंजूरी मिली।
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ब्रिज को बनाने में दो दशक का समय लगा


चिनाब रेलवे ब्रिज को बनाने में दो दशक का समय लग गया। इसके शुरू होने के बाद कश्मीर घाटी और जम्मू के बीच सीधा रेल लिंक बन गया। यह पहली बार होगा कि लोग कन्याकुमारी से सीधा कश्मीर घाटी तक जा सकेंगे।  रेलवे टेक्नोलॉजी नाम की वेबसाइट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्र में रास्ते कहीं संकरे तो कहीं घुमावदार हैं। इस बीच कई खाई और मैदानी रास्ते भी हैं। चिनाब नदी पहाड़ों के बीच जिस खाई में मौजूद है, वह काफी गहरी है। आमतौर पर पुल को बनाने के लिए कैंटीलिवर तकनीक, सस्पेंशन ब्रिज तकनीक या केबल ब्रिज तकनीक इस्तेमाल की जाती है। लेकिन चिनाब के आसपास की जमीन को देखते हुए ब्रिज को स्टील आर्क डिजाइन की तर्ज पर बनाने का फैसला हुआ।  

कनाडा की कंपनी बनाया ब्रिज का डिजाइन 


इस ब्रिज का डिजाइन कनाडा की कंपनी डब्ल्यूएसपी ने बनाया। इस ब्रिज को 17 स्टील के खंभों पर खड़ा किया गया है। यह एक आर्क यानी धनुषाकार लोहे के बेस पर स्थापित हैं। यह आर्क चिनाब नदी के अगल-बगल मौजूद पहाड़ियों पर टिका है। यह पुल के बीचोंबीच 469 मीटर के दायरे से सटा है। बाकी का दायरा खंभों पर ही स्थापित है। इसे बनाने के लिए 3000 फीट ऊंचाई तक काम करने वाली केबल क्रेन्स को चिनाब नदी के दोनों किनारों पर स्थापित किया गया। इन क्रेन्स के जरिए ही स्टील को चरणबद्ध तरीके से पहाड़ी के बीच में पुल बनाने के काम में लाया गया। इस प्रोजेक्ट के लिए सलाहकार के तौर पर डब्ल्यूएसपी के अलावा जर्मनी की लियोनहार्ट एंड्रा शामिल रही। इसके अलावा पुल के निर्माण की जिम्मेदारी कोंकण रेलवे ने उठाई। 
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चिनाब ब्रिज को बनाया गया मजबूत 


जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं की वजह से चिनाब ब्रिज को मजबूत बनाया गया है। जितनी भी स्टील इस प्रोजेक्ट में इस्तेमाल हुई, कोंकण रेलवे उसकी इंजीनियरिंग लैब में ब्लास्ट लोड टेस्टिंग कराई गई है। यह धमाकों को झेलने की क्षमता रखता है।  यह ब्रिज चिनाब नदी पर 1,315 मीटर लंबा है और नदी के तल से 359 मीटर ऊंचा है। यह ऊंचाई दिल्ली के कुतुब मीनार से 5 गुना और पेरिस के एफिल टावर से भी ज्यादा है। इस ब्रिज का मुख्य आर्च 467 मीटर लंबा है और इसे 28,000 मीट्रिक टन स्टील से बनाया गया है। ब्रिज को बनाने में एक खास केबल क्रेन सिस्टम का इस्तेमाल हुआ, जो भारतीय रेलवे में पहली बार उपयोग किया गया। यह सिस्टम 915 मीटर चौड़े खड्ड में सामग्री ले जाने के लिए 100 मीटर ऊंचे पायलनों पर टिका था। यह ब्रिज 266 किमी/घंटा की तेज हवाओं और भूकंप जैसी प्राकृतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह इंजीनियरिंग का एक बेमिसाल नमूना है, जो भारत की तकनीकी ताकत को दिखाता है।