अफ्रीका महाद्वीप में तेजी से फट रही है धरती, बन सकता है नया महासागर

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। अफ्रीका महाद्वीप में धरती तेजी से फट रही है। भीषण तबाही के बीच कई देश दो हिस्सों में बंट जाएंगे।  इससे नया महासागर का निर्माण हो सकता है। इथोपिया में जमीन के नीचे वैज्ञानिकों ने बड़ा खुलासा किया है। 
नई रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा 


वैज्ञानिकों ने नई रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। शोधकर्ताओं ने पूर्वी अफ्रीका के देश इथियोपिया के अफार क्षेत्र के नीचे एक रहस्यमयी पल्स यानी धड़कन खोजी है। यह धीरे-धीरे महाद्वीप को दो भागों में बांट रही है। अगर यही प्रक्रिया जारी रही तो एक दिन इस महाद्वीप को चीरते हुए एक नया महासागर बन जाएगा। यह खोज यूनिवर्सिटी आफ साउथैम्पटन समेत 10 अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के वैज्ञानिकों की एक संयुक्त रिसर्च का नतीजा है। रिसर्च टीम ने पाया है कि इथियोपिया के अफार क्षेत्र के नीचे पिघला हुआ मैग्मा ऊपर की ओर दबाव डाल रहा है। इसी दबाव को धड़कन की तरह से महसूस किया जा रहा है। इस हलचल से महाद्वीप टूट रहा है। रिसर्च बताती है कि अफ्रीका की जमीन के नीचे बढ़ रहा ये दबाव भविष्य में इसकी भौगोलिक स्थिति बदल देगा। 
अफार क्षेत्र के नीचे की परत का अध्ययन


अफ्रीकी देश इथियोपिया के अफार क्षेत्र के नीचे की परत और मेंटल का अध्ययन करने वाली टीम का कहना है कि टेक्टोनिक प्लेटें जब एक दूसरे से दूर हटती हैं। इस प्रक्रिया में जमीन खिंचती है और पतली होती जाती है। इस प्रक्रिया के लगातार चलने से आने वाले सालों जमीन टूटकर अलग हो जाएगी। इस प्रतिक्रिया के फलस्वरूव ही एक नए महासागर का निर्माण होगा। रिसर्च टीम ने बताया है कि धरती के नीचे दिल की धड़कन जैसी प्रक्रिया को समझने के लिए उन्होंने अफार क्षेत्र और मेन इथियोपियन रिफ्ट से ज्वालामुखी चट्टानों के 130 से ज्यादा नमूने इकट्ठा किए। रिसर्च टीम ने सतह के नीचे की परत और मेंटल का अध्ययन करने के लिए मौजूदा डेटा और उन्नत सांख्यिकीय मॉडल का भी इस्तेमाल किया।

डेविड कीर ने किया प्रक्रिया पर बड़ा खुलासा 


बता दें कि अफार के नीचे बढ़ते हुए पदार्थ को मेंटल प्लूम कहा जाता है। रिसर्च के सह-लेखक डेविड कीर ने इस प्रक्रिया पर बड़ा खुलासा किया। उन्होंने कहा कि मेंटल प्लम इसके ऊपर टेक्टोनिक प्लेट के लिए जिम्मेदार होता है। इसका मतलब है कि प्लम क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग तरीके से फैलेगा। उन्होंने कहा कि नए महासागर का निर्माण एक बहुत धीमी प्रक्रिया है। यह सतत जार रहेगा। यह पृथ्वी के भीतर बड़े बदलाव का संकेत है। कीर ने कहा कि जमीन के नीचे की हलचल का सतही ज्वालामुखी, भूकंप गतिविधि और महाद्वीपीय विखंडन की प्रक्रिया की व्याख्या करने के तरीके पर गहरा प्रभाव पड़ता है। गहरे मेंटल अपवेलिंग टेक्टोनिक प्लेटों के आधार के नीचे बह सकते हैं। ज्वालामुखी गतिविधि को उस स्थान पर केंद्रित हो सकती है जहां टेक्टोनिक प्लेट सबसे पतली होती है।
केन मैकडॉनल्ड का भी दावा


इस साल जनवरी में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर केन मैकडॉनल्ड ने भी ऐसा ही दावा किया था। उन्होंने कहा कि पूर्वी अफ्रीका में महाद्वीप के अलग होने की प्रक्रिया पहले के मुकाबले तेज हो गई है। सोमालिया, इथियोपिया, केन्या और तंजानिया का हिस्सा एक नया भूखंड बनाकर मुख्य अफ्रीका से अलग हो जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर ये सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो एक दिन हिंद महासागर की लहरें रिफ्ट वैली में घुसकर इसे समुद्र में बदलकर रख देंगी। इस रिसर्च का पहला चरण पूरा हो चुका है। अब वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि अफार के नीचे लावे की धारा कितनी तेजी से बह रही है। धरती के ऊपर किस तरह का बदलाव लाने वाली है। इस स्टडी को प्रकृति भूविज्ञान जर्नल में 25 जून को प्रकाशित किया गया है।