जनप्रवाद ब्यूरो नई दिल्ली। भारत को अब फ्रांस और अमेरिका की जरूरत नहीं रहेगी। डीआरडीओ इन दोनों देशों को झटका देने का बड़ा प्लान तैयार किया है। सबमरीन से लेकर युद्धक विमानों के लिए भारत ने एक नहीं बल्कि तीन-तीन इंजनों को बनाने की दिशा में काम तेज कर दिया है। यानी आने वाले दिनों में हमारे लड़ाकू विमान स्वदेश निर्मित इंजन के साथ दुश्मनों को ढेर करते नजर आएंगे।
पॉवरफुल इंजन की तलाश पूरी
काफी समय से पॉवरफुल इंजन के लिए तरस रहे भारत ने अब बड़ी शुरुआत कर दी है। फाइटर जेट्स, रॉकेट, शिप या टैंकों के लिए भारत खुद इंजन का निर्माण करेगा। इससे न केवल दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म होगी बल्कि पेशेवरों को देश में ही अच्छा रोजगार मिलेगा। बता दें कि ऑपरेशन सिंदूर की शानदार सफलता ने सेना में एक नया माहौल बना दिया है। देश में बने हथियारों ने दुश्मन को हैरान कर दिया। आकाश मिसाइल और इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम ने हवाई सुरक्षा में बहुत मदद की। इससे पता चला कि हम अपने देश में ही हथियार बनाने में सक्षम हैं। अब भारत इन सब जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वदेशी इंजनों के विकास पर काम कर रहा है। इससे 2047 तक भारत विकसित और सुरक्षित देश बन सके।
कावेरी 2.0 के प्रोजेक्ट की शुरुआत
बता दें कि भारत ने पाकिस्तान की मिसाइलों और ड्रोन को रोकने के लिए कई तरीके अपनाए। इसमें डीआरडीओ द्वारा बनाए गए डी-4 एंटी-ड्रोन सिस्टम ने बड़ा काम किया। इसके अलावा ज्वाइंट वेंचर वेपन सिस्टम बराक और ब्रह्मोस मिसाइल सफल रहे। इनकी कामयाबी को देखते हुए भारत ने दूसरे अन्य बड़े कार्यक्रम भी शुरु किए। इनमें अरसे से धीमे पड़े कावेरी 2.0 के प्रोजेक्ट में भी तेजी लोने का प्लान शामिल है। बता दें कि डीआरडीओ ने कावेरी प्रोजेक्ट के तहत एयरो इंजन बनाने का काम शुरू किया था। इसमें 50 किलो न्यूटन का ड्राई थ्रस्ट वाला इंजन बनाने में सफलता मिली है। इस इंजन का इस्तेमाल मानव रहित लड़ाकू विमान में किया जा सकता है। साथ ही, इसे मानव चालत विमान में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह प्रोग्राम 1980 के दशक में शुरू हुआ था। इसमें कुछ रुकावटें आईं। अब कावेरी 2.0 पर तेजी से काम शुरू हो गया है। भारत सरकार इस पर पैसे खर्च कर रही है। तकनीकी दिक्कतों को दूर करने के लिए विदेशी कंपनियों के साथ समझौता करने में भी भारत अब पीछे नहीं रहेगा। उसने रूस जैसे परंपरागत दोस्तों की तरफ हाथ बढ़ा दिया है।
भारत-रूस के बीच 24.8 करोड़ डॉलर का समझौता
भारत-रूस के बीच 24.8 करोड़ डॉलर के समझौता हुआ है। जिसके तहत टी-72 टैंकों को 1,000 एचपी इंजन से लैस करने के लिए तकनीकी हस्तांतरण शामिल है। जिससे मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, भारत और रूस के बीच 240 एएल -31 एफपी एयरो इंजन के लिए एक खरीद समझौते को मंजूरी दी गई है। जिनका निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड करेगा। भारत कावेरी इंजन का भी परीक्षण रूस में कर रहा है। जिसे स्वदेशी रूप से विकसित किया जा रहा है। ट्रिपल-इंजन रणनीति में दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र भारतीय युद्धपोतों के लिए गैस टरबाइन इंजन का विकास है। इसके तहत भारतीय नौसेना के मुख्य युद्धपोतों के लिए इंजन बनेंगे। बता दें कि हम अभी हम मरीन इंजन के लिए पूरी तरह से यूक्रेन और अमेरिका पर निर्भर हैं।
स्वदेशी टैंकों के लिए बनेगा इंजन
इसी तरह भारत स्वदेशी टैंकों के लिए एक विश्वसनीय और मजबूत इंजन विकसित करेगा। इससे रेगिस्तान, मैदान या फिर चीन के खिलाफ पहाड़ी क्षेत्रों में लड़ने के लिए हल्के टैंक तैयार किए जाएंगे। इसी तरह के-9 वज्र' जैसा स्व-चालित होवित्जर हमारी तोपखाने का मुख्य आधार होगा। जिसके लिए एक शक्तिशाली और विश्वसनीय इंजन की आवश्यकता होती है। ऐसे में दात्राण 1500 एचपी इंजन का विकास होगा। यह इंजन वर्तमान में प्रोटोटाइप परीक्षण से गुजर रहा है। यह भारत के अर्जुन के साथ ही फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल को ताकत देंगेा। ऐसे इंजन को स्व-चालित टैंकों के मुताबिक संशोधित किया जा सकता है। इन योजनाओं से भारत का जल-थल और नभ में काेई जोड़ नहीं रहेगा।