जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। 2050 तक धरती का महासागर सिस्टम पूरी तरह खत्म हो जाएगा। वैज्ञानिकों की इस वार्निंग ने पूरे दुनिया की टेंशन बढ़ा दी है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाया गया तो इसको बेहद भयानक परिणाम होंगे।
हैनसन ने दी थी कड़ी चेतावनी
1988 में नासा के वैज्ञानिक जेम्स हैनसन ने अमेरिकी संसद में खड़े होकर बड़ी चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि धरती का तापमान बढ़ रहा है। अगर इंसान नहीं संभले तो आने वाले वक्त में इसका बड़ा नुकसान होगा। उस समय बहुत लोगों ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। अब, करीब 37 साल बाद नासा के वैज्ञानिकों ने उससे भी बड़ी चेतावनी दी है। यानी इस बार बार मामला और भी गंभीर हो चुका है। नासा के वैज्ञानिकों ने अंतरराष्ट्रीय टीम के साथ मिलकर रिसर्च किया है। टीम की नई रिपोर्ट बताती है कि पिछले 15 सालों में जलवायु परिवर्तन की रफ्तार पहले से कहीं ज्यादा तेज हो गई है। इस रिसर्च में सबसे डराने वाली बात सामने आई है। इसमें कहा गया है कि अटलांटिक मेरिडियोनल ओवरटर्निंग सकुर्लेशन नाम की समुद्री प्रणाली कमजोर होती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर यह सिस्टम टूट गया या रुक गया, तो पूरी धरती का मौसम चक्र बदल जाएगा।
धरती के हीट इंजन में खराबी
एएमओसी को आप धरती का हीट इंजन मान सकते हैं। यह समुद्र के नीचे चलने वाला एक विशाल सिस्टम है जो गर्म पानी को भूमध्यरेखा से उत्तरी अटलांटिक की ओर ले जाता है। वहां यह पानी ठंडा होकर नीचे चला जाता है, और फिर किसी दूसरे हिस्से में ऊपर आ जाता है। यह एक लगातार चलने वाली साइकिल है जो पूरी धरती में गर्मी और ऊर्जा को बराबर बांटती रहती है। यह सिस्टम ही दुनिया के तापमान, बारिश के पैटर्न और समुद्र के स्तर को नियंत्रित रखता है। अगर इसमें कोई गड़बड़ी हुई, तो मौसम का पूरा संतुलन बिगड़ सकता है।
वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर यह सिस्टम बंद हो गया, तो पूरा ग्लोबल मौसम सिस्टम हिल जाएगा। इससे किसी कहीं-कहीं इतनी बारिश होगी कि पूरा का पूरा शहर जलगमग्न हो जाएगा। वहीं कही-कहीं ऐसा सूखा पड़ेगा कि लोग जल बिन तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। इससे चारो आरे तबाही का मंजर होगा। इसका उदाहरण है कि अमेरिका के पूर्वी हिस्सों में समुद्र का स्तर अचानक बढ़ सकता है। इससे लाखों घर खतरे में आ जाएंगे। यूरोप में गर्मियां बहुत ज्यादा गर्म और सर्दियां बेहद ठंडी हो सकती हैं। एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका जैसे हिस्सों में सूखा, बाढ़, तूफान और हीटवेव जैसी घटनाएं पहले से कहीं ज्यादा बार होंगी। खेती पर असर पड़ेगा, और कई देशों में अनाज की कमी जैसी स्थिति बन सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब यह खतरा 100 साल दूर नहीं, बल्कि अगले 20 से 30 सालों में सामने आ सकता है।
पूरी तरह हाथ से बाहर नहीं गए हालात
वैज्ञानिकों का कहना है कि हालात अभी पूरी तरह हाथ से बाहर नहीं गए हैं। अगर दुनिया अभी कदम उठाए, तो इस संकट को रोका जा सकता है। वैज्ञानिकों ने कुछ उपाय भी सुझाए हैं। इनमें कार्बन टैक्स और डिविडेंड सिस्टम, जिससे प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों पर रोक लगाना शामिल है। इसके अलावा सरकारों और नेताओं को भी अब अल्पकालिक फायदे छोड़कर लंबे समय की सोच रखनी होगी।




