आज रात आमसान में होगी सितारों की बारिश

नई दिल्ली। आज रात आसमान में टूटते तारों की शानदार आतिशबाजी देखने को मिलेगी। अगर आपने यह चांस मिस कर दिया तो आपको 20 साल का इंतजार करना पड़ेगा। यह उल्कापात हैली धूमकेतु से जुड़ा है जिसे एटा एक्वारिड्स कहते हैं। आज रात अंतरिक्ष में बेहद आश्चर्यजनक और दुर्लभ नजारा दिखने वाला है। इसके लिए खगोलविदों ने तैयारी शुरू कर दी है। हमारी पृथ्वी हैली धूमकेतू के धूल भरे मलबे से होकर गुजरेगी, जिससे अंतरिक्ष में उल्कापिंडों की बारिश होगी। इस दौरान आसमान में आतिशबाजी जैसा नजारा दिखेगा।  अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने बताया कि वैसे तो हर साल मई के महीने में उल्कापिंडों की बारिश होती है। इस बार यह आज से 8 मई तक देखी जा सकती है। यह 6 मई यानी आज अपने शबाब पर होगी। उस समय आसमान में हर मिनट एक उल्कापात नजर आएगा। उनकी रफ्तार 1,48,000 मील प्रति घंटा के आसपास रहेगी। यह आतिशबाजी इतनी चमकीली होगी कि इसे खुली आंखों से देखा जा सकेगा। नासा ने बताया कि एटा एक्वेरिड का अगला विस्फोट अब से लगभग 20 साल बाद यानी 2046 में होगा। 

आज पीक पर होगा उल्कापात


अमेरिकन मीटियोर सोसायटी के अनुसार, एटा एक्वारिड्स उल्कापात का पीक टाइम 6 मई को रात 8.43 बजे होगा। एटा एक्वारिड्स को 6 मई को सुबह होने से कुछ घंटों पहले आसानी से देखा जा सकता है। अगर आप इस प्राकृतिक नजारे को बेहतरीन तरीके से देखना चाहते हैं तो बायनॉकुलर्स और टेलीस्कोप का इस्तेमाल कर सकते हैं। बता दें कि एटा एक्वेरिड उल्कापात दक्षिणी गोलार्ध में सबसे अच्छी तरह से नजर आता है। भूमध्य रेखा के उत्तर में मौजूद लोग भी यह आतिशबाजी देख सकते हैं। इस उल्का बौछार का चमकदार बिंदु कुंभ नक्षत्र में स्थित है, जो एटा एक्वेरी तारे के पास है। अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि उल्कापात क्यों होते हैं। इसका जवाब है कि उल्काओं की बौछार ऐसी खगोलीय घटना है जो अक्सर रात के समय आसमान में दिखती है।  ये उल्काएं ब्रह्मांड के मलबे की धाराओं के चलते बनती हैं जिन्हें उल्कापिंड कहा जाता है। ये बेहद तेज रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं। ज्यादातर उल्काएं रेत के दाने से भी छोटी होती हैं। इसलिए उनमें से लगभग सारी गल जाती हैं। उल्काएं बेहद दुर्लभ स्थिति में ही पृथ्वी की सतह से टकराती हैं। बता दें कि हैली धूमकेतू 3000 साल पुराना है, जो हर 76 साल पर हमारे आंतरिक सोलर सिस्टम से होकर गुजरता है। इस दौरान यह अपना धूल भरा मलबा छोड़ जाता है। जब पृथ्वी अपनी परिक्रमा पथ पर चलते हुए उसे मलबे में घुसती है तो वायुमंडल के संपर्क में आने के चलते ये पिंड जल उठते हैं। इस दौरान हम अंतरिक्ष में प्रकाश की लकीरें दिखने लगती है। ये मलबे कई बार समूह में भी होते हैं। ऐसे में जब यह वायुमंडल से टकराते हैं तो यह उल्कापिंड विस्फोट का नजारा दिखता है।