जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने एक और सुपर-अर्थ की खोज की है। इसकी बनावट बेहद खास है। ऐसे में वैज्ञानिकों को अनुमान है कि इस खोज से ब्रह्मांड के कई अनोखे रहस्य खुलेंगे। नासा के ट्रांजिटिंग एक्सोप्लेनेट सर्वे सैटेलाइट यानी टीईएसएस और चिली के वेरी लार्ज टेलीस्कोप यानी वीएलटी पर लगे टीईएसएस एस्प्रेसो कैमरों ने एक नए सुपर-अर्थ ग्रह की खोज की है। यह रिसर्च ब्रह्मांड में कुछ खास तरह के एक्सोप्लेनेट्स की कमी को समझने में मदद कर सकती है। जिससे खगोल विज्ञान में कई सवालों के जवाब मिल सकते हैं। यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह पता चलेगा कि कुछ ग्रहों पर वायुमंडल क्यों नहीं और कुछ पर है। इस नए ग्रह का नाम टीओआई 776 बी है। इसे टीईएसएस ने अपनी ट्रांजिट पद्धति से खोजा है। बता दें कि टीईएसएस तारों की चमक में छोटे बदलावों को मापता है। जो ग्रह के तारे के सामने से गुजरने के कारण होते हैं। टीओआई 776 बी का आकार पृथ्वी से 1.5 गुना बड़ा है। साथ ही इसका द्रव्यमान 5 गुना अधिक है। यह ग्रह अपने तारे के चारों ओर केवल 8 दिनों में चक्कर लगाता है। वीएलटी पर लगे उपकरण ने इस ग्रह की पुष्टि की है। इसके द्रव्यमान को मापने के लिए रेडियल वेलोसिटी पद्धति का इस्तेमाल किया गया है। बता दें कि सुपर-अर्थ ऐसे ग्रह होते हैं जो पृथ्वी से बड़े लेकिन नेपच्यून से छोटे होते हैं। वैज्ञानिकों ने देखा है कि ब्रह्मांड में सुपर-अर्थ और मिनी-नेपच्यून के बीच एक अजीब कमी है। जिसे रेडियस वैली कहा जाता है। इस कमी का कारण अभी तक पूरी तरह समझा नहीं जा सका था। टीओआई 776 बी की खोज इस पहेली को सुलझाने में मदद कर सकती है। शोधकतार्ओं का मानना है कि यह कमी ग्रहों के वायुमंडल के नष्ट होने से जुड़ी हो सकती है। टीओआई 776 बी जैसे ग्रह, जो अपने तारे के बहुत करीब हैं। तीव्र तारकीय विकिरण के कारण अपने वायुमंडल को खो सकते हैं। एस्प्रेसो कैमरों के डेटा से पता चला कि इस ग्रह का घनत्व बहुत अधिक है। इससे यह संकेत मिलता है कि यह एक चट्टानी ग्रह है जिसने अपना प्रारंभिक हाइड्रोजन-हीलियम वायुमंडल खो दिया है। बता दें कि इस पद्धति को फोटोइवैपोरेशन कहते हैं। जब तारे की ऊर्जा ग्रह के वायुमंडल को अंतरिक्ष में उड़ा देती है। रिसर्च इसलिए खास है क्योंकि यह रेडियस वैली के रहस्य को समझने में मदद कर सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सुपर-अर्थ बनने वाले कई ग्रह शुरू में गैसीय वायुमंडल के साथ बनते हैं। अपने तारे की गर्मी और विकिरण के कारण वे इसे खो देते हैं और चट्टानी कोर में बदल जाते हैं। यह इसका जीवंत प्रमाण हो सकता है। यह ग्रह अपने तारे की हैबिटेबल जोन से बाहर है। इसकी खोज अन्य सौर मंडलों में ग्रहों के निर्माण और विकास को समझने में मदद करेगी। वैज्ञानिकों का मानना है भविष्य में और भी ऐसे ग्रहों की खोज हो सकती है। वैज्ञानिक अब इस ग्रह के वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं। इससे ग्रह के वायुमंडल और उसमें मौजूद तत्वों के बारे में जानकारी मिल सकेगी। जिससे ग्रहों के विकास की प्रक्रिया को और स्पष्ट समझा जा सकेगा।
वैज्ञानिकों ने की एक और सुपर-अर्थ की खोज
01-Apr-2025