धंस रही है एनसीआर की जमीन, आठ करोड़ लोग होंगे प्रभावित

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। नई दिल्ली समेत पांच महानगरों को लेकर बेहद चौंकाने वाला शोध सामने आया है। इस शोध के अनुसार इन शहरों की जमीन धीरे-धीरे धंस रही है। इससे एक-दो लाख नहीं बल्कि आठ करोड़ लोग प्रभावित होंगे।

सनसनीखेज खुलासा 

अमेरिका स्थित वर्जीनिया पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट एंड स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सनसनीखेज खुलासा किया है। अध्ययनकर्ताओं ने नासा द्वारा एकत्र किए गए उपग्रह डेटा का विश्लेषण किया। डेटा में पाया गया कि नई दिल्ली, चेन्नई समेत पांच महानगरों में 900 वर्ग किलोमीटर जमीन धंस सकती है। इससे आठ करोड़ लोग प्रभावित होंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि पांच महानगरों के 1 करोड़ 3 लाख से अधिक इमारतों पर अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि प्रति वर्ष चार मिलीमीटर की दर से जमीन के धंसने का खतरा है।
अवैध गतिवधियों से समस्या

शोधकर्ताओं का कहना है यह खतरनाक गति से हो रहा है। ऐसे में जमीन के भीतर के ऊपर हो रही अवैध गतिवधियों पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए। अगर ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन बड़ी तबाही आएगी। इससे न केवल इमारतों को खतरा है बल्कि बिजली लाइनों को नुकसान पहुंच सकता है और ढांचागत कमजोरी बढ़ सकती है। नई दिल्ली में भू-धंसाव की दर 51 मिलीमीटर प्रति वर्ष दर्ज हुई। यह अन्य शहरों में सबसे ज्यादा है। अन्य धंसाव वाले शहरों की बात करें तो चेन्नई दूसरे नंबर पर आता है। यहां जमीन धंसने की दर 31.7 मिमी प्रति वर्ष है। वहीं मुंबई में धंसाव की दर 26 मिमी प्रति वर्ष आंकी गई है। इसी तरह कोलकाता में 16.4 मिमी प्रति वर्ष की दरें देखी गईं हैं।
एनसीआर के अन्य इलाके शामिल 

अध्ययन में दिल्ली-एनसीआर के अन्य इलाके भी शामिल किए गए हैं। इनमें से हॉटस्पॉट के रूप में पहचाने गए बिजवासन में 28.5 मिमी प्रति वर्ष है। हरियाणा के फरीदाबाद में धंसाव की दर 38.2 मिमी प्रति वर्ष आंकी गई है।  गाजियाबाद भी हॉटस्पॉट क्षेत्र में शामिल है। यहां जमीन धंसाव की गति 20.7 मिमी प्रतिवर्ष तेज धंसाव देखा गया। एनसीआर के अन्य शहरी क्षेत्रों में भी स्थानीय स्तर पर उभार पाया गया। दिल्ली-एनसीआर में द्वारका के पास वाले इलाके, जहां भू-धंसाव प्रति वर्ष 15 मिलीमीटर से अधिक की दर से बढ़ रहा है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि शहरों ने बुनियादी ढांचे और भू-जल प्रबंधन नीतियों को नहीं सुधारा तो आज जो दबाव दिख रहा, वह भविष्य में बड़ी आपदाओं का रूप ले सकता है। इससे आने वाले दिनों में मानव जीवन में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
50 वर्ष बाद मुश्किल होंगे हालात

नेचर सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों के अनुसार धंसाव की यही दर जारी रही तो अगले 50 वर्षों में बड़ी तबाही आएगी। यहां भारी मात्रा में इमारतों और ढांचागत क्षति का सामना करना पड़ सकता है। अध्ययन में मुंबई, कोलकाता और बंगलुरू की इमारतों का भी अध्ययन किया गया। वर्जीनिया पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट एंड स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रमुख लेखक नितेशनिर्मल सदाशिवम ने भूधंसाव के कारणों का खुलासा किया। उनके अनुसार शहरों में भूमि धंसाव का सबसे प्रमुख कारक अत्यधिक भूजल का उपयोग है। इसके अलावा अवैध निर्माण और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भवनों का भार भी भूमि धंसाव में योगदान दे रहा है।