जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने की दिशा में भारत ने ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब देश में होवरक्राफ्ट्स का निर्माण किया जाएगा। इन होवरक्राफ्ट्स तटरक्षक बल में शामिल होने से देश की निगरानी ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। ये होवरक्राफ्ट तेज स्पीड से चलते हैं। वहीं कम गहराई वाले इलाकों में भी आॅपरेशन कर सकते हैं। किसी भी आपात स्थिति में ये तेजी से रिस्पॉन्स दे सकते हैं।
स्वदेशी होवरक्राफ्ट से बढ़ेगी निगरानी
गोवा में भारतीय तटरक्षक बल के लिए पहले स्वदेशी होवरक्राफ्ट के निर्माण का कार्य शुरू हो गया है। तटरक्षक बल के डिप्टी डायरेक्टर जनरल, इंस्पेक्टर जनरल सुधीर साहनी ने निर्माण कार्य की शुरूआत का निरीक्षण किया। बता दें कि 24 अक्तूबर 2024 को रक्षा मंत्रालय और शिपयार्ड के बीच 6 होवरक्राफ्ट के निर्माण को लेकर समझौता हुआ था। इसी के तहत चौगुले शिपयार्ड में इसका निर्माण किया जाएगा। इसका डिजाइन ब्रिटेन के ग्रिफॉन होवरवर्क मॉडल पर आधारित है। इसे भारतीय जरूरतों के मुताबिक ढाला गया है। जिससे ये देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा में अहम भूमिका निभा सके। यह आत्मनिर्भर भारत अभियान का हिस्सा है।
बढ़ जाएगी तटरक्षक बल की ताकत
इन होवरक्राफ्ट्स के शामिल होने से तटरक्षक बल की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। ये होवरक्राफ्ट तेज स्पीड से चलते हैं, कम गहराई वाले इलाकों में भी आॅपरेशन कर सकते हैं और किसी भी आपात स्थिति में तेजी से रिस्पॉन्स दे सकते हैं। ये परियोजना आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत समुद्री सुरक्षा में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। होवरक्राफ्ट घुसपैठ विरोधी अभियानों, मानवीय सहायता और प्राकृतिक आपदा प्रतिक्रिया के लिए एक संसाधन का काम करेंगे। इन क्षमताओं के साथ, होवरक्राफ्ट भारत के 7,500 किलोमीटर लंबे समुद्र तट पर बल गुणक यानी फोर्स मल्टीप्लायर्स के रूप में काम करेंगे। साथ ही ऐसे इलाके जो पारंपरिक जहाजों के लिए दुर्गम होते हैं, वहां पर भी आसानी से चलेंगे और तटरक्षक बल की ताकत बढ़ाएंगे। क्राफ्ट के बेस सिस्टम में 6 सेगमेंट लगाए जाएंगे। इसमें स्टैंडर्ड ओपेन और क्लोज सेगमेंट, कॉर्नर ओपेन और क्लोज सेगमेंट के अलावा इनर लूप और आउटर लूप सिस्टम होगा। क्राफ्ट के बेस सिस्टम को तैयार करने के लिए विशेष रबड़ का इस्तेमाल किया जाएगा। जिस पर किसी भी प्रकार की गोली का असर नहीं होगा।
विशेष प्रकार की नाव होती है होवरक्राफ्ट
बता दें कि होवरक्राफ्ट एक विशेष प्रकार की नाव होती है। यह जल, जमीन, कीचड़, घास के साथ बर्फ में भी चल सकने में सक्षम होती है। इसको एयर कुशन वेहिकल भी कहते हैं। इसके नीचे मजबूत रबर लगी रहती है। जिसमें हवा भरी रहती है। यह होवरक्राफ्ट को ऊपर की ओर उठाती है। इसके पीछे की ओर बेहद शक्तिशाली पंखे लगे रहते हैं जिनके तेजी से घूमने पर होवरक्राफ्ट को गति मिलती है। बता दें कि गोवा से पहले कानपुर की ग्लाइडर्स इंडिया लिमिटेड यानी जीआईएल की आयुध पैराशूट निमार्णी ने होवर क्राफ्ट बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी। यह कंपनी क्राफ्ट का बेस सिस्टम तैयार करेगी। इसके लिए कंपनी को इंडियन रबर मैन्यूफैक्चरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट से क्राफ्ट की टेस्टिंग क्लीयरेंस मिल गई है। कंपनी बेस सिस्टम का एक सेट तैयार करके इस साल कोस्ट गार्ड को देगी। अभी तक होवर क्राफ्ट विदेश से आयात किए जाते थे।