मेडिकल की दुनिया में वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता, बना ली यूनिवर्सल किडनी 

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। मेडिकल की दुनिया में वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है। उन्होेंने ऐसी यूनिवर्सल किडनी बना ली है जो हर ब्लड ग्रुप के मरीजों से मैच होगी। ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट करने समय डोनर खोजने का झंझट खत्म हो जाएगा।

लाखों लोगों में जगी उम्मीद

 

किडनी की बीमारी से जूझ रहे लाखों लोग रोज नई उम्मीद की तलाश में रहते हैं। अब ऐसे मरीजों के लिए अच्छी खबर आई है। कनाडा और चीन के वैज्ञानिकों ने 10 साल की मेहनत के बाद यूनिवर्सल किडनी बनाई है। यह किसी भी ब्लड ग्रुप वाले मरीज को दी जा सकती है। यह खोज मेडिकल की दुनिया में चमत्कार मानी जा रही है। इससे केवल वेटिंग लिस्ट छोटी होगी बल्कि रोगियों को नई जिंदगी मिलेगी। इस नई खोज से दुनिया भर के डॉक्टर उत्साहित हैं। डॉक्टरों के अनुसार किडनी ट्रांसप्लांट में अभी तक कई जटिलताएं हैं जिससे रोगी को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ट्रांसप्लांट से पहले डोनर की किडनी रिसीवर के ब्लड ग्रुप से मैच करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए ओ टाइप का ब्लड यूनिवर्सल डोनर है। यानी ये किसी भी ग्रुप ए, बी, एबी और ओ वाले को अपनी किडनी दे सकता है। समस्या यह है कि ओ टाइप की किडनियां कम हैं, क्योंकि इन्हें हर कोई इस्तेमाल कर सकता है। 
वेटिंग लिस्ट हो जाएगी कम

वेटिंग लिस्ट के अनुसार आधे से ज्यादा लोग ओ टाइप की किडनी का इंतजार करते हैं। अमेरिका में ही रोज 11 लोग किडनी न मिलने से मर जाते हैं। भारत में भी लाखों मरीज डायलिसिस पर जी रहे हैं। अगर अलग ब्लड ग्रुप की किडनी ट्रांसप्लांट करें तो बॉडी उसे विदेशी समझकर रिजेक्ट कर देती है। मौजूदा तरीके में मरीज को कई महीनों तक दवाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है। डॉक्टरों के अनुसार यह प्रोसेस काफी महंगा, लंबा और जोखिम भरा है। मरीजों की जान बचाने के लिए लिविंग डोनर चाहिए। ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट करने में कई महीने लग जाते हैं।

ओ टाइप जैसी किडनी

वैज्ञानिकों ने जिस नई किडनी को बनाया है वह ओ टाइप जैसी है। ये किसी भी ब्लड ग्रुप वाले मरीज के बॉडी में घुल-मिल जाएगी। वैज्ञानिकों ने ए टाइप की किडनी को ओ टाइप में बदल दिया। कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के बायोकेमिस्ट स्टीफन विथर्स के अनुसार ये पहली बार इंसानी बॉडी में टेस्ट हुई है। इससे हमें लंबे समय तक काम करने के टिप्स मिले। ये किडनी ब्रेन-डेड यानी मस्तिष्क मृत व्यक्ति के बॉडी में कई दिनों तक काम करती रही। परिवार की सहमति से यह रिसर्च हुई है।  ब्लड टाइप ए,बी और  एबी में किडनी की सतह पर शुगर मॉलिक्यूल्स लगाए जाते हैं। इससे ये बॉडी को बताते हैं कि ये किडनी अपनी है विदेशी नहीं है। 
पुरानी कार से रंग हटाने जैसा शोध

विथर्स का कहना है कि यह पुरानी कार से रंग हटाने जैसा है। एंटीजेंस हटते ही इम्यून सिस्टम किडनी को अपना समझ लेता है। ये एंजाइम्स पहले से पहचाने गए थे, लेकिन अब इन्हें किडनी पर सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है। यह रिसर्च नेचर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग जर्नल में छपी है। वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया भर में किडनी फेलियर बढ़ रहा है। इसका बड़ा  कारण डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर है। ऐसे में दुनियाभर में किडनी के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब इस यूनिवर्सल किडनी के आ जाने से करोड़ों लोगों का जीवन बचाया जा सकेगा।