नई दिल्ली: भारत की स्पेस एजेंसी इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग के तहत इसरो ने डॉकिंग, अनडॉकिंग के बाद अब रोटेटिंग में भारत का परचम लहराया है। हाल ही में भेजे गए दो सैटेलाइट्स को चारों तरफ घुमाने के बाद इसे अपनी पुरानी पोजिशन में वापस लाया गया है। अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग के क्षेत्र में अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है। इसरो द्वारा भेजे गए दो सैटेलाइट्स इन दिनों एक-दूसरे के साथ अंतरिक्ष में डांस करते दिखाई दे रहे हैं। यह डांस हर 90 मिनट में 500 किलोमीटर की ऊंचाई पर होता है, जहां दोनों सैटेलाइट्स 28 हजार 800 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चक्कर काटते हुए एक-दूसरे के आसपास मंडराते हैं। इसरो द्वारा किया जा रहा यह कोई साधारण प्रयोग नहीं है। डांस प्रक्रिया के बीच इसरो ने सैटेलाइटों को दोबारा अपनी पुरानी पोजीशन में लाने में सफलता पाई है। इस प्रक्रिया को रोटेटिंग प्रयोग कहा जा रहा है। यह प्रयोग 13 मार्च को दो सैटेलाइट्स के अनडॉकिंग यानी अलग होने के बाद किया गया है। इस कदम की तुलना चंद्रयान-3 के ‘हॉप’ प्रयोग से की जा रही है, क्योंकि यह भी भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण होगा। यहां सबसे खास बात यह है कि इसरो को यह सफलता पूरी तरह मेड इन इंडिया भारतीय डॉकिंग सिस्टम के साथ पहले ही अटेम्प्ट में मिल गई है। इसरो के चेयरमैन डॉ. वी. नारायणन के अनुसार, पूरे अंतरिक्ष डॉकिंग मिशन में 300 करोड़ से भी कम लागत आई है, जो इसरो की लो-कॉस्ट, हाई-वैल्यू स्ट्रैटजी को दिखाता है। हालांकि, इसरो का एक महत्वपूर्ण प्रयोग अभी बाकी है। पहले अटेम्प्ट में सैटेलाइट्स के बीच पावर ट्रांसफर नहीं हो पाया है। एजेंसी को पावर ट्रांसफर पोर्ट्स में बहुत छोटी त्रुटि का शक था, इसलिए इसे मई में होने वाले अगले राउंड के लिए टाल दिया गया। इसरो का कहना है कि सैटेलाइट्स में अभी इतना फ्यूल बचा हुआ है कि मिशन को आसानी से पूरा किया जा सकता है। डॉ. वी. नारायणन का कहना है कि इस प्रयोग का मुख्य मकसद यह जांचना था कि इसरो जमीन से सैटेलाइट की सही स्थिति और रफ्तार को कितनी कामयाबी के साथ कंट्रोल कर सकता है। इसके लिए अलग-अलग सॉफ्टवेयर, सेंसर और पोजिशनिंग तकनीकों का परीक्षण किया गया। भविष्य में इसे कई बड़े अभियानों में इस्तेमाल किया जाएगा। खासकर, चंद्रयान-4 के नमूना वापसी मिशन और गगनयान के मानव अंतरिक्ष उड़ान अभियानों में यह तकनीक बेहद काम आएगी। अगली बार जब डॉकिंग होगी, तो सैटेलाइट्स के बीच पावर ट्रांसफर की कोशिश की जाएगी। जो भविष्य के भारतीय मिशनों के लिए गेम-चेंजर साबित होगा।
इसरो ने रचा इतिहास, डॉकिंग, अनडॉकिंग के बाद रोटेटिंग में लहराया परचम
01-Apr-2025