12000 साल में पहली बार फटा ज्वालामुखी, दिल्ली तक पहुंची राख

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। धरती पर इस सदी का सबसे बड़ा विस्फोट हुआ है। इथियोपिया में हायली गुब्बी ज्वालामुखी 12000 साल में पहली बार फटा है। वैज्ञानिक इसे बेहद खतरनाक मान रहे हैं। भारत समेत कई देशों तक इसकी राख पहुंच रही है। इसके अलावा वैज्ञानिक इसे हिमयुग की शुरुआत भी मान रहे हैं।

प्रकृति के क्रोध की धमक आज भी इंसान को कांपने पर मजबूर कर देती है। इथियोपिया के उत्तर-पूर्वी इलाके से बेहद खतरनाक खबर आई है। यहां का एक ज्वालामुखी 12000 साल बाद अचानक सक्रिय हो गया। इसके फटने से धुएं का घना गुबार आसमान में छा गया। धीरे-धीरे लाल सागर के पार यमन और ओमान की ओर यह धुंआ पहुंच गया। अब इस ज्वालामुखी की राख 3800 किलोमीटर दूर भारत तक पहुंच गई है। बता दें कि हायली गुब्बी ज्वालामुखी इथियोपिया के अफार इलाके में अदीस अबाबा से लगभग 500 मील उत्तर-पश्चिम में इरिट्रिया के बार्डर के पास मौजूद है। इस ज्वालामुखी से कई घंटों तक राख और मलबा निकलता रहा।

इथियोपिया के अधिकारी का कहना है कि इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ। इस विस्फोट से स्थानीय पशुपालकों के समुदाय पर आर्थिक असर पड़ने वाला है। सईद का कहना है कि हायली गुब्बी ज्वालामुखी के फटने का पहले कोई रिकॉर्ड नहीं था। अचानक इसमें से लावा के साथ धुआं और राख निकलने लगी। इससे यहां रहने वालों की रोजी-रोटी प्रभावित होने का डर है। उन्होंने कहा कि कई गांव राख से ढक गए हैं। इस वजह से उनके जानवरों के पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। ज्वालामुखी की राख सोमवार रात करीब 11 बजे दिल्ली-एनसीआर पहुंच गई। मौसम विभाग इस घटना पर बारीकी से नजर रख रहा है। मौसम को ट्रैक करने वाले संस्थानों का कहना है कि राख का यह गुबार सबसे पहले पश्चिमी राजस्थान के ऊपर से भारत में दाखिल हुआ। इंडिया मेट स्काई वेदर अलर्ट के मुताबिक राख का बादल अब जोधपुर-जैसलमेर इलाके से भारतीय उपमहाद्वीप में आ गया है। ये गुबार 130 किलोमीटर की रफ्तार से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रहा है। इस राख के गुबार के कारण आसमान कुछ समय के लिए अजीब दिखाई दे सकता है। ये राख 25,000 और 45,000 फीट ऊपर है। इसको लेकर एअर इंडिया की 11 उड़ानें रद्द कर दी गई हैं।

वैज्ञानिक इस घटना को हिमयुग की शुरुआत मान रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि विस्फोट के दौरान ज्वालामुखी से राख, धूल और सल्फेट गैसों की भारी मात्रा निकलकर पूरे वायुमंडल में फैलने लगी है। इससे चारों ओर एक तरह की धुंधली, चमकीली परत बन गई है। यह सूरज की रोशनी को सीधे धरती तक पहुंचने से रोकने लगी है। इसके लगातार जारी रहने पर ग्लोबल टेंपरेचर में लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट आएगी। इस बीच ज्वालामुखी से निकलने वाली सल्फर डाइआॅक्साइड गैस ऊपर जाकर सल्फेट एयरोसोल बनाने लग जाएगी। एयरोसोल सूर्य की किरणों को और भी ज्यादा रोकते हैं, जिससे ठंडक  कई महीनों से लेकर दो-तीन साल तक बनी रह सकती है। ज्वालामुखी के बड़े विस्फोट धरती को ठंडा कर सकते हैं।