रूस के इस खतरनाक हथियार से दुनिया में आ जाएगी तबाही

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। यूक्रेन ने एक बार फिर रूस को बड़ा झटका दिया है। इस बार यूक्रेन ने 1100 किलोग्राम के अंडरग्राउंड बम से केर्च पुल को निशाना बनाया। खतरनाक होते युद्ध के बीच रूस के सबसे खतरनाक हथियार की चर्चा तेज हो गई है। इस हथियार को प्रलय दिवस डिवाइस कहा जाता है। अगर रूस ने इसका प्रयोग किया तो पूरी दुनिया में तबाही मच जाएगी। यह गारंटी देता है कि रूस तब भी दुश्मन को हरा सकता है जब पूरी आर्मी तबाह हो जाए।  

यूक्रेन ने रूस को दिया तगड़ा झटका 


रूस के एयरक्राफ्ट उड़ाने के बाद यूक्रेन ने रूस को तगड़ा झटका दिया है। इस बार यूक्रेन ने रूस के अंदर घुसकर केर्च पुल पर बड़ा हमला किया। यूक्रेन ने दावा किया है कि उसने 1100 किलोग्राम के अंडरग्राउंड बम से केर्च पुल को निशाना बनाया। विस्फोट के बाद रूस ने केर्च पुल पर आवाजाही को रोक दी है। बता दें कि केर्च पुल यूक्रेन में रूसी सैन्य अभियान के लिए एक बड़ा रणनीतिक मार्ग है। यह रूस की मुख्य भूमि को कब्जे वाले क्रीमिया से भी जोड़ता है। यह पुल पहले भी कई बार यूक्रेनी हमलों का शिकार हुआ है। दोनों देशों के गहराते युद्ध के बीच दुनिया के सबसे खतरनाक हथियार की चर्चा हो रही है। 

हथियारों के मामले में रूस का कोई जवाब नहीं 


जैसा कि हम सभी जानते हैं कि दुनिया में हथियारों के मामले में रूस का कोई जवाब नहीं है। रूस के पास शक्तिशाली हथियारों की लंबी कतार मौजूद है। जो दुनिया के किसी भी देश में हमला करने में सक्षम हैं। रूस का दावा है कि इन हथियारों को खास तौर पर अमेरिका को कंट्रोल में रखने के लिए डेवलप किया गया है।  रूस के पास एक ऐसा परमाणु हथियार है जिसमें मिसाइलें खुद ब खुद उड़ने लगती हैं। रूस का दावा है कि इस सुपर हथियार को रोकना असंभव है। इसका सिर्फ नाम ही डरावना नहीं है, बल्कि यह एक झटके में पूरी दुनिया तबाह करने की क्षमता रखता है। रूस ने अपने इस सुपर वेपन को डेड हैंड यानी मृत्यु का हाथ नाम दिया है। इसे प्रलय दिवस डिवाइस भी कहते हैं। यह डिवाइस ऐसा हथियार है जो कयामत लाती है।  

कोल्ड वॉर के समय बने हथियार


बता दें कि 1980 के दशक में कोल्ड वॉर के समय अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच हथियारों की रेस चल रही थी। उस वक्त कई खतरनाक बमों का भी अविष्कार हुआ था। यह क्रम लगातार चलता रहा। इन हथियार बनाने की होड़ में दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर बम डेड हैंड बनाया गया। इसे पेरिमीटर सिस्टम भी कहा जाता है। बता दें कि डेड हैंड एक आटोमेटेड न्यूक्लियर सिस्टम है। आधुनिक तकनीक से लैस यह सिस्टम बेहद घातक माना जाता है। यह रेडिएशन लेवल, एयर प्रेशर, कम्युनिकेशन फ्रीक्वेंसी, भूकंप जैसी गतिविधि को मॉनिटर करने के बाद हमले का अंजाम देता है।

खुद ब खुद एक्टिव हो जाता है डेड हैंड 


डेड हैंड के जरिए रूस एक झटके में पता कर सकता है कि उसके देश पर कहीं न्यूक्लियर अटैक तो नहीं होने वाला है। अगर न्यूक्लियर अटैक होने की स्थिति पैदा होने वाली है तो यह खुद ब खुद एक्टिव हो जाता है। इसके बाद कमांड एक रॉकेट लॉन्च करता है। इसके अंदर एक रेडियो ट्रांसमीटर होता है, जो रूस के न्यूक्लियर सिलोज को फायर का आर्डर देता है। इसके बाद इसमें लगीं सारी मिसाइलें उड़ने लग जाती हैं। डेड हैंड यह गारंटी देता है कि रूस तब भी दुश्मन को जवाब दे सकता है, जब उसकी पूरी आर्मी तबाह हो जाए। 

इंसानी कमांड की जरूरत नहीं 


इस सिस्टम की सबसे डरावनी बात यह है कि इसे इंसानी कमांड की जरूरत नहीं होती है। इसे एक बार आन कर दो तो ये मशीनें अपने आप फैसला लेती हैं कि अब सबकुछ खत्म कर देना है। रूस का डूम्सडे डिवाइस इतना खतरनाक है कि इसे कोई भी हैक नहीं कर सकता। इस सिस्टम का कोई भी कम्युनिकेशन कंपोनेंट इंटरनेट पर नहीं होगा, जिससे कि उसे हैक किया जा सके। स्वीडन के थिंक टैंक एसआईपीआरआई की रिपोर्ट के अुनसार दुनिया के 90 प्रतिशत न्यूक्लियर हथियार रूस और अमेरिका के पास हैं। रूस के पास इस समय 1,600 टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन्स हैं। उसके पास 2,400 स्ट्रैटजिक न्यूक्लियर हथियार भी हैं। वहीं, अमेरिका के पास न्यूक्लियर हथियारों की संख्या 5044 है। अमेरिका के पास न्यूक्लियर डिटेक्शन के लिए रेडिएशन और सीस्मिक सेंसर हैं, लेकिन रूस के डेड हैंड जैसा हथियार नहीं है। 500 न्यूक्लियर हथियारों के साथ चीन तीसरे नंबर पर है। स्वीडिश थिंक टैंक के सीनियर फेलो हैन्स क्रिसटेंनसन ने बताया कि इस समय चीन अपने एटमी हथियारों का जखीरा बाकी देशों की तुलना में सबसे तेजी से बढ़ा रहा है। दुनियाभर में अभी 3904 परमाणु हथियार मिसाइलों या एयरक्राफ्ट में तैनात हैं।