कभी काफी बड़ा हुआ करता था बृहस्पति, समा जाती 2000 पृथ्वी

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली।  बृहस्पति यानी जुपिटर के बारे में एक नया खुलासा हुआ है। इसको जानकार हर कोई हैरान है। वैज्ञानिकों के अनुसार बृहस्पति जो आज बहुत छोटा है कभी बहुत बड़ा था। यह इतना बड़ा था कि इसमें 2000 पृथ्वी समा जाए।

अंतरिक्ष के रहस्य होंगे उजागर 


अंतरिक्ष के रहस्यों को उजागर करने के लिए वैज्ञानिक खोज में जुटे हुए हैं। इसी क्रम में अमेरिकी खगोलविदों ने बृहस्पति ग्रह को लेकर एक चौंकाने वाली जानकारी साझा की है। जिससे सौरमंडल की उत्पत्ति और उसकी अद्वितीय संरचना को समझने के लिए एक नया दरवाजा खुल गया है। मिशिगन यूनिवर्सिटी के ताजा अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। अध्ययन के सूर्य के चारों ओर घूमने वाली गैस और धूल की विशाल डिस्क जिसे प्रोटोप्लेनेटरी नेबुला कहा जाता है, वह 45 करोड़ साल पहले बिखरने लगी थी। उस दौर में बृहस्पति का स्वरूप अद्भुत था। यह ग्रह न केवल अपने वर्तमान आकार से करीब दोगुना बड़ा था, बल्कि उसका चुंबकीय क्षेत्र आज की तुलना में 50 गुना अधिक शक्तिशाली था। यही नहीं इसका आयतन 2,000 पृथ्वी के बराबर था। 

सौरमंडल का वास्तुकार है बृहस्पति 


बता दें कि बृहस्पति को सौरमंडल का वास्तुकार भी कहा जाता है। एक ऐसा गुरुत्वाकर्षणीय दिग्गज, जिसने ग्रहों की कक्षाओं को स्थिर किया और निर्माण के समय उभर रहे अन्य ग्रहों की दिशा तय की। यदि यह ग्रह इतना शक्तिशाली न होता तो आज का सौरमंडल शायद वैसा न होता जैसा हम जानते हैं। मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज सिर्फ बृहस्पति के बारे में नहीं बल्कि पूरे सौरमंडल की विकास प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझने की कुंजी हो सकती है। 

बृहस्पति के दो छोटे चंद्रमाओं पर शोध

वैज्ञानिकों ने बृहस्पति के दो छोटे चंद्रमाओं अमलथिया और थेबे  का अध्ययन किया। इनकी कक्षाएं थोड़ी-सी झुकी हुई हैं। यह विचलन दरअसल बृहस्पति के शुरूआती भौतिक स्वरूप का संकेत देता है। इन्हीं कक्षीय विसंगतियों का विश्लेषण कर यह अनुमान लगाया गया कि प्राचीन बृहस्पति की त्रिज्या उसकी मौजूदा त्रिज्या से लगभग दो गुना थी। उसका आयतन 2,000 पृथ्वी जितना था। अध्ययन मौजूदा ग्रह निर्माण सिद्धांतों में एक ठोस स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है।  स्पेस डॉट कॉम में छपी रिपोर्ट के अनुसार कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी में ग्रह विज्ञान के प्रोफेसर कोंस्टेंटिन बैटगिन ने रिसर्च का नेतृत्व किया। उनका मानना है कि नया अध्ययन अंतरिक्ष के कई राज खोलेगा। 

कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धांत का उपयोग 


कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धांत का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने बृहस्पति के मूल आकार का अनुमान लगाया। बैटगिन का मानना है कि यह आश्चर्यजनक है। इसके दो छोटे चंद्रमाओं ने बृहस्पति की शुरूआती स्थिति का इतना साफ कर दिया कि स्थिति का अनुमान लगाया जा सका। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि यह अध्ययन अगल हटकर किया गया। बता दें कि अब तक वैज्ञानिकों को ग्रहों के निर्माण में गैस अपारदर्शिता, भारी तत्वों के कोर का द्रव्यमान और अभिवृद्धि दर जैसी अवधारणाओं पर भरोसा करना पड़ता था। जिनमें अनिश्चितता थी। अब शोधकर्ता ग्रहों के चंद्रमाओं की कक्षीय गति और कोणीय संवेग संरक्षण जैसे सीधे मापे जा सकने वाले कारकों के आधार पर अधिक भरोसेमंद निष्कर्ष निकाल पा रहे हैं। 

निर्णायक समय की तस्वीर पेश 

यह अध्ययन उस निर्णायक समय की तस्वीर पेश करता है, जब सौर नेबुला धीरे-धीरे वाष्पित हो रहा था। यानी जब निर्माण सामग्री तेजी से समाप्त हो रही थी और ग्रहों की बनावट को अंतिम रूप दिया जा रहा था। इस प्रक्रिया का समापन के बाद सौरमंडल का निर्माण हुआ था। इस अध्ययन में एक बात साफ हो गई कई अन्य ग्रहों पर भी ऐसी घटनाएं हुई होंगी। जिससे उनके आकार में परिवर्ततन हुआ। इस प्रक्रिया के दौरान ही अन्य ग्रहों पर सौरमंडल का निर्माण हुआ। यह खोज काफी क्रांतिकारी साबित होगी। इससे चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर जीवन की खोज में जुटे वैज्ञानिकों को काफी मदद मिलेगी।