जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। ग्रीनहाउस गैसों से धरती पर तबाही मचेगी। पृथ्वी के इस खतरनाक चीज के संपर्क में आने को लेकर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है। उनके अनुसार धरती तेजी से गर्म हो रही है। इससे जलवायु परिवर्तन नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है। यह धरती के लिए बेहद खतरनाक स्थिति है। धरती पर पलय आने के कई कारणों की भविष्यणाणी की जा चुकी है। अब विश्व मौसम विज्ञान संगठन यानी डब्ल्यूएमओ ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बेहद डरावनी चेतावनी दी है। ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के मुताबिक अब धरती पर कार्बन डाइआक्साइड यानी सीओ-2 औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 151 फीसदी अधिक है। अन्य ग्रीनहाउस गैसों, जैसे मीथेन और नाइट्रस आॅक्साइड में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से जंगलों में आग, जंगलों के कम कार्बन अवशोषण और उद्योगों के अधिक जीवाश्म ईंधन इस्तेमाल करने की वजह से हुई है। डब्ल्यूएमओ के मुताबिक, मानव गतिविधियों ने ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को काफी बढ़ा दिया है। जिससे जलवायु परिवर्तन हो रहा है। दुनिया में 2023 में हवा में कार्बन डाइआक्साइड का औसत स्तर 420 प्रति मिलियन भाग तक पहुंच गया था। वहीं मीथेन का स्तर 1934 प्रति बिलियन भाग और नाइट्रस आक्साइड का स्तर 336 पीपीबी तक पहुंच गया था। इन संख्याओं का मतलब है कि औद्योगिक युग से पहले यानी 1750 के मुकाबले, कार्बन डाइआक्साइड में 151 फीसदी, मीथेन में 265 फीसदी और नाइट्रस आक्साइड में 125 फीसदी की वृद्धि हुई है। ये माप ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच नाम के एक निगरानी स्टेशन नेटवर्क से लिए गए हैं। यह लंबे वक्त से इन गैसों का ट्रैक रखता है। रिपोर्ट को लेकर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि धरती तेजी से गर्म हो रही है। जलवायु परिवर्तन अब नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है। तापमान को 2 सेंटीग्रेट तक सीमित करने का लक्ष्य भी अब मुश्किल हो रहा है। वैज्ञानिकों की नई रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को पहले जितना आंका गया था, असल में वह उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है। ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता स्तर हालात को और बिगाड़ रहा है। समुद्री जहाजों से निकलने वाला एयरोसोल प्रदूषण सूर्य की किरणों को ब्लॉक कर ग्लोबल वार्मिंग को धीमा कर रहा है। इससे तापमान में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी है। 1988 में ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी देने वाले हांसेन इस मामले से बेहद चिंतित हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया कि अगले 20-30 सालों में वैश्विक तापमान तेजी से बढ़ जाएगा। जिससे जलवायु चक्र में भारी उथल-पुथल मच सकती है। बर्फ तेजी से पिघल रही है। जिससे महासागर की धाराएं प्रभावित हो रही हैं। अटलांटिक मेरिडीयोनल ओवरटर्निंग सकुर्लेशन ठप पड़ने की कगार पर है, जिससे मौसम प्रणाली चरमरा सकती है। बर्फ पिघलने से समुद्र का जलस्तर कई मीटर तक बढ़ सकता है। इससे तटीय शहरों के डूबने का खतरा बढ़ जाएगा। साथ ही करोड़ों लोगों को पलायन करना पड़ेगा। साल, 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में तय किया गया था कि तापमान 1.5 डिग्री से ज्यादा नहीं बढ़ने दिया जाएगा। वहीं कॉपरनिकस मॉनिटरिंग सिस्टम की मानें तो यह लक्ष्य पहले ही पार हो चुका है। वैज्ञानिकों का मानना है कि सच्चाई से भागने के बजाय इसे स्वीकार कर ठोस कदम उठाने चाहिए। कठोर और तुरंत कार्रवाई करने पर ही हालात सुधर सकते हैं।
ग्रीनहाउस गैसों से धरती पर मचेगी तबाही
02-Apr-2025