अमेरिका शोधकर्ता के प्रस्ताव पर पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों को हैरान 

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। अभी तक आपने सुना होगा कि परमाणु बम गिराने से सिर्फतबाही आती है। वही इसके उलट अमेरिका शोधकर्ता ने ऐसा प्रस्ताव दिया है जिसने पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। उनका कहना कि अगर अमेरिका समुद्र के भीतर भयानक परमाणु विस्फोट करता है तो इससे तबाही नहीं बल्कि दुनिया एक बड़े संकट से बच जाएगी।

जलवायु परिवर्तन से निपटने 


अमेरिका के एक शोधकर्ता ने जलवायु परिवर्तन से निपटने और धरती बचाने का यह अजीबोगरीब प्रस्ताव दिया है। माइक्रोसॉफ्ट के कंप्यूटर इंजीनियरिंग के शोधकर्ता एंड्रयू हेवर्ली ने एक स्टडी प्रस्ताव दिया है कि महासागर की सतह के नीचे 81 गीगाटन क्षमता वाला परमाणु बम विस्फोट करके 30 वर्षों के कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन को सोंखा जा सकता है। बता दें कि इतनी मात्रा में परमाणु विस्फोट का मतलब है कि यह अब तक के सबसे बड़े परमाणु परीक्षण से बड़ा होगा। बता दें कि 1961 में सोवियत संघ ने जार बोम्बा टेस्ट करके सबसे बड़ा परीक्षण किया था। यह 50 मेगाटन का परीक्षण था। यह विस्फोट जार बम की तुलना में 1,600 गुना ज्यादा शक्तिशाली होगा। माइक्रोसॉफ्ट के 25 साल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर का मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े परमाणु बम को समुद्र के नीचे फोड़ने के कई फायदे होंगे।

वेबसाइट पर दिया खतरनाक विचार 

एंड्रयू हेवर्ली नाम के इस इंजीनियर ने एक वेबसाइट पर ये खतरनाक विचार दिया है। हेवर्ली का मानना है कि इस तरीके से जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटा जा सकता है। उनका कहना है कि यह एक नया और बड़े पैमाने पर किया जाने वाला उपाय है। एंड्रयू हेवर्ली की स्टडी में कहा गया है कि समुद्र के नीचे सही जगह पर धमाका करके, हम मलबा, रेडिएशन और ऊर्जा को सीमित कर सकते हैं। इसके अलावा हम चट्टानों को तेजी से तोड़ सकते हैं, जिससे वायुमंडल में कार्बन की मात्रा को कम किया जा सकता है। उनकी स्टडी में यह भी कहा गया है कि हर साल 36 गीगाटन कार्बन डाइआॅक्साइड गैस वायुमंडल में छोड़ी जाती है। हेवर्ली का कहना है कि अगर 81 गीगाटन का परमाणु धमाका किया जाए, तो 30 साल तक के कार्बन डाइआॅक्साइड उत्सर्जन को रोका जा सकता है। हेवर्ली को यह विचार क्रिस्टोफर नोलन की आॅस्कर जीतने वाली फिल्म ओपेनहाइमर को देखकर आया।

महासागर की सतह के नीचे विस्फोट 


हेवर्ली का तर्क है कि इस यह विस्फोट महासागर की सतह के नीचे स्थित बेसाल्ट चट्टानों को पाउडर में बदल देगा। जिससे रासायनिक प्रतिक्रियाएं तेज होंगी और वातावरण से कार्बन डाइआॅक्साइड को स्थायी रूप से चट्टानों में बंद किया जा सकेगा। बता दें कि यह प्रक्रिया एन्हांस्ड रॉक वेदरिंग के रूप में जानी जाती है, जो प्राकृतिक रूप से होती है लेकिन बहुत धीमी गति से। परमाणु विस्फोट इस प्रक्रिया को अत्यंत तेज कर सकता है। यह पहली बार नहीं है जब जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ऐसा अजीब सुझाव दिया गया है। यूके सरकार सूरज की रोशनी को कम करने के लिए 567 करोड़ रुपये यानी 50 मिलियन पाउंड का प्रयोग करने पर विचार कर रही है। एडवांस्ड रिसर्च एंड इन्वेंशन एजेंसी इस सोलर जियोइंजीनियरिंग प्रोजेक्ट का समर्थन कर रही है। इस प्रोजेक्ट में वैज्ञानिक दुनिया भर से दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

स्ट्रेटोस्फीयर में छोड़े जाएं छोटे-छोटे कण


बता दें कि इस प्रयोग के दौरान छोटे-छोटे कणों को स्ट्रेटोस्फीयर में छोड़ा जाएगा। जिससे वे सूरज की रोशनी को वापस भेज सकें। कार्बन को कम करने के लिए इसके अलावा एक और उपाय है। इसमें प्रक्रिया में समुद्री बादलों से बारिश कराना शामिलहै। इसमें जहाज समुद्र के नमक के कणों को आसमान में स्प्रे करेंगे ताकि निचले बादलों की चमक बढ़ जाए। अगर यह प्रयोग कामयाब होता है, तो यह अस्थायी रूप से सतह के तापमान को कम कर सकता है, जिससे जलवायु संकट में देरी हो सकती है। इससे वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लिए अधिक समय मिल सकता है। मतलब अगर सूरज की रोशनी कम हो जाएगी, तो धरती कम गर्म होगी। इससे हमें कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए थोड़ा और समय मिल जाएगा।