जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने 44000 साल से बर्फ में जमे खूंखार भेड़िए को ढूढ़ निकाला। यह पर्माफ्रॉस्ट यानी भीषण बर्फमें जमा पाया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार ये हिमयुग के सबसे खूंखार शिकारियों के बारे में अहम जानकारी दे सकता हैं।
दुनिया में कई अजीबो गरीब चीजें
दुनिया में हमें कई अजीबो गरीब चीजें देखने और सुनने को मिलती हैं। उसमें से कुछ चीजें तो ऐसी होती हैं, जिनके बारे में पता चलने पर हम हैरान रह जाते है। कुछ ऐसा ही अमेरिका के वैज्ञानिकों ने कर दिखाया है। वैज्ञानिकों ने 44,000 साल से बर्फ में जमे भेड़िया को खोज निकाला है। यह भेड़िया लगभग पूरी तरह से पर्माफ्रॉस्ट में जमा मिला। इसे अब संरक्षित किया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये खोज उन्हें प्राचीन हिमयुग के इकोसिस्टम के बारे में कई अहम जानकारियां दे सकती हैं। यह खोज साइबेरिया के बर्फीले भू-भाग की खोज करते हुए मिला है। उन्हें एक बड़े शिकारी और वयस्क भेड़िये का शरीर मिला है। यह मानव सभ्यता को उन पन्नों को खोलकर रख देगा जिससे पूरा इतिहास ही बदल जाएगा।
मैमथ म्यूजियम कर रहा संरक्षित
नॉर्थ-ईस्टर्न फेडरल यूनिवर्सिटी मैमथ म्यूजियम के अनुसार यह भेड़िया प्लीस्टोसीन युग के आखिरी समय का हो सकता है। यह नदी के किनारे जमा बर्फ में संरक्षित मिला। याकूतिया अकादमी आफ साइंस और नॉर्थ-ईस्टर्न फेडरल यूनिवर्सिटी मैमथ म्यूजियम के वैज्ञानिकों की टीम इसका विश्लेषण कर रही है। उनके सहयोग से पहले ही कई अहम जानकारियां मिल चुकी हैं। इसमें भेड़िये के शरीर से उसके आहार, स्वास्थ्य और यहां तक कि उसके अंदर रहने वाले सूक्ष्म जीवों के बारे में भी सुराग मिले हैं। भेड़िये का 44,000 साल तक संरक्षित रहना पर्माफ्रॉस्ट की खासियत है। बता दें कि पर्माफ्रॉस्ट प्राकृतिक रेफ्रिजरेटर का काम करता है। इसके अलावा बर्फ और ठंडी मिट्टी ने इसे आॅक्सीजन और पानी के संपर्क से दूर रखने का काम किया है। यही वजह है कि भेड़िये का शरीर इतने सालों तक लगभग पूरी तरह सुरक्षित मिला। भेड़िया का पेट उसके आहार और शिकार की आदतों को दिखाता है। शोधकर्ताओं ने देखा कि पेट में अन्य जानवरों के फॉसिल पाए गए हैं। इससे पता चलता है कि भेड़िया किस तरह का खाना खाते थे। इस खोज से हिमयुग के मांसाहारी जीवों की इमेज और भी सही तरीके सामने आ सकती है। भेड़िये के फॉसिल के जीन का भी विश्लेषण चल रहा है। यह इस शोध का एक अहम पार्ट है। भेड़िये के संरक्षित ऊतकों से डीएनए निकालकर, वैज्ञानिक उसके जीन संरचना की तुलना प्राचीन और आधुनिक भेड़ियों से कर सकते हैं। इससे उसके वंश और विकास का पता लगाया जा सकेगा।
हिमयुग के पेड़ की खोज
बता दें कि इससे पहले हिमयुग के पेड़ की खोज हो चुकी है। यह तकरीबन 80,000 साल पुराना यानि हिमयुग के अंत के समय का माना जाता है। इस पेड का नाम है क्वेकिंग एस्पेन है। इसके विशाल नेटवर्क को दुनिया पैंडो पेड़ के नाम से भी जानती है। इस पेड़ को दुनिया का सबसे बड़ा जीवित जीव भी कहा जाता है। यह अमेरिका के यूटा के फिशलेक नेशनल फॉरेस्ट में पाया जाता है। यहां के सैकड़ों नमूनों की जांच के बाद वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह 106 एकड़ में फैला हुआ है। इसकी शुरुआत हिमयुग के अंत से बहुत पहले हुई होगी। पैंडो काफी पहले से अपने साइज के चलते वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित कर रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि यह धरती पर सबसे बड़ा और पुराना जीव है। यह पेड़ अपने आप में अनूठा है। इसका कारण इसके क्रोमोसोम ट्रिपलेट्स का जीनोम है। यह अपनी प्रजाति के दूसरे सदस्यों के साथ मिलता नहीं है। इस वजह से पौधे का प्रजनन अलैंगिक क्लोनों तक सीमित हो जाता है और वे पर्यावरण में अपनी जड़ें आसानी से जमाए रखते हैं।