जनप्रवाद ब्यूरो नई दिल्ली। भारत के वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा देखा है जो दुनिया के सबसे बेहतरीन टेलिस्कोप भी नहीं पकड़ सके थे। बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने सूरज की सतह के पास मौजूद बेहद छोटे लेकिन शक्तिशाली प्लाज्मा लूप्स को खोज निकाला है। अब यह खोज खगोलशास्त्र की दुनिया में तहलका मचा रही है।
रहस्यों का विशाल गोला है सूरज
हमारा सूरज सिर्फ रौशनी और गर्मी का नहीं बल्कि रहस्यों का भी विशाल गोला है। हर दिन उसमें कुछ न कुछ ऐसा घटित होता है जिसे आम लोग आंखों से नहीं देख सकते। अब भारत के वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा देखा है जो दुनिया के सबसे बेहतरीन टेलिस्कोप भी नहीं पकड़ सके थे। भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान यानी आईआईए के वैज्ञानिकों ने सूर्य के निचले वायुमंडल में छोटे-छोटे प्लाज्मा लूपों की खोज की है। इन प्लाज्मा लूपों के अध्ययन से सूर्य के वायुमंडल में चुंबकीय ऊर्जा विस्फोट और कोरोनाल तापन तंत्र के बारे में नई जानकारी मिली है। आईआईए के संकाय सदस्य और अध्ययन के सह-लेखक तन्मय सामंत ने इसकी जानकारी दी। उनका कहना है कि इस सफलता से लघु प्लाज्मा लूपों या छोटे लूपों की चकाचौंध भरी दुनिया का पता चलता है। यह लूप धागे जैसे आर्क आकार हैं।
सूरज की सतह के ठीक ऊपर क्रोमोस्फेयर
ये प्लाज्मा लूप्स कोई मामूली नहीं हैं। ये इतने चमकीले हैं कि सूरज की सतह के ठीक ऊपर क्रोमोस्फेयर नाम की परत में पलभर के लिए दिखाई देते हैं। इसके बाद गायब हो जाते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इनका आकार भले ही छोटा हो, लेकिन इनकी ताकत और तापमान किसी विस्फोट से कम नहीं है। रिसर्च टीम की सदस्य अन्नु बुरा ने अपने शोध साझा किए। उनके अनुसार जब उन्होंने अमेरिका के बिग बियर सोलर आॅब्जर्वेटरी से मिले डेटा को खंगाला तो उन्हें एच अल्फा नाम की स्पेक्ट्रल लाइन में बेहद चमकदार लूप दिखाई दिया जो बेहद असामान्य था।
सूर्य के सबसे गहरे रहस्यों के सुराग
बता दें कि सूर्य की बाहरी परत दिलचस्प विशेषताओं में भरी है। उसमें सबसे महत्वपूर्ण कोरोनल लूप है। यह गर्म प्लाज्मा की चाप जैसी, सुंदर संरचनाएं हैं। यह 10 लाख डिग्री से भी ज्यादा तापमान पर चमकती हैं। ये सूर्य के सबसे गहरे रहस्यों के सुराग छिपाते हैं और चुंबकीय ऊर्जा को मुक्त करते हैं। इन छोटे प्लाज्मा लूप्स की लंबाई 3,000 से 4,000 किलोमीटर तक हो सकती है। जमीन पर यह दूरी कश्मीर से कन्याकुमारी की दूरी जितनी है। इनकी चौड़ाई सौ किलोमीटर से कम होती है। मजेदार बात ये है कि ये लूप्स सिर्फ कुछ मिनटों के लिए जिंदा रहते हैं। वे तेजी से उभरते हैं, चमकते हैं और फिर सूरज की सतह में ही समा जाते हैं। इतने कम समय में इतनी ऊर्जा छोड़ना और फिर गायब हो जाना यह विज्ञान के लिए एक बड़ी पहेली बन चुका है।
विज्ञान के लिए बड़ी पहेली बना था लूप्स
यह शोध एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में अन्नू बुरा, तन्मय सामंत, आईआईए के जयंत जोशी का बड़ा योगदान है। वहीं नासा, जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर सोलर सिस्टम रिसर्च और अमेरिका के बिग बीयर सोलर आब्जर्वेटरी के वैश्विक सहयोगियों ने भी साथ दिया। जयंत जोशी के अनुसार जब इन लूप्स के अंदर के तापमान को मापा गया तो नतीजे चौंकाने वाले थे। इनके भीतर का तापमान लाखों नहीं बल्कि करोड़ों डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है। यह इतना ज्यादा है कि ये एक्स्ट्रीम अल्ट्रावायलेट जैसी तेज तरंगों में चमकते हैं जो कि केवल खास टेलिस्कोप ही पकड़ सकते हैं। जयंत जोशी ने कोरोनाल में घनत्व की भूमिका पर भी जोर दिया। उन्होंने आगे कहा कि हमारे अध्ययन का आश्चर्यजनक पहलू छोटे प्लाज्मा लूपों की खोज है। वैज्ञानिकों ने न सिर्फ इन लूप्स को साफ तस्वीरों में देखा बल्कि उनकी गति, बनावट और ऊर्जा को लेकर ठोस वैज्ञानिक डेटा भी इकट्ठा किया। यह सब कुछ अमेरिका की रिसर्च लैब में नहीं बल्कि भारत की धरती पर बैठे वैज्ञानिकों ने किया। यह बेहद गर्व की बात है। अन्नु बुरा का कहना है कि सूर्य पर इस रिसर्च ने भविष्य की खोजों की नींव रख दी है। आने वाले समय में भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देश इन मिनी लूप्स के रहस्यों को सुलझाने में जुटेंगे। भारत में जल्द 2 मीटर अपर्चर वाला नेशनल लार्ज सोलर टेलिस्कोप बनने जा रहा है। यह लद्दाख के पास पैंगोंग झील के करीब स्थापित किया जाएगा। वो भी ऐसे रहस्यों से पर्दा उठाने में मदद करेगा।