जन प्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। धरती के अंदर छिपा एक ऐसा खजाना मिला है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। यह पेट्रोलियम पदार्थों से ज्यादा कीमती और अब तक का सबसे बड़ा ऊर्जा भंडार है। इससे पूरी दुनिया की किस्मत बदल जाएगी। वैज्ञानिकों ने अनुसार यह एक लाख सालों तक दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगा।
ऊर्जा संकट से जूझ रही दुनिया
ऊर्जा संकट से जूझ रही दुनिया के लिए एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। आने वाले दिनों में पेट्रोलियम पदार्थों का आयात इतिहास बन जाएगा। यानी दुनिया को इसकी जरूरत नाम मात्र की रह जाएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की सतह के नीचे, कॉन्टिनेंटल क्रस्ट में प्राकृतिक हाइड्रोजन का विशाल भंडार खोजा है। ये हाइड्रोजन इतना है कि 1 लाख 70 हजार साल तक दुनिया की ऊर्जा जरूरतें पूरी कर सकता है। इसे व्हाइट हाइड्रोजन कहा जा रहा है। यह पूरी तरह प्राकृतिक और प्रदूषण-मुक्त है। इस खोज ने ऊर्जा संकट के लिए नया रास्ता खोल दिया है। यूनिवर्सिटी आफ आक्सफोर्ड, डरहम यूनिवर्सिटी और टोरंटो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की टीम ने यह अद्भुत खोज की है। वैज्ञानिकों के अनुसार धरती की कॉन्टिनेंटल क्रस्ट यानी सतह से नीचे यह खोज ऊर्जा के क्षेत्र में नया अध्याय लिखेगी।
हाइड्रोजन को भविष्य का ग्रीन फ्यूल
बता दें कि हाइड्रोजन को भविष्य का ग्रीन फ्यूल कहा जाता है। इसको जलाने पर सिर्फ पानी बनता है। धुआं या कार्बन उत्सर्जन शून्य होता है। यही वजह है कि यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में सबसे कारगर हथियार माना जा रहा है। मौजूदा समय में हम जिस हाइड्रोजन का इस्तेमाल करते हैं, वह ज्यादातर कोयले या गैस से बनती है। यानी वो खुद ही प्रदूषण फैलाकर बनती है। अब धरती के भीतर जो हाइड्रोजन मिला है, वो पूरी तरह प्राकृतिक है। वैज्ञानिकों ने कनाडा के कनाडियन शील्ड में ऐसी जगह ढूंढी है। यहां ये गैस रिस रही है। ये हाइड्रोजन तेल या गैस की तरह बड़े भंडार में नहीं मिला है। ये धीरे-धीरे चट्टानों और पानी के रासायनिक रिएक्शन से बनकर नीचे दबकर जमा है। अब वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि ऐसी जगह पूरी दुनिया में फैली हो सकती हैं। यह सिर्फ कनाडा या एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। वैज्ञानिकों के अनुसार पेट्रोलियम पदार्थों की तरह इसे निकालना उतना आसान नहीं है। इसके लिए नई तकनीक, सटीक मैपिंग और संवेदनशीलता की जरूरत होगी। वैज्ञानिक अब ऐसी तकनीकों पर काम कर रहे हैं जिससे पता चल सके कि हाइड्रोजन कहां बनता है, कैसे बहता है और कहां जमा होता है। इसे हीलियम की तरह निकालने की विधि अपनानी होगी।
बैक्टीरिया खा जाते हैं हाइड्रोजन
वैज्ञानिकों के अनुसार हाइड्रोजन की खोज करने के बाद इसे संरक्षित करना भी जरूरी है। धरती के नीचे ऐसे भी कुछ बैक्टीरिया हैं जो हाइड्रोजन को खा जाते हैं। यानी अगर किसी जगह ज्यादा बैक्टीरिया हैं, तो वहां हाइड्रोजन टिक नहीं पाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इन स्रोतों को सही तरीके से ढूंढा और निकाला जाए, तो यह फ्यूल्स का बेहतर और टिकाऊ विकल्प बन सकता है। अनुमान के अनुसार यह भंडार आने वाले 1 लाख 70 हजार सालों तक पूरी दुनिया की हाइड्रोजन मांग को पूरा कर सकता है। ये खोज ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। अगर हाइड्रोजन को सही तरीके से निकाला गया तो ये जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करेगा। इससे फॉसिल फ्यूल्स पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। इस खोज से जुड़े वैज्ञानिकों ने स्नोफॉक्स डिस्कवरी लिमिटेड नामक कंपनी भी बनाई है। यह कंपनी अब पूरी दुनिया में सैटेलाइट डेटा और जियोलॉजिकल रिसर्च के जरिए हाइड्रोजन ब्लॉक की खोज करेगी।