दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनाने की कहानी

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। इतिहास रचते हुए भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गया है। अब भारतीय अर्थव्यवस्था जापान से भी बड़ी हो गई है। इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ी छलांग माना जा रहा है। यह जानकारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट (अप्रैल 2025) में दी गई है। नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने इसकी पुष्टि की। 
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जीडीपी पहुंची 4 ट्रिलियन डॉलर पार


25 मई को अर्थव्यवस्था को लेकर नीति आयोग के सीईओ ने बड़ी खबर दी है।  बीवीआर सुब्रमण्यम ने बताया कि भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। भारत ने जापान को पीछे छोड़ दिया है। सुब्रमण्यम ने नीति आयोग की 10वीं गवर्निंग काउंसिल की मीटिंग के बाद यह बात कही। उन्होंने कहा कि भारत के लिए दुनियाभर में अभी माहौल अच्छा है। देश की आर्थिक स्थिति मजबूत है। उन्होंने कहा कि अभी हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। हमारी अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन डॉलर की हो चुकी है। भविष्य में इसकी गति में ऐसी ही तेजी बने रहने की उम्मीद है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर देश की नीतियां इसी तरह बनी रहीं तो आने वाले 2 से 3 सालों में भारत जर्मनी को भी पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
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सिर्फ ये 3 देश हैं भारत से आगे
नीति आयोग की बैठक के बाद सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ अमेरिका चीन और जर्मनी की इकोनॉमी है भारत से आगे है। रिपोर्ट में आईएमएफ का मानना है कि आज के समय में भारत 4,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था है। विशेषज्ञों की मानें तो वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 6.8 फीसदी रह सकती है। इसका मतलब है कि देश की इकोनॉमी इस दौरान तेजी से बढ़ेगी।
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रेटिंग एजेंसियों का अनुमान


विशेषज्ञों की मानें तो वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 6.8 फीसदी रह सकती है। इसका मतलब है कि देश की इकोनॉमी इस दौरान तेजी से बढ़ेगी। फिच रेटिंग्स ने साल 2028 तक भारत की औसत वार्षिक वृद्धि क्षमता का अनुमान बढ़ाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया है। रेटिंग एजेंसी ने नवंबर 2023 में इसके 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। फिच ने पांच साल के संभावित सकल घरेलू उत्पाद अनुमानों को अपडेट करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2023 की रिपोर्ट के समय की हमारी अपेक्षा से अधिक मजबूती से वापसी की है। इससे वैश्विक महामारी के झटकों के कम प्रतिकूल प्रभाव के संकेत मिलते हैं। दूसरी ओर भातर की बढ़ती इकोनॉमी पर संयुक्त राष्ट्र यानी यूएन की एक रिपोर्ट ने भी मुहर लगाई है। रिपोर्ट के अनुसारदुनिया की सबसे ज्यादा विकास दर हासिल करने के मामले में इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था न केवल चीन बल्कि अमेरिका और यूरोप को भी पीछे छोड़ देगी। इस साथ तेजी से ग्रोथ करने के मामले में भारत पहले स्थान पर होगा। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था इस साल 6.3% की दर से बढ़ेगी। यह दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा है। चीन की अर्थव्यवस्था 4.6%, अमेरिका की 1.6%, जापान की 0.7% और यूरोप की 1% की दर से बढ़ने का अनुमान है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था में तो 0.1% की गिरावट आ सकती है।भारत ने दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने का ये मुकाम ऐसे समय में हासिल किया है, जब दुनिया में हलचल मची थी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ भी भारत की ग्रोथ को नहीं रोक सका है और न ही पाकिस्तान के साथ तनाव इसमें बाधा बना। भारत लंबे समय से दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बना हुआ था। अब उसने जापान को पीछे छोड़ दिया है।

टैरिफ और महंगाई में फंसी जापान की इकोनॉमी


भारत जहां चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गया है वहीं महंगाई में लगातार बढ़ोतरी के चलते जापान की अर्थव्यवस्था मुश्किलों में घिरी रही। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जापान में अप्रैल के दौरान महंगाई तेजी से बढ़ते हुए  3.5% पर पहुंच गई है, जो बाजार के पूवार्नुमान से ज्यादा है।  आईएमएफ के अनुसार 2025 में जापान की जीडीपी ग्रोथ रेट केवल 0.3% रहने की उम्मीद है, जो भारत की 6.5% की तुलना में बहुत कम है। वहीं जापान की उम्रदराज आबादी और लो बर्थ रेट ने लेबर फोर्स को सीमित कर दिया है। अमेरिका और अन्य देशों द्वारा लगाए गए टैरिफ और व्यापार नीतियों ने जापान की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। जापान की अर्थव्यवस्था कई दशकों से स्थिरता के लिए संघर्ष कर रही है, जिसके कारण वह भारत जैसे तेजी से बढ़ते देशों से पिछड़ गया है।

इकोनॉमिक बूम का असर


भारत की आर्थिक प्रगति का आम लोगों पर कई सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।  तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था से नए रोजगार सृजित होंगे, खासकर तकनीक, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में इसका विस्तार होगा। बढ़ती जीडीपी और निवेश से इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार होगा। इसी तरह बढ़ती आय और मध्यम वर्ग के विस्तार से उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी। इन सबके बीच इसका बड़ा खतरा भी है। इससे असमान डिस्ट्रीब्यूशन और महंगाई जैसी चुनौतियां बनी रह सकती हैं, जिन्हें सरकार को संभालना होगा। इकोनॉमिक बूम का असर शेयर बाजार में भी देखने को मिलता है। 
इकोनॉमी की हेल्थ को ट्रैक करने के लिए जीडीपी का इस्तेमाल होता है। ये देश के भीतर एक तय समय में बनाए गए सभी गुड्स और सर्विस की वैल्यू को दिखाती है। इसमें देश की सीमा के अंदर रहकर जो विदेशी कंपनियां प्रोडक्शन करती हैं उन्हें भी शामिल किया जाता है। जीडीपी दो तरह की होती है। रियल और नॉमिनल जीडीपी। रियल जीडीपी में गुड्स और सर्विस की वैल्यू का कैलकुलेशन बेस ईयर की वैल्यू या स्टेबल प्राइस पर किया जाता है। फिलहाल जीडीपी को कैलकुलेट करने के लिए बेस ईयर 2011-12 है। वहीं नॉमिनल जीडीपी का कैलकुलेशन करंट प्राइस पर किया जाता है। इसके घटाने या बढ़ाने के लिए चार इम्पॉर्टेंट इंजन होते हैं। पहला लोग जितना खर्च करते हैं, वो हमारी इकोनॉमी में योगदान देता है। दूसरा प्राइवेट सेक्टर की बिजनेस ग्रोथ है। यह सेक्टर जीडीपी में 32 प्रतिशत योगदान देती है। तीसरा है, सरकारी खर्च। इसका मतलब है गुड्स और सर्विसेस प्रोड्यूस करने में सरकार कितना खर्च कर रही है। इसका जीडपी में 11 प्रतिशत योगदान है। और चौथा है, नेट डिमांड। इसके लिए भारत के कुल एक्सपोर्ट को कुल इम्पोर्ट से घटाया जाता है। इस क्रम में भारत में एक्सपोर्ट के मुकाबले इम्पोर्ट ज्यादा है। अािर्थक जानकारों का मानना है कि अगर इस स्थिति को ठीक कर लिया जाए तो देश जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
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सफलता से संतुष्ट नहीं होना चाहिए...
आनंद महिंद्रा ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एक समय था जब जापान से आगे निकलने का विचार एक दूर का, लगभग दुस्साहसी सपना लगता था। आज वह मील का पत्थर अब सैद्धांतिक नहीं है। हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं।  महिंद्रा ने जापान की आर्थिक विरासत को हाईलाइट किया। उन्होंने कहा कि जापान लंबे समय से एक आर्थिक महाशक्ति रहा है। उसकी उत्पादकता और लचीलापन अद्भुत है। उन्होंने कहा कि भारत का जापान से आगे निकलना लाखों भारतीयों की मेहनत का फल है। ये भारतीय विभिन्न क्षेत्रों, पीढ़ियों और भौगोलिक क्षेत्रों से हैं।

सफलता के पीछे का राज
भारत की इस उपलब्धि की यात्रा 1991 में शुरू हुई थी। तब भुगतान संकट के कारण उदारीकरण की लहर चली थी। तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने लाइसेंस राज को खत्म किया। व्यापार प्रतिबंधों को कम किया गया। विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया। इससे भारत बाजार-संचालित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ गया। हाल के सुधारों ने इस रफ्तार को और तेज कर दिया है। 2017 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी (जीएसटी) लागू किया गया। इससे अप्रत्यक्ष कर प्रणाली एकीकृत हो गई। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों ने घरेलू उद्योग को बढ़ावा दिया। साथ ही वैश्विक निवेश को भी आकर्षित किया। वित्तीय डिजिटलीकरण और इनसॉल्सवेंसी और बैंकरप्सी कोड ने भी भारत में कारोबार करना आसान बना दिया है। इससे निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। उद्यमिता को बढ़ावा मिला।