जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन को लेकर बेहद चौंकाने और डरावनी रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार विश्व की करोड़ों इमारतें समुद्र में समा जाएंगी। इतना ही नहीं भारत के भी कई शहरों पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।
बढ़ रहा है समुद्र का जलस्तर
जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र का बढ़ता जलस्तर अब पूरी दुनिया के तटीय शहरों के लिए अस्तित्व का संकट बनता जा रहा है। मैकगिल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक व्यापक अध्ययन के अनुसार अगर जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर जल्द रोक नहीं लगी तो बड़ी तबाही आएगी। सदी के अंत तक दुनिया की 10 करोड़ से अधिक इमारतें समुद्र में समा सकती हैं। यह न सिर्फ आवासीय ढांचों बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, बंदरगाहों, रिफाइनरियों और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए भी भारी खतरा साबित हो सकता है। यह अध्ययन नेचर अर्बन सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
आबादी को प्रभावित करेगा जलस्तर
अध्ययन से जुड़ी वैज्ञानिक प्रोफेसर नताल्या गोमेज का मानना है कि समुद्र के बढ़ते स्तर का असर पहले से ही तटीय आबादी को प्रभावित कर रहा है। जलवायु परिवर्तन की वर्तमान गति को देखते हुए समुद्र कई मीटर तक बढ़ सकता है। समुद्र में आधा मीटर बढ़ोतरी से लाखों ढांचे डूब सकते हैं। वैज्ञानिकों ने 0.5 मीटर से लेकर 20 मीटर तक समुद्र-स्तर वृद्धि के विभिन्न परिदृश्यों का अध्ययन किया है। अगर समुद्र का स्तर सिर्फ 0.5 मीटर बढ़ता है, जो उत्सर्जन में कटौती के बावजूद संभव है, तो करीब 30 लाख इमारतें डूब जाएंगी। अगर उत्सर्जन बढ़ता रहा और समुद्र का स्तर 5 मीटर या उससे अधिक पहुंच गया तो यह संख्या 10 करोड़ से ऊपर जा सकती है।
सैटेलाइट नक्शे और ऊंचाई से खुला राज
वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट नक्शे और ऊंचाई के आंकड़ों से यह अनुमान लगाया है। रिपोर्ट के अनुसार समुद्र के जल की चपेट में आने वाली ज्यादातर इमारतें घनी आबादी वाले निचले इलाकों में हैं। इनमें मोहल्ले, बंदरगाह, तेल रिफाइनरी और पुरानी सांस्कृतिक जगहें शामिल हैं। ये सभी बाढ़ की चपेट में आ जाएंगे। अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय शहर भी इस वैश्विक संकट से अछूते नहीं हैं। मुंबई में समुद्र के बढ़ते जलस्तर से 830 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र डूब सकता है, जो सदी के अंत तक बढ़कर 1,377 वर्ग किमी यानी 21.8 फीसदी तक पहुंच सकता है। चेन्नई का लगभग 7.3 फीसदी हिस्सा 86.8 वर्ग किलोमीटर अगले 16 वर्षों में जलमग्न हो सकता है। 2100 तक 18 प्रतिशत यानी 215.77 वर्ग किलोमीटर तक का दायरा बढ़ जाएगा। यनम और थूथुकुड़ी के करीब 10 फीसदी इलाके व पणजी, कोच्चि, मंगलूरू, विशाखापत्तनम, हल्दिया, उडुपी, पारादीप और पुरी में 1 से 5 फीसदी तक की जमीन डूब सकती है। इसके अलावा लक्षद्वीप के द्वीपों में समुद्र का जलस्तर 0.4 से 0.9 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ने का अनुमान है। जिससे चेतलाट और अमिनी जैसे छोटे द्वीपों की 70 से 80 फीसदी तटरेखा खतरे में पड़ सकती है।
भारत पर बढ़ रहा है खतरा
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार समुद्र के बढ़ते जलस्तर का खतरा भारत के मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों पर भी पड़ सकता है. मैकगिल विश्वविद्यालय के अध्ययन के मुताबिक यदि जीवाश्म ईंधन के यूज को रोका नहीं गया तो ये बढ़ता जलस्तर सदी के अंत तक दुनिया की 10 करोड़ से ज्यादा इमारतों को अपने अंदर ले लेगा। ये ना सिर्फ इमारतों के लिए बल्कि ग्लोबल इकोनॉमी के लिए भी बड़ा खतरा साबित हो सकता है. इसके अलावा रिफाइनरियों, बंदरगाहों और सांस्कृतिक धरोहरों को भी भारी नुकसान पहुंचा सकता है. जानकारी के अनुसार ये रिसर्च 'नेचर अर्बन सस्टेनेबिलिटी पत्रिका' में पब्लिश हुई है।