जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। जेम्स वेब टेलीस्कोप ने ब्रह्मांड के सबसे बड़े तारों की खोज की है। ये ब्रह्मांड के डायनासोर बताए जा रहे हैं। इनके सामने सूरज चींटी के सामन दिखाई देता था। ये सूरज से 10,000 गुना बड़े थे। सबसे दिलचस्प बात यह है कि नष्ट होने के बाद ये बड़े तारे सीधे ब्लैक होल बन जाते थे।
सूरज से 10,000 गुना बड़े तारा
ब्रह्मांड के जन्म यानी बिग बैंग के ठीक बाद क्या हुआ था। यह सवाल हमेशा से वैज्ञानिकों को परेशान करता रहा है। अब जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने इस बारे में बड़ा खुलासा किया है। जिसने खगोल विज्ञान की दुनिया में तहलका मचा दिया है। यह खुलासा ब्रह्मांड की शुरूआत में मौजूद मॉन्स्टर स्टार्स यानी आदिम तारे को लेकर है। गैलेक्सी जीएस 3073 में मिले नाइट्रोजन के केमिकल फिंगरप्रिंट से पता चला है कि सूरज से 10,000 गुना भारी तारे हुआ करते थे। ये तारे विस्फोट के बिना सीधे ढहकर विशालकाय ब्लैक होल बन जाते थे। इस खोज ने बिग बैंग के तुरंत बाद सुपरमैसिव ब्लैक होल्स के बनने की सालों पुरानी गुत्थी सुलझा दी है। इंग्लैंड की पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी और अमेरिका के हार्वर्ड एंड स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स की टीम ने यह खोज की है।
अंतरिक्ष में आदिम तारों की पहली खोज
अंतरिक्ष में आदिम तारों की यह पहली खोज है। इसमें उनके होने का पहला ठोस सबूत मिला है। वैज्ञानिकों के अनुसार ये कोई आम तारे नहीं थे। इन्हें आप ब्रह्मांड के डायनासोर भी कह सकते हैं। जैसे डायनासोर पृथ्वी पर विशालकाय थे और लुप्त हो गए, वैसे ही ये तारे भी ब्रह्मांड की शुरूआत में मौजूद थे। बाद में एक भयंकर विस्फोट के बाद ब्लैक होल में बदल गए। बता दें कि वैज्ञानिक लंबे समय से सोच रहे थे कि ब्रह्मांड बनने के एक अरब साल के भीतर ही इतने विशालकाय ब्लैक होल कैसे बन गए। साधारण तारों से इतना बड़ा ब्लैक होल बनना नामुमकिन था। अब पता चला है कि इन मॉन्स्टर स्टार्स ने ही उन विशाल ब्लैक होल्स को जन्म दिया था।
खोज को बहुत ही सरल शब्दों में समझाया
इस ऐतिहासिक खोज की शुरूआत एक अजीबोगरीब गैलेक्सी से हुई। इसका नाम जीएस 3073 है। जेम्स वेब टेलीस्कोप ने जब इस गैलेक्सी की जांच की तो वैज्ञानिकों को वहां कुछ ऐसा दिखा जो सामान्य नहीं था। वहां नाइट्रोजन और आॅक्सीजन का संतुलन बिगड़ा हुआ था। बता दें कि आमतौर पर तारों में इन गैसों का एक निश्चित अनुपात होता है। इस गैलेक्सी में नाइट्रोजन की मात्रा बहुत ज्यादा थी। वैज्ञानिकों ने पाया कि नाइट्रोजन और आॅक्सीजन का अनुपात 0.46 था। यह सामान्य से बहुत ज्यादा है। ब्रह्मांड में मौजूद कोई भी साधारण तारा इतनी ज्यादा नाइट्रोजन पैदा नहीं कर सकता। वैज्ञानिकों को समझ आ गया कि यह काम किसी दानव का ही हो सकता है। रिसर्च टीम का हिस्सा रहे देवेश नंदन ने इस खोज को बहुत ही सरल शब्दों में समझाया। देवेश के अनुसार केमिकल की मात्रा एक कॉस्मिक फिंगरप्रिंट यानी ब्रह्मांडीय उंगलियों के निशान की तरह होती है। जीएस 3073 में जो पैटर्न मिला है, वह किसी भी आम तारे से मेल नहीं खाता। इतनी भारी मात्रा में नाइट्रोजन सिर्फ एक ही चीज बना सकती है। वो हैं आदिम तारे हैं। ये तारे हमारे सूरज से हजारों गुना बड़े थे। इससे साबित होता है कि तारों की पहली पीढ़ी में सचमुच सुपरमैसिव आॅब्जेक्ट्स शामिल थे। इन्होंने ही शुरूआती गैलेक्सी को आकार दिया। इन्हीं की वजह से आज हमें अंतरिक्ष में विशालकाय ब्लैक होल दिखाई देते हैं।
ढाई लाख साल का था तारों का जीवन
वैज्ञानिकों के अनुसार इन विशालकाय तारों का जीवन ढाई लाख साल का था। अपने जीवनकाल में ये बहुत तेज जलते थे। ये विशाल तारे अपने केंद्र में हीलियम जलाते थे। इससे कार्बन बनता था। यह कार्बन लीक होकर बाहरी हिस्से में चला जाता था। वहां हाइड्रोजन जल रही होती थी। वहां कार्बन और हाइड्रोजन मिलकर नाइट्रोजन बनाते थे। तारे के अंदर चलने वाली संवहन धाराएं इस नाइट्रोजन को पूरे तारे में फैला देती थीं। अंत में यह नाइट्रोजन अंतरिक्ष में बिखर जाती थी। जलते-जलते ये तारे सीधे ब्लैक होल मे बदल जाते थे। इस स्टडी का सबसे रोमांचक हिस्सा इन तारों की मौत है।




