जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। अमेरिकी कंपनी ऐसा सैटेलाइट बना रही है जो रात में कृत्रिम धूप देगा। इसके जरिए अंतरिक्ष से सीधे धरती पर कृत्रिम धूप आएगी। इस प्रयोग को लेकर दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है। उनका मानना है कि ये रोशनी पृथ्वी और ब्रह्मांड, दोनों के लिए खतरा बन सकती है।
मानव जीवन के के लिए सूर्य जरूरी
यह बात हम सभी जानते हैं कि मानव जीवन के लिए सूर्य की रोशनी बेहद जरूरी है। लोग अक्सर कल्पना करते हैं कि रात में भी घर की छत पर सूरज की धूप जैसी रोशनी आती रहे। सोलर प्लांट्स बिना रुके काम करें और शहरों में कभी अंधेरा न हो। यह सुनने में बेहद अच्छा लग रहा है लेकिन इसी कृत्रिम धूप के आइडिया ने दुनिया के वैज्ञानिकों की नींद उड़ा दी है। अमेरिका की एक स्टार्टअप कंपनी रिफ्लैट आर्बिटल ने ऐसा सैटेलाइट सिस्टम तैयार करने की योजना बनाई है जो स्पेस से धरती पर धूप भेजेगा। कंपनी का दावा है कि ये सिस्टम अंतरिक्ष में काम करे मिशनों को रात में भी एनर्जी देगा। वहीं वैज्ञानिक कंपनी के चिार से असहमत हैं। उनका मानना है कि ये इनोवेशन तबाही की तैयारी है। अगर ऐसा हुआ तो यह ब्रह्मांड के लिए खतरे की घंटी होगी।
रिफ्लैट आर्बिटल जल्द करेगा काम
बता दें कि रिफ्लैट आर्बिटल अगले साल यानी 2026 में एरेन्डिल-नाम का एक 18 मीटर का टेस्ट सैटेलाइट लॉन्च करने जा रहा है। कंपनी का कहना है कि ये प्रोजेक्ट 2030 तक करीब 4,000 सैटेलाइट्स के नेटवर्क में बदल जाएगा। हर सैटेलाइट के पास 54 मीटर चौड़ा मिरर होगा जो सूरज की रोशनी को धरती के किसी हिस्से पर फोकस करेगा। इसका मकसद रात के समय सोलर फार्म्स को कृत्रिम धूप देना है। इससे वे रात में भी बिजली बना सके। कंपनी का कहना है कि वो सिर्फ 200 वॉट प्रति वर्ग मीटर की रोशनी देना चाहता है। यह दोपहर की धूप का लगभग 20 प्रतिशत होगी। यानी इतनी रोशनी में सोलर पैनल एक्टिव रहेंगे। इससे पूरे अंतरिक्ष मेंं कभी अंधेरा नहीं होगा।
धरती पर रिफ्लेक्ट रोशनी
इसके काम करने के तरीकों पर बात करें तो यह सिस्टम दरअसल मिरर के जरिए सूरज की रौशनी को धरती पर रिफ्लेक्ट करेगा। जैसे आप शीशे से धूप की चमक दीवार पर डालते हैं, वैसे ही ये सैटेलाइट्स स्पेस से धूप को धरती पर डालेगा। यह प्रयोग 625 किलोमीटर की ऊंचाई से होगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इतनी दूरी पर धूप का बंडल 7 किलोमीटर चौड़े एरिया में फैल जाएगा। यानी रोशनी तेज नहीं, फैली हुई और डिम होगी। एक सिंगल सैटेलाइट की रोशनी दोपहर की धूप से 15,000 गुना कम होगी। यह चांद की रोशी से ज्यादा ब्राइट होगी। बता दें कि पिछले साल कंपनी के फाउंडर बेन नोवैक ने एक टेस्ट किया था। उन्होंने 2.5 मीटर चौड़ा मिरर एक हॉट एयर बैलून पर लगाया और उससे नीचे लगे सोलर पैनल पर धूप रिफ्लेक्ट की थी। यह प्रयोग सफल रहा था। टेस्ट में करीब 516 वॉट प्रति वर्ग मीटर की रौशनी मापी गई थी। यह दोपहर के सूरज की ताकत का लगभग आधी रोशनी थी। जब यही प्रयोग 800 किलोमीटर ऊपर से किया जाएगा, तो मिरर को 6.5 किलोमीटर लंबा बनाना पड़ेगा। कंपनी का कहना है कि 54 मीटर के सैटेलाइट से 20 प्रतिशत धूप देने के लिए करीब 3,000 सैटेलाइट्स चाहिए। 625 किलोमीटर ऊंचाई पर घूमता सैटेलाइट सिर्फ 3.5 मिनट तक ही किसी एक जगह पर रह सकता है। अगर एक घंटे तक रोशनी देनी होगी तो हजारों सैटेलाइट्स लगाने पड़ेंगे। बेन नोवैक ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वो भविष्य में 2.5 लाख सैटेलाइट्स तक लांच कर सकते हैं।
खगोलविदों ने बताया डरावना प्रयोग
खगोलविदों ने इसे बेहद डरावना कहा है। मोनाश यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोनॉमर माइकल ब्राउन के अनुसार अगर ये सैटेलाइट्स काम करने लगे, तो आसमान में हर वक्त चांद से भी ज्यादा चमकीले स्पॉट्स दिखेंगे। लीडन यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोनॉमर मैथ्यू केनवर्थी का मानना हैं कि ये न सिर्फ खगोल विज्ञान को खत्म कर देंगे, बल्कि दूरबीन से देखने वाले लोगों की आंखों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि हर मिरर की सतह सूरज जैसी चमक देगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि इतनी ज्यादा आर्टिफिशियल लाइट से न सिर्फ एस्ट्रोनॉमी पर असर पड़ेगा, बल्कि बर्ड्स, एनिमल्स और इंसानों की बायोलॉजिकल दिनचर्या भी बिगड़ सकती है। रात का अंधेरा धरती की बायोलॉजी का जरूरी हिस्सा है वो खत्म हो जाएगा। इससे जीव-जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।