रणनीतिक ताकत को और मजबूत करने जा रही है भारतीय नौसेना 

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। भारतीय नौसेना अपने रणनीतिक ताकत को और मजबूत करने जा रही है। खबर है कि इस साल के अंत तक नौसेना अपनी तीसरी न्यूक्लियर-पावर्ड बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी एसएसबीएन आईएनएस अरिदमन को कमीशन करने वाली है। यह कदम भारत की समुद्री सुरक्षा और न्यूक्लियर पावर को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। ऐसे में यहां यह जानना जरूरी है कि यह पनडुब्बी कितनी खतरनाक है।

हिंद महासागर में हथियारों की होड़ 

हिंद महासागर में हथियारों की होड़ मची है। चीन और पाकिस्तान के बढ़ते गठजोड़ के चलते भारत के लिए अपनी समुद्री रक्षा क्षमताओं को उन्नत करना बेहद जरूरी हो गया है। ऐसे में भारत इस दिशा में लगातार काम कर रहा है। अब रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि भारत की परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी जल्द नौसेना में शामिल हो जाएगी। ये समुद्री सुरक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण कदम होगा। यह न्यूक्लियर-पावर्ड बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी एसएसबीएन है। यह करीब तीन साल से गहन समुद्री परीक्षणों से गुजर रही है। ये ट्रायल इसकी गुप्त संचालन क्षमता, परमाणु सुरक्षा और मिसाइल तैनाती क्षमताओं को सुनिश्चित करने के लिए किए गए हैं।
अरिहंत-क्लास के तहत किया गया निर्माण

आईएनएस अरिदमन का निर्माण भारत की अरिहंत-क्लास पनडुब्बियों के तहत किया गया है। आईएनएस अरिदमन भारत की तीसरी परमाणु पनडुब्बी है। इससे पहले नौसेना को परमाणु ऊर्जा से चलने वाली आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघात पनडुब्बी मिल चुकी है। आईएनएस अरिदमन की बात करें तो यह ज्यादा एडवांस्ड है। इसकी लंबाई 10 मीटर से ज्यादा है। इससे इसका विस्थापन भार 1 हजार टन से ज्यादा बढ़ गया है। ये अधिक सबमरीन लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल ले जाने में सक्षम होगी। नौसेना में कमीशनिंग के बाद ये भारत की क्षमताओं को और मजबूत करेगी। पिछले तीन साल में हुए ट्रायल का उद्देश्य इसे अलग-अलग तरह के समुद्री हालात में चुपचाप और प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए तैयार करना है। 
अरिदमन में 8 वर्टिकल लॉन्च ट्यूब लगे 

आईएनएस अरिदमन में 8 वर्टिकल लॉन्च ट्यूब लगे हैं। इसमें 24 छोटी रेंज की के-15 मिसाइलें सेट की जाएगी। इनकी मारक क्षमता 750 किलोमीटर है। इसी तरह इसमें के -4 मिसाइलें लाएगी जाएंगी। इसकी रेंज 3,500 किलोमटर है। यह पहले की पनडुब्बियों की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली है। इसमें बेहतर सोनार  कोटिंग और शोर-कम करने वाली तकनीक है। जिससे यह दुश्मन के लिए पता करना मुश्किल हो जाता है। के-4 मिसाइलों के साथ यह दुश्मन के गहरे इलाकों को निशाना बना सकती है। जो भारत की सुरक्षा के लिए जरूरी है। इस पनडुब्बी में करीब 70 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल हुआ है, जो भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है। 
समुद्री क्षमताओं को तेजी से मजबूत कर रहा चीन

बता दें कि हिंद महासागर में चीन समुद्री क्षमताओं को तेजी से मजबूत कर रहा है। अभी चीन के पास 6 परमाणु पनडुब्बी, 6 अटैक परमाणु पनडुब्बी है। इसके अलावा 48 एआईपी तकनीक से लैस परंपरागत पनडुब्बियां हैं। भारत के पास अभी एआईपी तकनीक से लैस पनडुब्बियां नहीं हैं। इसे लेकर भारत की जर्मनी से बातचीत चल रही है। अनुमान लगाया जा रहा है कि सौदा होने की स्थिति में भारत को पहली पनडुब्बी 2030 तक मिल जाएगी।