हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष : देश के पहले अखबार के शुरू होने की कहानी

जनप्रवाद ब्यूरो नई दिल्ली। आज का दिन पत्रकारिता, खासकर हिंदी पत्रकारिता के महत्व, उसकी निष्पक्षता और निडरता को रेखांकित करने का अवसर भी है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है जो समाज को सूचित, जागरूक और सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हिंदी पत्रकारिता ने न सिर्फ भाषा और संस्कृति को समृद्ध किया है, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आधुनिक भारत तक राष्ट्र निर्माण में भी अहम योगदान दिया है। 30 मई 1826 को 'उदंत मार्तंड' के प्रकाशन के साथ ही भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरूआत हुई थी। इसने ऐसी चिंगारी भड़काई, जिसकी आग आज भी बरकरार है और हिंदी पत्रकारिता के रूप में इसने एक विशाल स्वरूप ले लिया है। यही वजह है कि आज के दिन हिंदी पत्रकारिता दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

उदन्त मार्तण्ड ने की हिंदी पत्रकारिता के नए युग की शुरूआत 


हालांकि, इस अखबार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कोलकाता में हिंदी भाषी पाठकों की कमी और डाक शुल्क की ऊंची दरों के कारण इसे हिंदी भाषी राज्यों में भेजना आर्थिक रूप से कठिन था। ब्रिटिश सरकार ने डाक दरों में छूट देने से इनकार कर दिया और सरकारी विभागों ने इसकी एक भी प्रति खरीदने में रुचि नहीं दिखाई । इसने हिंदीभाषी समाज के लिए पत्रकारिता के एक नए युग की शुरूआत कर दी। बाद में हिंदी पत्रकारिता ने कई सोपान तय किए। भारतेन्दु हरिश्चंद्र जैसे पत्रकारों ने कविवचन सुधा (1867) और हरिश्चंद्र मैगजीन (1873) जैसे प्रकाशनों के माध्यम से हिंदी पत्रकारिता को नई दिशा दी। गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1913 में प्रताप अखबार शुरू किया। जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

तब हिंदी में नहीं था कोई समाचार पत्र 


हिंदी से पहले कई भारतीय भाषाओं में साप्ताहिक, मासिक और पाक्षिक समाचार पत्र या पत्रिकाएं निकल रही थीं। अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में इनका प्रकाशन होता था, लेकिन हिंदी में एक भी अखबार या पत्रिका नहीं थीं। उदंत मार्तंड अखबार इसी ध्येय के साथ शुरू ही हुआ था कि हिंदी की कोई अपनी पत्रिका या अखबार हो, जिससे हिंदी भाषियों की भावनाएं जुड़ सके और उनकी आवाज इसके माध्यम से मुखर हो पाए। 

पत्रकारिता का ध्येय


इसके पहले अंक में ऐसा ही कुछ संदेश भी दिया गया था। क्योंकि इससे पहले कुछ एक दूसरी भाषाओं की पत्रिकाओं में हिंदी के आलेखों के लिए एक छोटा सा हिस्सा होता था। 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र 'समाचार दर्पण' में कुछ हिस्से हिंदी के होते थे। इसलिए हिंदी में समाचार पत्र का प्रकाशन अपने आप में एक चुनौती थी, क्योंकि इनका कोई पाठक वर्ग भी नहीं था। 

हिंदी में पहला अखबार था चुनौती 


नितांत नई भाषा-भाषी के लिए समाचार पत्र निकालना बहुत बड़ी चुनौती होती है। क्योंकि, इनकी रुचि का पता नहीं होता है कि, किस तरह की चीजों को पढ़ाना उनके पसंद के हिसाब से होगा। ऐसे में हिंदी भाषियों की भावना, समस्या, मुद्दों और उनकी रुचि को ध्यान में रखते हुए पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने उदंत मार्तंड प्रकाशित करने का फैसला किया। 

कोलकाता में था उदंत मार्तंड का दफ्तर
पंडित जुगल किशोर शुक्ल रहने वाले तो कानपुर के थे, लेकिन उन्होंने हिंदी अखबार के प्रकाशन के लिए कोलकाता शहर को चुना। उस जमाने में कोलकाता भारत का सबसे बड़ा शहर और अंग्रेजों का गढ़ माना जाता था। वहां से कई तरह की व्यापारिक गतिविधियां संचालित होती थीं। इसके अलावा अंग्रेजी, बांग्ला, फारसी और उर्दू में कुछ समाचार पत्रों का भी वहां से प्रकाशन हो रहा था। ऐसे में जुगल किशोर शुक्ल ने वहां से हिंदी भाषियों के लिए साप्ताहिक अखबार निकालने का फैसला लिया। 

इस वजह से बंद हुआ अखबार
30 मई 1826 में इसकी शुरुआत हुई थी। कोलकाता से हिंदी अखबार निकालने के कारण स्थानीय स्तर पर हिंदी पाठकों की कमी और हिंदी भाषी राज्यों में डाक द्वारा इसकी प्रतियां भेजने की खर्चिली व्यवस्था जैसे कुछ कारण ऐसे थे, जिस वजह से इस अखबार को सिर्फ 19 महीने में ही बंद कर देना पड़ा। 19 दिसंबर 1827 को इसका अंतिम अंक प्रकाशित हुआ। अखबार बंद तो जरूर हो गया, लेकिन इसने ऐसी चिंगारी भड़काई, जिसकी आग आज भी बरकरार है और हिंदी पत्रकारिता के रूप में इसन एक विशाल स्वरूप ले लिया है।