जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। एसिड से भरे शुक्र ग्रह पर भारतवंशी वैज्ञानिकों ने चमत्कारिक खोज की है। दोनों वैज्ञानिकों ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ मिलकर शुक्र ग्रह पर पानी की खोज की है। अध्ययन में पाया गया है कि शुक्र के बादल 62 प्रतिशत पानी से बने हैं। ये हाइड्रेटेड यौगिकों में बंधा है।
वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बने हैं बादल
शुक्र ग्रह के बादल हमेशा से वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बने हुए हैं। इस ग्रह पर क्या जीवन हो सकता है? ये सवाल सालों से चर्चा में है। अब अनिवासी भारतीय वैज्ञानिकों ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की टीम के साथ मिलकर बड़ी खोज कर डाली। अध्ययनकर्ताओं ने 50 साल पुराने डेटा को दोबारा जांचा। इसमें नतीजा चौंकाने वाला निकला। शोध में पाया गया कि शुक्र के बादल ज्यादातर पानी से बने हैं। ये पानी साफ-सुथरे बूंदों के रूप में नहीं, बल्कि हाइड्रेटेड यौगिकों में बंधा हुआ है। बता दें कि पुरानी सोच थी कि बादल ज्यादातर सल्फ्यूरिक एसिड से बने हैं। अब पता चला है कि पानी का हिस्सा 62 प्रतिशत है। ये खोज नासा के पायनियर मिशन के पुराने आंकड़ों से आई है।
सूर्य का सबसे करीब ग्रह है शुक्र
बता दें कि शुक्र सूर्य का सबसे करीब ग्रह है। इसका वातावरण बहुत गर्म और जहरीला है। सतह का तापमान 460 डिग्री सेल्सियस तक पाया जाता है। शुक्र गह के ऊपर बादलों की परतें हैं। वहां दबाव और तापमान पृथ्वी जैसा है। यहां करीब सामान्य हवा का दबाव है। ऐसे में वैज्ञानिक सोचते हैं कि शुक्र ग्रह पर कहीं न कहीं सूक्ष्म जीवन यानी माइक्रोब्स हो सकता है। यहां इन जीवों को खोजना आसान काम नहीं है। इसके लिए अभी ज्यादा अध्ययन की जरुरत है। ये खोज कैलिफोर्निया पॉलिटेक्निक स्टेट यूनिवर्सिटी विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी ने की है। इसमें एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी और नासा के वैज्ञानिकों ने सहयोग किया है। इसका आइडिया डॉ. राकेश मोगुल और डॉ. संजय लिमाये ने दिया। वे शुक्र के बादलों की रचना पर चर्चा कर रहे थे। उन्होंने सोचा कि 1978 के नासा पायनियर वीनस मिशन के डेटा को दोबारा देखना चाहिए। बता दें कि पायनियर वीनस मिशन में एक बड़ा प्रोब शुक्र के वातावरण में उतरा था। उस पर दो उपकरण थे। इसमें न्यूट्रल मास स्पेक्ट्रोमीटर और गैस क्रोमैटोग्राफ लगा था। ये गैसों को मापने के लिए बने थे। सबसे पहले इसका डिजिटाइज किया गया। ये काम आसान नहीं था। यह पुरानी किताबों को स्कैन करने के सामान था। वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रोब जब बादलों वाली मोटी हवा में उतरा, तो उपकरणों के इनलेट यानी छेद बादलों के कणों से जाम हो गए। इससे सीओ 2 यानी कार्बन डाइआक्साइड का स्तर अचानक गिर गया। पहले इसे खराबी समझा गया, लेकिन अब इसे मौका माना गया।