जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत अब महाविनाशक न्यूक्लियर पावर्ड एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विशाल बनाने जा रहा है। यह पहला परमाणु-संचालित एयरक्राफ्ट कैरियर होगा। यह 65 से 75 हजार टन का होगा। इस पर 55 विमानों को तैनात किया जा सकेगा। यह चीन के फुजियान का मुकाबला करेगा।
नौसेना को आधुनिक बनाने पर जोर
भारत अपनी नौसेना को और ताकतवर बनाने के लिए पहला परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत विकसित करने जा रहा है। रक्षा मंत्रालय ने 15 साल की योजना टेक्नोलॉजी पर्सपेक्टिव एंड कैपेबिलिटी रोडमैप 2025 जारी की है। इस योजना के तहत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला करने के लिए विमान तैयार किया जाएगा। आईएनएस विशाल को स्वदेशी विमानवाहक आईएसी-3 भी कहा जा रहा है। यह भारत का तीसरा विमानवाहक पोत होगा। यह कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में बनेगा और परमाणु ऊर्जा से चलेगा। इसका वजन 65 से 75 हजार टन होगा। वहीं इसकी लंबाई 300 मीटर और गति लगभग 55 किलोमीटर प्रति घंटा होगी।
55 विमानों को ले जा सकेगा युद्धपोत
यह 55 विमानों को ले जा सकेगा। जिसमें 40 फिक्स्ड-विंग लड़ाकू विमान और 15 रोटरी-विंग यानी हेलीकॉप्टर होंगे। अपनी विशालकाय क्षमता के आधार पर ही इसका नाम रखा गया है। यह भारत को अमेरिका और फ्रांस के बाद तीसरा ऐसा देश बनाएगा जो परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत संचालित करता है। बता दें कि इस श्रेणी के वाहनों की खासियत यह है कि यह लंबी अवधि तक समुद्र में रहता है। यह बिना ईंधन भरे महीनों तक समुद्र में काम करता रहता है। इस जहाज में लगे परमाणु रिएक्टर 500-550 मेगावाट बिजली बनाएंगे। इस क्षमता से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम, लेजर हथियार और सेंसर जैसे आधुनिक उपकरण संचालित होंगे।
भारी लड़ाकू विमान, ड्रोन भरेंगे उड़ान
इस विमान से भारी लड़ाकू विमान, ड्रोन और हवाई चेतावनी विमान को लांच किया जा सकेगा। ये फायदे आईएनएस विशाल को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की ताकत बढ़ाने में मदद करेंगे। इससे हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान के खिलाफ भारत की बढ़त मजबूत होगी। डीआरडीओ इस विमान की तकनीक विकसित कर रहा है। इसके पहले प्रोटोटाइप का परीक्षण भी हो चुका है। इसे इस तरह से डिजाइन किया जा रहा है जिससे यह भ्विष्य में 40 टन तक के विमानों को लांच कर सके। इसमें कॉम्बैट मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर लगाया जाएगा। जिससे यह युद्ध की स्थिति में विमानों को नियंत्रित कर सकेगा। आईएनएस विशाल पर राफेल-मरीन को तैनात किया जाएगा। बता दें कि अप्रैल 2025 में भारत ने फ्रांस से 26 राफेल-मरीन विमान खरीदने का सौदा किया था। इसकी कीमत 63,000 करोड़ रुपये है। ये 2030 तक आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत पर तैनात किए जाएंगे। बता दें कि भारत के पास अभी दो विमानवाहक पोत हैं। आईएनएस विक्रमादित्य को रूस से खरीदा गया था। यह 2013 में सेवा में आया था। इसे 2020, 2022 और 2024 में अपग्रेड किया गया था। वहीं विक्रांत भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत है। यह 2022 में सेवा में आया था। यह 40,000 टन का है। यह 30 विमान ले जा सकता है। ये दोनों 2023 में डबल-कैरियर ड्रिल, मालाबार और वरुणा जैसे अभ्यासों में हिस्सा ले चुके हैं। ये पारंपरिक ईंधन से चलते हैं, जिससे उनकी सीमा और शक्ति सीमित है। वही आईएनएस विशाल इन सभी से ज्यादा आधुनिक और ताकतवर होगा। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान की बढ़ती ताकत ने भारत को आईएनएस विशाल जैसा पोत बनाने के लिए प्रेरित किया। चीन परमाणु-संचालित पोत भी विकसित कर रहा है। वहीं पाकिस्तान भी चीन से 8 हंगोर-क्लास पनडुब्बियां खरीद रहा है। ये सभी मिलकर भारत के समुद्री क्षेत्र में खतरा बढ़ाएंगी। ऐसे में भारत चाहता है कि उसके पास तीन सक्रिय विमानवाहक पोत रहे। एक पोत को रखरखाव तो बाकी दो को अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में तैनात किया जा सके।