जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। मंगल को रहने लायक बनाने की दिशा में वैज्ञानिकों ने बड़ी छलांग लगाई है। नई तकनीक से बिना परमाणु बम के ही ग्रह का तापमान बढ़ाने में कामयाबी मिली है। इससे ग्रह का तापमान इतना हो जाएगा कि यहां माइक्रोबियल जीवन संभव हो जाएगा। इस रिसर्च को मंगल ग्रह पर मानव जीवन के रहने योग्य बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण और पहला कदम माना जा रहा है। मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना खोजने में जुटे वैज्ञानिकों को अहम कामयाबी मिली है। साइंस एडवांसेज में प्रकाशित रिपोर्ट में शिकागो विश्वविद्यालय, नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी और सेंट्रल फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बड़ा दावा किया है। वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह के वातावरण को बदलने के दृष्टिकोण का खुलासा किया है। इस नए तरीके में मंगल ग्रह के वायुमंडल में कृत्रिम धूल के कणों को छोड़ा जाएगा। ये कण ग्रह को 50 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा गर्म कर देंगे। इससे ग्रह का तापमान इतना हो जाएगा कि यहां माइक्रोबियल जीवन संभव हो जाएगा। इस रिसर्च को मंगल ग्रह पर मानव जीवन तलाशने की संभावना की दिशा में अहम और पहला कदम बताया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अुनसार ये प्रस्तावित तकनीक वैश्विक स्तर पर मंगल ग्रह को गर्म करने के उद्देश्य से पिछली योजनाओं की तुलना में 5,000 गुना ज्यादा बेहतर है। नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का मानना है कि ये मंगल ग्रह के वातावरण को बदलने की हमारी क्षमता में एक महत्वपूर्ण प्रगति को भी दर्शाता है। इससे पहले पृथ्वी से सामग्री आयात करने या मंगल ग्रह के दुर्लभ संसाधनों का खनन करने की बात कही गई थी। इसके लिए परमाणु के इस्तेमाल की भी चर्चा होती रही है। अब नए दृष्टिकोण से मंगल पर आसानी से उपलब्ध संसाधनों का लाभ उठाया जा सकता है। शिकागो विश्वविद्यालय में भूभौतिकी विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एडविन काइट का कहना है कि नई रिसर्च ये बताती है कि पानी के लिए मंगल को गर्म करना अब मुश्किल नहीं रहा। जितनी अब तक मानी जा रही थी। वहीं उन्होंने यह भी कहा कि इस पद्धति को लागू करने में अभी 10 साल लग जाएंगे। इसके बावजूद मंगल पर अब तक प्रस्तावित अन्य योजनाओं की तुलना में तार्किक रूप से सबसे बेहतर दिखती है। मंगल ग्रह को इंसान के रहने लायक बनाने के लिए बहुत अधिक काम करने की आवश्यकता है। इसमें पहला लक्ष्य मंगल ग्रह को सूक्ष्म जीवों और खाद्य फसलों के लिए रहने योग्य बनाना है। जो धीरे-धीरे वायुमंडल में आक्सीजन जोड़ सकता है। भूवैज्ञानिकों के लिए इतिहास लिखने जैसा होगा। दूसरी ओर अन्य एक्सपर्ट का कहना है कि शुरूआती कामयाबी मिली है। अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। मंगल पर यह समझने की जरुरत है कि कृत्रिम धूल मंगल के वायुमंडल से कितनी तेजी से बाहर निकलेगी और वार्मिंग प्रक्रिया ग्रह के पानी और बादलों के साथ कैसे संपर्क करेगी। इसके बावजूद यह विधि टेराफार्मिंग अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण छलांग है। बता दें कि इसी महीने प्रकाशित रिपोर्ट में मंगल ग्रह की पथरीली जमीन के नीचे पानी खोजे जाने की बात कही गई थी। ऐसा नासा के इंसाइट लैंडर का डेटा देखकर बताया गया था। यह लैंडर 2018 में मंगल ग्रह पर पहुंचा था। यह लैंडर अपने साथ एक साइज्मोमीटर लेकर गया था। बता दें साइज्मोमीटर भूकंप के कंपन को रिकार्ड करते हैं। जब मार्श क्वेक यानी मंगल पर आने वाले भूकंप और ग्रह के चलने के डेटा को परखा गया तो तरल पानी के सिग्नल मिले थे।
मंगल को रहने लायक बनाने की दिशा में वैज्ञानिकों ने लगाई बड़ी छलांग
13-Aug-2024