मंगल के भीतर 600 किलीमीटर चौड़ा ठोस कोर, नासा ने मंगल ग्रह का खोल दिया राज 

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। नासा ने मंगल ग्रह का ऐसा राज खोल दिया है जिससे आज तक दुनिया अंजान थी। नासा के इनसाइट मिशन ने मंगल के भीतर 600 किलीमीटर चौड़ा ठोस कोर खोजा है। यह खोज मंगल के चुंबकीय क्षेत्र, विकास और चट्टानी ग्रहों की उत्पत्ति समझाने में काम आ सकती है। साथ ही जीवन की खोज में लगे वैज्ञानिकों के काफी सहूलियत मिलेगी।
लाल ग्रह के बीचो-बीच ठोस भीतरी कोर 

नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर एक बड़ा राज खोला है। पहली बार सबूत मिले हैं कि लाल ग्रह के बीचो-बीच एक ठोस भीतरी कोर मौजूद है। इसका आकार करीब 600 किलोमीटर चौड़ा है। यह खोज नासा के इनसाइट लैंडर ने की है। बता दें कि इनसाइट 2018 से मंगल पर है। उसने वहां आए भूकंप और उल्का पिंडटकराव से पैदा हुई सिस्मिक तरंगों को रिकॉर्ड किया। इसके पहले माना जाता था कि मंगल का कोर पूरी नरम और पिघला हुआ है। अब सामने आया है कि इसके

भीतर पृथ्वी की तरह ठोस हिस्सा भी है। सिस्मिक तरंगों के अध्ययन में पता चला कि तरंगें मंगल के केंद्र से टकराकर वापस लौटीं। यह तभी संभव है जब वहां ठोस परत हो। इससे मंगल ग्रह पर भी कभी जीवन था इसकी पुष्टि होती नजर आ रही है। चुंबकीय क्षेत्र इस बात का गवाह है कि यहां भी कभी पृथ्वी की तरह जीवन रहा होगा।

मंगल की सतह पर नहीं देखा चुंबकीय क्षेत्र 


बता दें कि पृथ्वी पर चुंबकीय क्षेत्र उसके कोर में होने वाले परिवर्तन प्रक्रिया से बना रहता है। वहीं मंगल की सतह पर आज से पहले कभी वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र नहीं देखा गया। केवल कुछ हिस्सों की सतह पर पुराने समय की चुंबकीय छाप मिलती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कभी मंगल का भी मजबूत चुंबकीय कवच था, लेकिन वह खत्म हो गया। अब नया सबूत बताता है कि मंगल की कोर वैज्ञानिकों की सोच से अलग है। इस नई खोज को करने के लिए वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की भूगर्गीय खोज करने वाला तरीका अपनाया। खोजकतार्ओं ने उल्कापिंड से टकराव वाली जगह पर इनसाइट में एक जगह पर सिस्मोमीटर लगाया। बता दें कि पृथ्वी के भीतर खोज के लिए वैज्ञानिक उल्का पिंड टकराव क्षेत्र का फायदा उठाते रहे हैं। मंगल पर भी वैज्ञानिकों ने 23 बड़े इम्पैक्ट इवेंट्स की तरंगों का विश्लेष्ण किया। तरंगों का रास्ता, कोण और समय देखकर टीम ने साबित किया कि मंगल के भीतर से वे तरंगें लौटीं जो केवल ठोस कोर से ही संभव हैं।

पीकेआईकेपी और पीकेपीपीकेपी जैसी तरंगें देखीं

वैज्ञानिकों ने पीकेआईकेपी और पीकेपीपीकेपी जैसी तरंगें देखीं। ये तरंगें सीधे मंगल के अंदरूनी कोर तक गईं और वहां से लौटकर इनसाइट यान तक पहुंचीं। इसका मतलब साफ है कि मंगल का दिल पूरी तरह पिघला नहीं है, उसमें ठोस भीतरी कोर मौजूद है। मंगल का कोर भी मुख्य रूप से आयरन से बना है, लेकिन उसमें सल्फर, आॅक्सीजन और कार्बन की मात्रा ज्यादा है। ये हल्के तत्व कोर को नरम बनाए रखते हैं। इसी वजह से वैज्ञानिकों को लगता था कि मंगल का कोर ठोस नहीं है। नई खोज ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया। वैज्ञानिकों के अनुसार, मंगल का ठोस कोर उसके थर्मल और केमिकल इतिहास की कहानी बयां करता है। इससे समझा जा सकेगा कि क्यों मंगल ने अपना चुंबकीय क्षेत्र खो दिया है या रहने लायक ग्रह है। अब अगला कदम मॉडलिंग का होगा। वैज्ञानिक अलग-अलग तापमान और दबाव की स्थिति बनाकर देखेंगे कि आखिर किस प्रक्रिया से यह ठोस कोर बना। इससे न सिर्फ मंगल, बल्कि दूसरे चट्टानी ग्रहों की भी समझ बेहतर होगी। यह नेचर जर्नल में छपी है।