इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन के सामने हाइपरसोनिक मिसाइल भी फेल 

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। जापान ने ऐसा हथियार विकसित किया है जिसके सामने हाइपरसोनिक मिसाइल भी फेल है। यह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन है। यह 8000 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से फायर करती है। यह नेवी पर तैनात की जाएगी। यह बारूद और गोलों की जगह विद्युत चुंबकीय शक्ति से फायर करती है।

जापान ने रक्षा नीति में किया आक्रामक बदलाव

दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार जापान अपनी रक्षा नीति में आक्रामक और तकनीकी बदलाव कर रहा है। जापान ने अपनी नेवी के जहाज से पहली बार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन फायरिंग का सफल टेस्ट कर इतिहास रच दिया है। समुद्र में तैनात टारगेट शिप पर दागे गए इस शॉक वेपन ने साफ कर दिया कि परंपरागत तोप-गोलों का जमाना अब धीरे-धीरे पीछे छूट रहा है। जापान के रक्षा मंत्रालय की अधिग्रहण, तकनीक और लॉजिस्टिक्स एजेंसी यानी एटीएलए ने यह खुलासा किया है। जिसमें बताया गया है कि टेस्ट शिप जेएस असुका से रेलगन के ट्रायल किए गए। तस्वीरें जारी करते हुए एटीएलए ने लिखा कि यह पहली बार है जब किसी वारशिप से रेलगन का टेस्ट किया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार विद्युत चुंबकीय रेलगन का परीक्षण न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से अहम है बल्कि यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सामरिक स्थिति को भी बदल सकता है।

रेलगन की खासियतें

रेलगन की खासियतों की बात करें तो यह बिजली की ताकत से गोला दागती है। रेलगन एक विद्युत चुंबकीय हथियार सिस्टम है। यह पारंपरिक तोपों की तरह विस्फोटक का इस्तेमाल नहीं करती, बल्कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फोर्स के जरिए प्रोजेक्टाइल को हाई स्पीड से दागती है। इसकी स्पीड 2,500 मीटर/सेकंड यानी 5,600 मील प्रति घंटा है। प्रोजेक्टाइल का वजन 320 ग्राम होता है। इसकी स्पीड साउंड से 6.5 गुना ज्यादा है। इसकी लंबाई 20 फीट और वजन 8 टन के करीब है। यह सिस्टम हाइपरसोनिक मिसाइलों और तेज गति से उड़ने वाले लड़ाकू विमानों को भी निशाना बना सकता है। खास बात यह है कि लगातार 120 फायर करने के बाद भी इसके बैरल की स्पीड में गिरावट नहीं आती है। 

दुनिया के कई देश इस पर कर रहें काम

दुनिया के कई देश इस तकनीक पर तेजी से काम कर रहे हैं। इनमें भारत के अलावा चीन और अमेरिका शािमल हैं। चीन से सतत फायरिंग के सफल टेस्ट की खबरें आई है। यह बात अलग है कि चीन इसे अब तक तैनात नहीं कर पाया है। अमेरिका ने भी एक समय रेलगन प्रोजेक्ट पर अरबों डॉलर खर्च किए हैं। 2021 में तकनीकी चुनौतियों और लागत के चलते इसे बंद कर दिया था। अब अमेरिका भी इस प्राजेक्ट पर काम कर रहा है। वहीं जापान इस हथियार को वास्तविक तैनाती की दिशा में सबसे आगे निकल गया है।

एयरबर्स्ट म्युनिशन भी विकसित 

इसके अलावा, रेलगन से एंटी-एयर वॉरफेयर के लिए एयरबर्स्ट म्युनिशन भी विकसित किए जा रहे हैं। ये हवा में ही फटकर घातक टुकड़े छोड़ते हैं। यह मिसाइलों और ड्रोन जैसे खतरों से निपटने में बेहद कारगर होगा। जापान रेलगन को सिर्फ नौसैनिक प्लेटफॉर्म तक सीमित नहीं रखना चाहता। योजना है कि इसे जमीन पर भी तैनात किया जाए। इससे ताकि दुश्मन के आर्टिलरी यूनिट्स को निशाना बनाया जा सके। साथ ही तटीय सुरक्षा को मजबूत किया जा सके। दूसरी ओर जैसे ही जापान ने रेलगन का टेस्ट किया, चीन और उत्तर कोरिया की चिंता बढ़ गई है। इसका कारण यह है कि यह हथियार पारंपरिक रक्षा प्रणाली से कहीं ज्यादा तेज, सटीक और प्रभावशाली है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार जापान की यह तकनीक चीन की हाइपरसोनिक मिसाइल क्षमताओं के लिए लिए काल बन सकती है। चीनी सेना के एक पूर्व ट्रेनर ने इस हथियार को आक्रामक रणनीति की शुरूआत बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि जापान का यह कदम एशिया के बाकी देशों के लिए भी सामरिक तनाव बढ़ा सकता है।