फ्रांस के ऊपर फटा क्षुद्रग्रह, भारी नुकसान से बच गई दुनिया

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। फ्रांस के ऊपर फटे क्षुद्रग्रह को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। वैज्ञानिकों ने अनुमान जताया है कि यह क्षुद्रग्रह पृथ्वी से 28 किलोमीटर की ऊंचाई पर अचानक फट गया था। अगर यह क्षुद्रग्रह बड़ा होता तो इसकी शॉक वेव से पृथ्वी को भारी नुकसान हो सकता था। इस नए शोध ने वैज्ञानिकों को डरा दिया है। उनके अनुसार ऐसे क्षुद्रग्रह पृथ्वी को नष्ट कर सकते हैं।
आसमान में क्षुद्रग्रह में भयंकर विस्फोट 

धरती के पास से एस्टेरॉयड के गुजरने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। ये खबरें चिंता भी पैदा करती हैं। अब नए शोध में बताया गया है कि फ्रांस के आसमान में एक क्षुद्रग्रह में भयंकर विस्फोट हुआ था। इसके बाद यह क्षुद्रग्रह आग के गोले में बदल गया था। अब इस क्षुद्रग्रह के अध्ययन में जुटे वैज्ञानिकों ने बड़ा खुलासा किया है। इसका नाम क्षुद्रग्रह 2023 सीएक्स-1 दिया गया है। यह क्षुद्रग्रह लगभग 28 किलोमीटर की ऊंचाई पर टूटकर बिखर गया था। इसके बाद उत्तरी फ्रांस के ऊपर इसके टुकड़े तेज रोशनी करते हुए आसमान में फैल गए थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह एक क्षुद्रग्रह के लिए असामान्य व्यवहार है, जो आमतौर पर बहुत पहले टूटना शुरू कर देता है और छोटे-छोटे टुकड़ों में पृथ्वी के वायुमंडल में गिर जाता है। इसके बजाय 2023 सीएक्स-1 आखिरी क्षण तक एक साथ टिका रहा। साथ ही एक ही विस्फोट में अपनी कुल ऊर्जा का 98 प्रतिशत छोड़ दिया। जिससे वह आग का गोला बन गया था।
एम्स रिसर्च सेंटर की गणना 

 

नासा के एम्स रिसर्च सेंटर की गणना के अनुसार, उल्कापिंड ने 4 मेगापास्कल का गतिशील दबाव छोड़ा। जिससे इस विशेष आकार के क्षुद्रग्रह के लिए अपेक्षा से लगभग चार गुना बड़ा उच्च दबाव का क्षेत्र बन गया। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे जमीनी स्तर पर क्षति का जोखिम बहुत बढ़ गया था। यह विस्फोट वायुमंडल में बहुत नीचे हुआ था। नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने हमारे ग्रह की क्षुद्रग्रह से सुरक्षा में एक नई कमजोरी का खुलासा किया है।
पृथ्वी को कोई नुकसान नहीं 

यह सौभाग्य की बात रही कि क्षुद्रग्रह सीएक्स-1 ने पृथ्वी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इसका आकार बड़ा होता और वह देरी से विस्फोट करता, तो उसका प्रभाव बहुत व्यापक हो सकता था। कनाडा के वेस्टर्न ओंटारियो विश्वविद्यालय में शोध करने वाली आॅरियन एगल ने उल्कापिंड की तुलना परमाणु बम से की। उन्होंने कहा कि अगर कोई बड़ा क्षुद्रग्रह अपनी सारी ऊर्जा एक ही विस्फोट में छोड़ देता है तो हमारे वायुमंडल की सतह पर लगने वाला झटका विस्फोटक रूप से शक्तिशाली होता। उन्होंने आगे कहा कि इस तरह का विखंडन ज्यादा खतरनाक है। अगर वह एक बड़ा क्षुद्रग्रह होता तो धरती पर संकट आ जाता। हमें धरती के एक बड़े क्षेत्र को खाली करना होता। दूसरी ओर फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने भी नए रिसर्च में बड़ा दावा किया है। उनके अनुसार 78 मिलियल साल पहले जब एक बहुत बड़ा एस्टेरॉयड धरती पर गिरा था तो उससे छोटे-छोटे सूक्ष्मजीव निकले थे। ये जीव न सिर्फ जिंदा रहे बल्कि उन्होंने बढ़ना भी शुरू कर दिया था। स्वीडन की लिनियस यूनिवर्सिटी की टीम ने फिनलैंड के लाप्पावर्जी नाम के बड़े गड्ढे में इन जीवों को खोज निकाला। यह गड्ढा एक बहुत बड़े उल्कापिंड के गिरने से बना था। वैज्ञानिकों ने पाया कि इस टक्कर के बाद बने पानी और गर्मी वाले सिस्टम में इन सूक्ष्मजीनवों ने अपना एक खास इकोसिस्टम बना लिया था। ये लंबे समय तक पनपते रहे। नेचर कम्युनिकेशंस नाम की पत्रिका में छपी ये रिसर्च बताती है कि किसी उल्कापिंड के गिरने से बने गड्ढे में जीवन कब शुरू हुआ था। यह ऐसा पहला अध्ययन है जो साबित करता है कि कोई बड़ी तबाही आने के बाद भी उस माहौल में जीवन पनप सकता है। साथ ही खुद को वहां ढाल भी सकता है।