जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। ब्रह्मांड से एक बार फिर चौंकाने वाली खबर सामने आई है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसे विशाल ग्रह की खोज की है। जो एक बेहद छोटे और कमजोर तारे के चारों ओर घूम रहा है। यह जोड़ी इतनी असामान्य है कि खगोलविदों की तमाम थ्योरीज हिल गई हैं।
पृथ्वी से 53 गुना बड़ा है ग्रह
अंतरिक्ष में एक बार फिर साबित कर दिया है कि पृथ्वी पर वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष के बारे में जो कुछ भी पता है, वह बहुत कम है। उसके आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। एक ऐसा विशाल ग्रह मिला है जो पृथ्वी से 53 गुना बड़ा है लेकिन उसका सूरज हमारे सूरज से 80 प्रतिशत छोटा है। पृथ्वी अपने सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन का समय लेती है और वह ग्रह सिर्फ तीन दिन में अपने सूर्य की परिक्रमा पूरी कर लेता है। यानी उसका 1 साल 3 दिन का होता है। इस ग्रह का नाम टीओआई 6894 है। हैरानी की बात यह है कि सूरज से सिर्फ 20 प्रतिशत द्रव्यमान वाले तारे के पास शनि से भी बड़ा गैसीय ग्रह है। इसकी मौजूदगी प्लैनेट फॉर्मेशन के मौजूदा सिद्धांतों को चुनौती दे रही है। इस ग्रह का तापमान 150 डिग्री सेल्सियस से कम है।
नासा के टेलीस्कोप से खोज
इस ग्रह की खोज नासा के टेलीस्कोप से ली गई 91,000 से अधिक रेड ड्वार्फ्स की डेटा स्टडी के दौरान हुई। बाद में चिली के बड़े टेलीस्कोप समेत कई ग्राउंड-बेस्ड टेलीस्कोपों ने इसकी पुष्टि की गई। ब्रिटेन के वारविक विश्वविद्यालयके डैनियल बेइलिस ने इस शोध का नेतृत्व किया है। साथ ही वे स्टडी के सह-लेखक हैं। यह लेख नेचर मैगजीन में छपा है। डैनियल बेइलिस ने कहा कि इतने छोटे तारे के पास एक गैस जायंट ग्रह की मौजूदगी हैरान करने वाली है। आकाशगंगा में ऐसे ग्रह की खोज ने पिछले अनुमानों को ही बदल दिया है।
ग्रहों के उत्पत्ति सिद्धांत को नकारा
सवाल उठ रहा है कि इतना बड़ा ग्रह इतनी कमजोर और छोटे तारे के साथ बना कैसे? यह ग्रहों के उत्पत्ति सिद्धांत को ही नकार दे रहा है। बता दें कि ग्रहों के निर्माण में कोर अभिवृद्धि सिद्धांत काम करता है। यह ग्रह निर्माण की सर्वमान्य थ्योरी है। यह सिद्धांत कहता है कि जब कोई तारा बनता है तो उसके चारों ओर गैस और धूल की एक डिस्क बनती है। यही डिस्क धीरे-धीरे एक कोर में बदलती है और फिर वातावरण बनता है। जिससे गैस जायंट ग्रह तैयार होता है। इस थ्योरी के हिसाब से इतने छोटे तारे के आसपास इतना पदार्थ ही नहीं होता कि कोई विशाल ग्रह बन सके। यह बात वैज्ञानिकों को परेशान कर रही है।
ग्रहों के निर्माण के बारे में दूसरी थ्योरी
ग्रहों के निर्माण के बारे में दूसरी थ्योरी भी है। इसे गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। इस थ्योरी के अनुसार डिस्क खुद ही अस्थिर होकर बिखर जाती है और फिर गैस और धूल का एक हिस्सा एक ग्रह के रूप में सघन हो जाता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि टीओआई 6894 की खोज इस थ्योरी से भी मेल नहीं खाती है। अब तक खोजे गए ज्यादातर गैस ग्रह गरम बृहस्पति की श्रेणी में आते हैं। जिनका तापमान 1000 सेंटीग्रेट से ऊपर होता है। वहीं इसका तापमान सिर्फ 150 सेंटीगेट के आसपास पाया गया है। इस कारण वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इसके वातावरण में अमोनिया जैसे अणु मिल सकते हैं, जिसे आज तक किसी ग्रह में नहीं देखा गया। बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अमौरी त्रिओड ने कहा कि यदि हम अमोनिया देख पाते हैं, तो यह ग्रहों के अध्ययन में एक बड़ी सफलता होगी। आने वाले साल में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप इस ग्रह की विस्तृत जांच करेगा। जिससे इसके कई और रहस्य सामने आ सकते हैं। इस ग्रह पर एक रहस्यमयी खगोलीय वस्तु मिली है जो एक साथ -रे और रेडियो वेव्स दोनों उत्सर्जित कर रही है। ऐसे में वैज्ञानिक इसे एक तारा, एक बाइनरी सिस्टम या बिल्कुल नया ग्रह मान रहे हैं।