चंद्रमा पर लग रहा जंग, चन्द्रयान की खोज पर लगी मुहर

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। चंद्रमा पर जंग लग रहा है। यह बात सुनने में अजीब लग रही है लेकिन यह सच है। पहले इसकी खोज भारत के चंद्रयान ने की थी। अब इस पर दुनिया भर की अंतरिक्ष एजेंसियों ने अपनी मोहर लगा दी है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस नए शोध में पृथ्वी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। चांद पर जंग लगने से जुड़े एक नए खुलासे ने एक्सपर्ट को चौंका दिया है। चंद्रमा पर हवा नहीं होने के बावजूद वहां हेमेटाइट नाम का खनिज फैल रहा है। बता दें कि हेमेटाइट लोहे पर लगने वाली जंग की तरह है, जिसके बनने में आमतौर पर आक्सीजन और पानी की जरूरत होती है। ऐसे में चांद पर हेमेटाइट का फैलना वैज्ञानिकों को हैरान कर रहा है। चंद्रमा पर जंग लगने की वजह पृथ्वी को माना जा रहा है। भारत के चंद्रयान-1 मिशन में भी यह बात सामने आई थी। ऐसे में यह खोज एक तरह से भारत के चंद्रयान मिशन की खोज पर मोहर लगाती है।
लोहा पानी और आक्सीजन से लगती है जंग

नासा के अनुसार जंग तब बनती है, जब लोहा पानी और आक्सीजन के संपर्क में आता है। शोधकर्ताओं ने चंद्रमा की सतह पर खासतौर से ध्रुवों के पास हेमेटाइट नाम का आयरन आक्साइड यानी जंग पाया है। जंग लगने के संकेत देखकर वैज्ञानिक हैरान रह गए हैं। इस प्रक्रिया में आमतौर पर आक्सीजन और पानी की जरूरत होती है, जो चंद्रमा पर दुर्लभ हैं। ऐसे में सवाल है कि यह जंग कैसे लग रहा है। 

चन्द्रयान के डेटा का विश्लेषण 

भारत के चन्द्रयान के डेटा विश्लेषण में पता चला था कि चंद्रमा पर पानी की बूंदे मौजूद हैं। अब नासा की इस खोज से भारतीय अंतरिक्ष यान की थ्योरी सच साबित हो रही है। बता दें कि 2020 में वैज्ञानिकों ने माना था कि भारत के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा के ध्रुवों के पास हेमेटाइट पाया है। इसके बाद चंद्रयान मिशन ने चंद्रमा से आंकड़े जमा किए, जिनसे कई खोजें हुई हैं। इनमें चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं के प्रमाण शामिल हैं। नासा और हवाई इंस्टीट्यूट आफ जियोफिजिक्स एंड प्लैनेटोलॉजी के शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में हेमेटाइट के संकेत पाए हैं।
दूसरे दृष्टिकोण से अहम जानकारी

अध्ययन के दूसरे दृष्टिकोण से वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी की चुंबकीय पूंछ के संपर्क में आने के कारण चंद्रमा में जंग लग रही है। यह उन कणों से बनी है, जो पहले पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में फंस जाते हैं। इसके बाद सौर वायु से बाहर धकेल दिए जाते हैं। 28 दिन के चंद्र चक्र में छह दिनों तक पूर्णिमा के समय चंद्रमा इस चुंबकीय पूंछ से गुजरता है। उन दिनों में ही पृथ्वी से कुछ आक्सीजन अणु चंद्रमा की ओर जा सकते हैं। यह आक्सीजन के स्रोत की व्याख्या करता है। हालांकि ये सवाल बना हुआ है कि जंग को पानी की भी आवश्यकता होती है। चंद्रमा पर पानी मौजूद है लेकिन यह बर्फ के रूप में है। स्काई एट नाइट पत्रिका के अनुसार, पृथ्वी का चुंबकीय पुच्छ चंद्रमा को सौर हवाओं से बचाता है। ये उनके प्रभाव को कम करता है और कुछ चरणों के दौरान आक्सीकरण को संभव बनाता है। जिलियांग और उनकी टीम ने पृथ्वी की हवा के अनुकरण का उपयोग करके प्रयोगशाला में इस विचार का परीक्षण किया। जिलियांग की टीम ने चंद्रमा पर पाए जाने वाले लौह-समृद्ध खनिज क्रिस्टलों में हाइड्रोजन और आक्सीजन आयनों को तेज गति से लॉन्च किया। इस पर कुछ क्रिस्टल आक्सीजन आयनों से टकराने पर हेमेटाइट में बदल गए। जब हाइड्रोजन आयन हेमेटाइट से टकराए तो उनमें से कुछ वापस लोहे में बदल गए।