चार नहीं, अब होंगे छह मौसम! गंभीर संकट का बढ़ा खतरा

नई दिल्ली। धरती पर सर्दी, गर्मी, बरसात और वसंत चार प्रमुख मौसम माने जाते हैं। लेकिन, अब इसकी संख्या बढ़ने वाली है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इंसानों की गैर जिम्मेदाराना हरकतों की वजह से अब धरती पर 6 मौसम होंगे। इस बदलाव से मानव जीवन, कृषि, जल और जैव विविधता पर गंभीर संकट पैदा हो गया है। बदलते जलवायु को लेकर वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने चौंकाने वाला दावा किया है। उनका कहना है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की गति ऐसे ही बदस्तूर जारी रही, तो भविष्य में धरती पर चार नहीं, बल्कि छह अलग-अलग मौसम देखने को मिल सकते हैं। बढ़े हुए दोनों मौसम आधिकारिक अभिलेखों में दर्ज हो चुके हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्यों द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र के प्रति गैर-जिम्मेदाराना रवैये ने ही जलवायु बदलने में अहम भूमिका निभाई है। जिससे धरती को काफी नुकसान पहुंच रहा है।

नए मौसमों का नाम ‘धुंध’ और ‘कचरा’



बता दें कि इन दोनों नए मौसमों का नाम ‘धुंध का मौसम’ और ‘कचरे का मौसम’ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये दोनों ऋतुएं पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु दोनों के लिए खतरा हैं। लगातार हो रहे इन बदलावों से मानव जीवन, वन्य जीवन और समुद्री जीवन सब कुछ भयानक रूप से प्रभावित होगा। जो धरती और इंसान दोनों के लिए ही अच्छा नहीं है। साउथ एशिया और भारत के कुछ हिस्सों में धुंध की घटनाएं होना इसका प्रमाण है। इसमें ऐसे रसायन होते हैं जो मानव जीवन से लेकर कई चीजों को प्रभावित करते हैं।

बदल रहा मौसमों के आने का समय



कई वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का मानना है कि मौसमों के आने का समय  लगातार बदलता जा रहा है।  साथ ही यह लगभग पूरे तरीके से अनियमित भी होता जा रहा है। जैसे गर्मी का मौसम पहले आ जाता है और अपने समय से ज्यादा समय के लिए रुकता है। वसंत ऋतु जल्दी आ जाती है और उसका समापन भी जल्दी हो जाता है। इतना ही नहीं, इस दौरान तापमान में भी बढ़ोत्तरी देखी गई है। वहीं, एंडीज और रॉकी पर्वत वाले इलाकों में बर्फ पिघल रही है जिससे वहां पर सर्दियों में खेले जाने वाले खेल अब बंद हो चुके हैं।

दुनिया पर गंभीर पर्यावरणीय संकट



वैज्ञानिकों का कहना है कि आज पूरी दुनिया एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का सामना कर रही है। बढ़ती हुई औद्योगिक क्रियाएं, जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक उपयोग, वनों की कटाई और प्रदूषण इसके मुख्य कारण हैं। इसकी वजह से बर्फीले क्षेत्रों का पिघलना, समुद्र स्तर का बढ़ना, अत्यधिक गर्मी या वर्षा और जैव विविधता का ह्रास जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से बचाव के लिए ठोस कदम उठाना जरूरी है। यह न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी अनिवार्य है।