भारतीय वैज्ञानिकों ने किया कमाल, ब्लैक होल से निकलने वाले एक्स-रे संकेतों को किया डिकोड 

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। जो काम दुनियाभर वैज्ञानिक नहीं कर पाए वह काम इसरो और आईआईटी गुवाहाटी ने कर दिखाया है। यहां के वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल से निकलने वाले एक्स-रे संकेतों को डिकोड करने में सफलता हासिल की है। इस कदम से दुनिया भर के शोधकर्ताओं को ब्लैक होल की घटना को समझने में आसानी होगी।
ब्लैक होल सिर्फ अंधकारमय गड्डा नहीं 

ब्लैक होल सिर्फ अंधकारमय गड्डा नहीं है, बल्कि इसने ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमयी राजों को छुपा रखा है। अब इसको लेकर एक नई रिसर्च सामने आई ह। आईआईटी गुवाहाटी, इसरो और हाइफा विश्वविद्यालय इजराइल के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक ऐसा एक्स-रे सिग्नल डिकोड किया है। यह ब्लैक होल के स्वभाव को समझने में की दिशा में एक नया अध्याय लिखेगा।   यह खोज भारत की एस्ट्रोसैट वेधशाला से मिले डेटा पर आधारित है। वैज्ञानिकों ने पाया कि जीआरएस-1915+105 नामक ब्लैक होल में अजीब हलचल हो रही है। यह ब्लैक होल पृथ्वी से करीब 28,000प्रकाश वर्ष दूरी पर मौजूद है। यह लगातार अपनी चमक और मंद स्थिति बदलता रहता है। ये बदलाव ब्लैक होल के भीतर और आसपास चल रही एक्टिविटीज के राज को उजागर कर रही है।

तेज एक्स-रे झिलमिलाहट को पहली बार किया रिकॉर्ड 

शोधकर्ताओं का मानना है कि इस ब्लैक होल से आने वाली तेज एक्स-रे झिलमिलाहट को पहली बार रिकॉर्ड किया गया है। ये झिलमिलाहट प्रति सेकंड लगभग 70 बार दिखाई देती है। मजेदार बात यह है कि जैसे ही ब्लैक होल मंद होता है, झिलमिलाहट गायब हो जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब ब्लैक होल के आसपास का कोरोना यानि कि गर्म और चमकदार गैस वाला एरिया सघन और गर्म होता है, तब झिलमिलाहट होती है। वहीं जब कोरोना ठंडा और फैला हुआ होता है, तो यह चमक अचानक गायब हो जाती है। 
स्थिर नहीं होते ब्लैक होल 


इसके साथ ही ये रिसर्च बताती है कि ब्लैक होल स्थिर नहीं होते है, बल्कि वह लगातार अपने शेप और एनर्जी में बदलाव करते रहते है। कभी वह शांत स्वभाव के नजर आते है, तो कभी तेज आकार के बन जाते है। इसकी वजह से इस पैटर्न से पता चलता है कि ब्लैक होल अंतरिक्ष के असली मूड स्विंग मास्टर हैं। रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी में छपे इस रिसर्च ने क्लियर कर दिया है ब्लैक होल अपनी पावर और ग्रेविटी से पूरी गैलेक्सी का आकार डिसाइड करते हैं। इसका मतलब ये केवल चीजों को निगलने वाले राक्षस नहीं हैं, बल्कि ब्रह्मांड बनाने वाले इंजीनियरों में भी एक हैं। आईआईटी गुवाहाटी और इसरो ने इस खोज को बहुत बड़ी जीत बताया है। वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्लैक होल केवल गैस निगलते का ही काम नहीं करते है इसके अलावा ये अपनी एनर्जी से पूरी गैलेक्सी को बदलते हैं।
ब्लैक होल की घटना को समझ रहे हैं शोधकर्ता 

बता दें कि दुनिया भर के शोधकर्ता ब्लैक होल की घटना को समझने की दिशा में काम कर रहे हैं। ब्लैक होल अपने साथी तारों की बाहरी परतों से गैस खींचते समय अधिक ऊष्मा उत्पन्न करते हैं और एक्स-रे उत्सर्जित करते हैं। इन एक्स-रे का अध्ययन करके, वैज्ञानिक ब्लैक होल के आसपास के वातावरण के बारे में जान सकते हैं। आईआईटी गुवाहाटी के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर संतब्रत दास ने बताया कि हमें एक्स-रे की तेज चमक का पहला प्रमाण मिला है। यह स्रोत के उच्च-चमक वाले चरणों के दौरान प्रति सेकंड लगभग 70 बार दोहराया गया।