भारत का फटा ज्वालामुखी, समंदर में बहने लगे अंगारे

जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत और दक्षिण एशिया का इकलौता ज्वालामुखी अचानक फट गया।  इससे समंदर में पानी की तरह अंगारे बहने लगे हैं। यह अंडमान और निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से करीब 140 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। इस ज्वालामुखी में करीब 3 साल बाद विस्फोट हुआ है।

8 दिनों के भीतर दो बार फटा ज्वालामुखी 

अंडमान-निकोबार के बैरन आइलैंड में बीते 8 दिनों के भीतर दो बार ज्वालामुखी विस्फोट हुए हैं। यह भारत का इकलौता सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है। बता दें कि बैरन आइलैंड पोर्ट ब्लेयर से करीब 138 किलोमीटर दूर है। यह दक्षिण एशिया का भी इकलौता सक्रिय ज्वालामुखी है। यह लगभग 3 वर्ग किलोमीटर का निर्जन द्वीप पर है। ज्वालामुखी फटने के बाद इसकी राख और पत्थर फैल रहे हैं। यह द्वीप 354 मीटर ऊंचा है और अंडमान-निकोबार की खास पहचान माना जाता है। आमतौर पर यह ज्वालामुखी 5 से 10 साल के प्रमुख चक्र के साथ फटता है, लेकिन हाल के दशक में यह ज्यादा सक्रिय हुआ है।

बैरन द्वीप पर पहला विस्फोट 

अंडमान और निकोबार प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, बैरन द्वीप पर पहला विस्फोट 1787 में हुआ था। इसके बाद 1991, 2005, 2017 में हल्के विस्फोट हुए थे। इसके बाद यह ज्वालामुखी 2018 से लगातार सक्रिय रहा है। यहां पिछले सालों में 2018, 2019, 2022, 2024 में घटना हुई हैं। इसके बाद 2022 में यह ज्वालामुखी फिर फटा था। 2022 के बाद अब सितंबर महीने में दो 2 विस्फोट दर्ज किए गए हैं। इसके फटने से होने वाले नुकसान की बात करें तो बैरन द्वीप पर कोई इंसान-जंतु नहीं रहता। यहां चट्टान और राख ही दिखती है। द्वीप का क्षेत्रफल 3 किलोमीटर है और इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 354 मीटर है। निर्जन द्वीप होने के कारण यहां ज्वालामुखी के विस्फोट से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। यहां हरी-भरी खेती या बड़े पेड़ नहीं मिलते। बस थोड़ी बहुत झाड़ियां और पतली घास जैसी वनस्पति ही दिखाई देती है। यही कारण है कि यह जगह इंसानों के रहने लायक नहीं है। यह द्वीप अंडमान-निकोबार की एक खास पहचान माना जाता है। समुद्र के बीचों-बीच खड़ा यह ज्वालामुखी वैज्ञानिकों और यात्रियों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह केवल 1991 में खतरनाक हो गया था। इस ऐतिहासिक विस्फोट से यहां पक्षियों की 16 में से 6 प्रजाति कम हो गई थीं। इसी तरह इस बार हुए विस्फोट से समुद्री जीवों के लिए खतरा बढ़ गया है। इसका जोरदार विस्फोट भूकंप भी ला सकता है। भारत से जुड़ी एजेंसियां इसकी गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं।
ज्वालामुखी से निकलता है लावा

बता दें कि ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर वह स्थान है जहां से लावा, राख, गैसें और अन्य पदार्थ बाहर निकलते हैं। यह मुख्य रूप से पृथ्वी के अंदर मौजूद मैग्मा यानी पिघला हुआ चट्टानी पदार्थ की गति और दबाव के कारण फटता है। पृथ्वी की सतह कठोर है, लेकिन इसके नीचे का हिस्सा अत्यधिक गर्म और पिघला हुआ है। पृथ्वी का आंतरिक तापमान और भू-गर्भीय प्रक्रियाएं लगातार मैग्मा का निर्माण करती रहती हैं। जब पृथ्वी की सतह के नीचे टेक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं या अलग होकर फिसलती हैं तो उनके बीच दरारें और कमजोर स्थान बन जाते हैं। इन्हीं दरारों से मैग्मा सतह की ओर बढ़ने लगता है। धीरे-धीरे यह मैग्मा अंडरग्राउंड चैंबर में जमा होकर दबाव पैदा करता है। जब दबाव बहुत अधिक हो जाता है और सतह इसे रोक नहीं पाती, तो मैग्मा ज्वालामुखी के मुहाने यानी क्रेटर के जरिए बाहर निकलने लगता है। यही प्रक्रिया ज्वालामुखी विस्फोट कहलाती है। ज्वालामुखी फटने पर लावा, जलवाष्प, कार्बन डाइआक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड जैसी गैसें और राख का गुबार निकलता है। ये विस्फोट कभी हल्के होते हैं, जिनमें लावा धीरे-धीरे बहता है। वहीं कभी अत्यधिक हिंसक होते हैं, जिनमें राख और गैसें आसमान तक फैल जाती हैं।