जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। नासा के वैज्ञानिकों को 12,000 फीट नीचे समुद्र की गहराई में दूसरी दुनिया के संकेत मिले हैं। इस नई खाेज से पूरी दुनिया में हलचल मच गई है। शोधकर्ताओं के इस कदम से वे राज बाहर आएंगे जिनके बारे में पूरी दुनिया अभी तक पूरी तरह अंजान थी।
अनसुलझी पहेली की तरह रहा है समुद्र
समंदर की गहराई आम इंसान से लेकर वैज्ञानिकों तक के लिए हमेशा से ही अनसुलझी पहेली की तरह रहा है। यह अक्सर ऊपर से जितना शांत दिखता है इसक अंदर की दुनिया उतनी ही भयानक हो सकती है।इसमें छिपे राज जिज्ञासा का विषय रहे हैं। इसकी अंधरी गहराईयों में कई बार ऐसे जीव पाए गए हैं जिसे देख वैज्ञानिकों का भी सिर चकरा गया है। बता दें कि समुद्र की अधिकतम गहराई 12,000 फीट तक हो सकती है। अब गहराई में छिपे रहस्यों को दुनिया के समाने लाने के लए नासा ने नया प्लान तैयार किया है। जिसका मक्सद समुद्री जीवन के साथ एलियंस की संभावना की भी जांच करना है।
मिशन के लिए आरओवी विकसित
नासा ने अपने समुद्री मिशन के लिए नासा आरओवी जैसी रोबोटिक्स और सेंसर टेक्नोलॉजी विकसित की है। ये अनोखी तकनीक समुद्र के साथ स्पेस मिशन में भी मदद करेगी। बता दें कि इस मिशन के तहत नासा समुद्र के सबसे गहरे हिस्से की जांच कर रहा है जहां कम तापमान, ऑक्सीजन की कमी के बीच ऐसे जीवों को खोजना है जो इन हालातों में भी जिंदा रहते हैं। नासा का मानना है कि अगर इन जीवों के जीवित रहने के रहस्यों से पर्दा हट गया तो यह विज्ञान की दुनिया में नई क्रांति ला देेगा। इससे यह समझने में आसानी हो जाएगी कि धरती पर जीवन का संचार कैसे हुआ। साथ ही प्रलय काल के बाद फिर से जीवन का कैसे संचार होगा।
मारियाना ट्रेंच, की जांच करना लक्ष्य
नासा का लक्ष्य समुद्र के सबसे गहरे हिस्सों, जैसे मारियाना ट्रेंच, की जांच करना भी है। बता दें कि यह हिस्सा 36,000 फीट से भी ज्यादा गहरा है। एजेंसी जिस आरओवी तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है वह कम तापमान, भारी दबाव और ऑक्सीजन की कमी वाले माहौल में काम कर सकेगी। समुद्र की गहराई में एलियंस की संभावना पर नासा का मानना है कि गहरे समुद्र में मिलने वाले अनोखे जीव हमें बाहरी ग्रहों पर जीवन की संभावना के बारे में बता सकते हैं। अगर समुद्र में ऐसे जीव मिले जो बिना ऑक्सीजन या सूरज की रोशनी के जीवित हैं, तो ये एलियन जीवन की खोज में एक बड़ा कदम होगा।
खनिजों की खोज करना मकसद
इस मिशन का एक और बड़ा मकसद समुद्र में छिपे खनिजों की खोज करना है। समुद्र तल में तांबा, जस्ता, सोना, चांदी और दुर्लभ पृथ्वी तत्व जैसे खनिज मौजूद हैं। ये खनिज भविष्य में धरती की जरूरतों को पूरा करने में मदद कर सकते हैं। अंतरिक्ष एजेंसी की कोशिश है कि इन संसाधनों के टिकाऊ दोहन का रास्ता तलाश किया जा सके। जिससे इनको बाहर निकला जा सके। बता दें कि समुद्र की गहराई में खोज करना आसान नहीं है। इतनी गहराई में भारी दबाव, ठंड और अंधेरा होता है। इसके लिए खास तरह के उपकरण और मजबूत पनडुब्बियों की जरूरत होती है। इस मिशन का अगला कदम चांद और सोलर सिस्टम के बाकी ग्रहों पर पाए जाने वाले महासागरों की जांच करना है। वैज्ञानिक ये पता लगाने की कोशिश करेंगे कि वहां के महासागर भी क्या धरती की तरह है। भारत भी समुद्र की गहराई को खोजने में पीछे नहीं है। भारत का समुद्रयान मिशन 2026 तक लॉन्च होगा। जिसमें मत्स्य 6000 नाम की पनडुब्बी तीन वैज्ञानिकों को 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाएगी। ये मिशन समुद्री जैव विविधता और खनिजों की खोज में मदद करेगा। भारत की ये कोशिशें गहरे समुद्र को समझने में नया आयाम देंगी। बता दें कि हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने हिंद महासागर में 4,500 मीटर की गहराई में हाइड्रोथर्मल वेंट्स की खोज की है। ये पानी के नीचे गर्म झरने हैं, जो ज्वालामुखी गतिविधियों से बनते हैं। इनके आसपास मूल्यवान खनिज और अनोखे जीव पाए जाते हैं। नासा भी ऐसी जगहों पर ध्यान दे रहा है, क्योंकि ये जीवन की उत्पत्ति को समझने में मदद कर सकते हैं। नासा और भारत जैसे देश इन चुनौतियों से निपटने के लिए नई तकनीकें विकसित कर रहे हैं। इममें टाइटेनियम से बने सबमर्सिबल्स शामिल हैं।